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EWS के जरिए रोकी जा सकती हैं भूस्खलन से होने वाली मौतें, लेकिन इसरो...!

जून 2013 में उत्तराखंड के केदारनाथ धाम में आए भूस्खलन में 5,700 लोग मारे गए थे। इसके अलावा पिछले कई सालों में भूस्‍खन के कारण हजारों लागों ने अपनी जान गंवाई है।

By Tilak RajEdited By: Published: Thu, 17 Aug 2017 12:23 PM (IST)Updated: Thu, 17 Aug 2017 01:09 PM (IST)
EWS के जरिए रोकी जा सकती हैं भूस्खलन से होने वाली मौतें, लेकिन इसरो...!
EWS के जरिए रोकी जा सकती हैं भूस्खलन से होने वाली मौतें, लेकिन इसरो...!

बेंगलुरु, आइएएनएस। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों ने चंद्रमा और मंगल के लिए अंतरिक्ष यान भेजा है और अब शुक्र तक पहुंचने की तैयारी हो रही है। लेकिन इसरो ने अभी तक भूस्खलन के लिए उपग्रह-आधारित प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (ईडब्ल्यूएस) विकसित नहीं की है। अगर ये प्रणाली विकसित हो गई होती, तो हिमाचल प्रदेश में 13 अगस्‍त को आए भूस्‍खलन में मारे गए लोगों की जान बच जाती। वहीं पहले आए भूस्‍खलनों से हजारों लोगों की जान बचाई जा सकती थी।

हिमाचल प्रदेश में 13 अगस्त को हुए भूस्‍खलन में 50 लोग दफ्न हो गए। वहीं जून 2013 में उत्तराखंड के केदारनाथ धाम में आए भूस्खलन में 5,700 लोग मारे गए थे। इसके अलावा पिछले कई सालों में भूस्‍खन के कारण हजारों लागों ने अपनी जान गंवाई है। केवल तीन महीने पहले चार धाम यात्रा भारी भूस्‍खन के कारण बाधित हुई थी। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया(जीएसआइ) के एक अध्ययन के मुताबिक भारत के भूभाग के 12.6% भूस्खलन खतरनाक क्षेत्र में होते हैं और वैश्विक भूस्खलन के 8% भारत में होते हैं। अध्ययन ने एक ईडब्ल्यूएस के लिए तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया, जो 'कम से कम' अनुमान लगा सके कि भूस्खलन कहां होगा।'

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उत्तराखंड दुर्घटना के बाद, जीएसआई ने भूस्खलन की संभावना के आधार पर भारत का मानचित्र तैयार करने के लिए भूस्खलन की एक जोनिंग परियोजना शुरू कर दी थी। इस परियोजना को केवल 2020 तक पूरा होने की उम्मीद है। 2014 में इसरो ने घोषणा की थी कि वह तीर्थयात्रा-मार्ग गलियारों के साथ-साथ गंगोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ, पिथौरागढ़ और कुछ अन्‍य क्षेत्रों में बारिश से उत्पन्न भूस्खलन के लिए प्रयोगात्मक ईडब्ल्यूएस विकसित कर रहा है। लेकिन इसरो के सूत्रों के मुताबिक, यह प्रणाली अभी तक कार्यान्वित नहीं हुई है। यह अभी भी मूल्यांकन चरण में है और इसकी विश्वसनीयता को भूस्खलन की वास्तविक घटनाओं के साथ स्थापित करने की जरूरत है।

नासा के उपग्रहों से डेटा का उपयोग करने वाले ईडब्ल्यूएस भी इंडोनेशिया के जावा द्वीप पर वर्षा-प्रेरित भूस्खलन की भविष्यवाणी करने के लिए विकसित किए गए हैं। लेकिन इसरो की रफ्तार इस दिशा में काफी धीमी नजर आती है।

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