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जानें, क्यों भारतीय शहर धीरे धीरे बस्तियों में हो रहे हैं तब्दील

एक रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय शहरों की बहुधर्मी स्वरूप बदल रहा है। भारतीय शहर बस्तियों में तब्दील हो रहे हैं।

By Lalit RaiEdited By: Published: Tue, 24 Jan 2017 01:54 PM (IST)Updated: Tue, 24 Jan 2017 02:31 PM (IST)
जानें, क्यों भारतीय शहर धीरे धीरे बस्तियों में हो रहे हैं तब्दील
जानें, क्यों भारतीय शहर धीरे धीरे बस्तियों में हो रहे हैं तब्दील

नई दिल्ली(रायटर्स)। 20 जनवरी 2016 को जब अमेरिका में ट्रंप युग की शुरुआत हो रही थी, ठीक उसी वक्त मुंबई में एक इश्तेहार भी सुर्खियां बटोर रहा था। इश्तेहार में मोटे मोटे अक्षरों में लिखा गया था कि अगर आप बैचलर हों या नॉनवेज हों या मुस्लिम हों तो परेशान होने की जरूरत नहीं है। किसी न किसी वजह से अगर आप आशियान पाने में नाकाम हैं तो एक ऐसी जगह जो आपको छत मुहैया कराएगी। लेकिन इसका एक दूसरा पहलू ये है कि भारत में शहरों का बहुवादी, बहुधर्मी स्वरूप तेजी से बदल रहा है। भारतीय शहर धीरे-धीरे बस्तियों में तब्दील हो रहे हैं।

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अब सबको मिलेगा ठिकाना

मुंबई में 'Homes that don't discriminate', के जरिए ये प्रचार किया जा रहा है कि मायानगरी मुंबई में एक ऐसा ठिकाना है जो किसी के लिए पूर्वाग्रह नहीं रखता है। वो लोग जो किसी न किसी वजह से मायानगरी में आशियाना हासिल करने में नाकाम रहते हैं उनमें ये एड खासा मशहूर हो रहा है। उन लोगों का कहना है कि अब कम से कम वो एक ठिकाने के बारे में सोच सकते हैं।

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'Homes that don't discriminate विज्ञापन को चलाने वाली कंपनी नेस्ट अवे टेक्नॉलजी के निदेशक ऋषि डोगरा का कहना है कि हम ये चाहते हैं कि बिना किसी भेदभाव के सभी लोगों को आशियाना मुहैया हो सके। उन्होंने कहा कि बेंगलुरु में बैचलर लड़कियों और लड़कों को हो रही परेशानी के बाद उनके मन में ये ख्याल आया कि कुछ ऐसा होना चाहिए कि वो लोग आशियाने से मरहूम न हो सकें।

मुंबई में अलग-अलग समुदायों की अलग सोसायटी

भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में कैथोलित ईसाई, पारसी, बोहरी मुसलमानों के छोटे-छोटे एंक्लेव हैं जो अपने समुदाय को ठौर ठिकाना दे देते हैं। लेकिन जैसे-जैसे शहर का विस्तार होता गया वैसे मुंबई शहर में आने वालों की संख्या बढ़ती गई और धर्म, जाति, व्यवसाय के नाम पर लोगों दिक्कतों में इजाफा भी होता गया।

मुंबई दंगों के बाद भेद बढ़ा

1992-93 में हिंदू-मुस्लिम दंगों के बाद ये विभेद बढ़ गया। अल्पसंख्यक समुदाय खासतौर पर मुसलमानों को एक अदद ठिकाना पाना मुश्किल हो गया। 2015 में एक मुस्लिम महिला के घरबदर होने के बाद इंडियंस अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन का गठन हुआ। भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की अगुवाई करने वाली जाकिया सोमन का कहना है कि आशियाने की खोज में मुस्लिम समुदाय को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

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