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आइएस के चंगुल से छूटे बंधक ने कहा, हमें गलतफहमी में उठाया गया

दुनिया के सबसे खूंखार आतंकी गुट आइएस की चंगुल से छूटे लक्ष्‍मीकांत रामकृष्‍ण ने रिहाई के लिए विदेश मंत्रालय का आभार जताते हुए कहा कि हमें किसी तरह से टॉर्चर नहीं किया गया। उन्‍होंने यह भी कहा कि आइएस के लोगों ने कोई मांग नहीं रखी थी। उन्‍होंने कहा कि

By Sanjay BhardwajEdited By: Published: Tue, 04 Aug 2015 02:17 PM (IST)Updated: Tue, 04 Aug 2015 02:34 PM (IST)
आइएस के चंगुल से छूटे बंधक ने कहा, हमें गलतफहमी में उठाया गया

नई दिल्ली। दुनिया के सबसे खूंखार आतंकी गुट आइएस की चंगुल से छूटे लक्ष्मीकांत रामकृष्ण ने रिहाई के लिए विदेश मंत्रालय का आभार जताते हुए कहा कि हमें किसी तरह से टॉर्चर नहीं किया गया। उन्होंने यह भी कहा कि आइएस के लोगों ने कोई मांग नहीं रखी थी। उन्होंने कहा कि उन्हें गलतफहमी में बंधक बनाया गया था।

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लक्ष्मीकांत ने मीडिया से बातचीत में बताया कि जब आतंकियों को पता चला कि वे पेशे से शिक्षक हैं तो उनका व्यवहार एकदम से बदल गया। आतंकियों ने कहा कि वे टीचरों की बहुत इज्जत करते हैं और इसलिए उन्हें नहीं मारेंगे।आइएस के आतंकियों ने लीबिया के शहर सिर्त से चार भारतीयों को अगवा कर लिया था। इनमें से दो को रिहा किया जा चुका है। ये चारों लीबिया के सिर्त यूनिवर्सिटी में फैकल्टी हैं।

लक्ष्मीकांत ने बताया वे चारों लोग दो टैक्सियों में एयरपोर्ट जा रहे थे। तभी एक ड्राइवर का फोन आया कि उनकी गाड़ी रोक ली गई है। जब वे वहां पहुंचे तो कुछ बंदूकधारियों ने उन्हें भी घेर लिया। इसके बाद हमें एक सूनसान जगह पर ले जाया गया। हमारा सारा सामान चैक किया गया और उसकी लिस्ट बना ली गई।

अंधेरे कमरे में बंद कर दिया

आइएस के चंगुल से छूटे दूसरे बंधक विजय कुमार ने बताया कि हम चारों को एक अंधेरे कमरे में बंद कर दिया गया। इसके बाद पूछताछ के लिए एक आतंकी आया जिसने अपना नाम शेख बताया। उसने हमसे धर्म और पेशे के बार में पूछा। इसके बाद उसने किसी को फोन किया और हमारे बारे में बताया। फोन करने के बाद आतंकी का व्यवहार ही बदल गया। उसने कहा कि हम टीचरों की बहुत इज्जत करते हैं और हम आपको नहीं मारेंगे। आप लोगों ने बहुत सारे लीबियाई बच्चों को बहुत कुछ सिखाया है। हम आपको हथकड़ी नहीं पहनाएंगे और न ही आंखों पर पट्टी बांधेंगे। दो भारतीय अब भी आइएस के कब्जे में हैदराबाद के टी. गोपीकृष्ण और बलराम किशन अब भी आइएस के कब्जे में ही हैं। उन्हें छुड़ाने के लिए भारत के विदेश मंत्रालय की ओर से प्रयास जारी हैं।

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