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जानें, भारतीय तिरंगे की पूरी विकास यात्रा, छह बार किया गया बदलाव

भारतीय राष्ट्रीय झंडे का इतिहास बेहद दिलचस्प है। आइए हम आपको 71वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर तिरंगे की इस यात्रा के बारे में विस्तार से बताते हैं-

By Umanath SinghEdited By: Published: Fri, 24 Jan 2020 12:09 PM (IST)Updated: Fri, 24 Jan 2020 12:35 PM (IST)
जानें, भारतीय तिरंगे की पूरी विकास यात्रा, छह बार किया गया बदलाव
जानें, भारतीय तिरंगे की पूरी विकास यात्रा, छह बार किया गया बदलाव

भारतीय राष्ट्रीय झंडे का इतिहास बेहद दिलचस्प है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इसमें अभी तक छह बार बदलाव किया जा चुका है। स्वतंत्रता संग्रामियों ने इसकी रूपरेखा पर लगातार मंथन किया, ताकि तिरंगे से समग्र भारतीयता की अवधारणा सामने आए। तिरंगे की यह यात्रा स्वतंत्रता पूर्व राजनीतिक विकास की बहुरंगी कहानियां भी बयां करती है।

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यही कारण है कि इसको वर्तमान स्वरूप लेने में लगभग 45 साल लग गए। आखिरकार, 22 जुलाई, 1947 को राजेंद्र प्रसाद कमिटि ने कुछ बदलाव के साथ इसे स्वीकार किया। आइए हम आपको 71वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर तिरंगे की इस दिलचस्प यात्रा के बारे में विस्तार से बताते हैं-

पहला भारतीय झंडा वर्तमान कोलकाता के पारसी बेगम स्कायर (ग्रीन पार्क) में 1906 के 7 अगस्त को फहराया गया था। वैसे 1857 में भी झंडा फहराया गया था, लेकिन वह पहले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का झंडा था। इसी तरह 1905 में भगिनी निवेदिता ने भी एक झंडा सामने रखा था। लेकिऩ पहली बार भारत का गैर-आधिकारिक झंडा 1906 में ही फहराया गया था, जिसमें लाल, पीले और हरे रंग की एक-एक लाइन थी।

1907 के झंडे को पहले पेरिस और फिर बर्लिन में मेडम भीकाजी कामा और उनके निर्वासित साथी क्रांतिकारियों द्वारा फहराया गया था। इसे कामा के साथ वीर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा ने डिजाइन किया था। यह काफी कुछ पहले के झंडे जैसा था। हालांकि इसके ऊपर वाली पट्टी में सप्तऋषि बयां कर रहे सात स्टार्स और एक कमल था।

1917 में एक नया झंडा सामने आया। इस झंडे को डॉ एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने होम रूल आंदोलन के दौरान फहराया। इस तरह झंडे में तीसरी बार बदलाव किया गया। इसमें पांच लाल और चार हरी क्षैतिज लाइनें थीं। उसके ऊपर सप्तऋषि को ऱखा गया।

1921 में बेजवाड़ा में आयोजित ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटि के सत्र में आंध्रप्रदेश के एक युवा ने गांधी जी को यह झंडा दिया था। यह दो रंगों का बना हुआ था- लाल और हरा। लाल हिंदूओं और हरा मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व करता था। हालांकि उस युवक के सुझाव के बाद इसमें सफेद लाइन और चरखा भी जोड़े गए।

1931 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार करने का प्रस्ताव पारित किया। कांग्रेस ने औपचारिक रूप से इस झंडे को स्वीकार किया, जिसे इस साल 31 अगस्त को फहराया गया था। 1921 के झंडे में इसलिए बदलाव किया गया, क्योंकि कुछ लोगों ने इसके धार्मिक पक्ष को स्वीकार नहीं किया। सिख समुदाय ने भी कहा कि या तो 1921 के झंडे में उन्हें प्रतिनिधित्व दिया जाए या फिर धार्मिक रंगों को हटा दिया जाए। इस तरह 1931 में पिंगाली वेंकैय्या ने नया झंडा तैयार किया। इसके बीच में चरखा रखा गया।

1947 में राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में एक कमिटि का गठन राष्ट्रीय झंडा तय करने के लिए हुआ। कमिटि ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के झंडे को ही राष्ट्रीय झंडा स्वीकार कर लिया। हालांकि इसमें कुछ बदलाव भी किए गए। 1931 के इस झंडे के बीच में चरखे की जगह चक्र रखा गया, जो आज भी वही है।

झंडे का निर्माण- ब्यूरो ऑफ इंडियन स्डैंडर्ड्स (बीआईएस) ने झंडे के निर्माण के कुछ मानक तय कर रखे हैं। इसके तहत कपड़े, डाई, कलर, धागे, फहराने के तरीके आदि सभी कुछ बताए गए हैं। भारतीय झंडे सिर्फ खादी के ही बनाए जाते हैं। इसमें दो तरह के खादी के कपड़ों का उपयोग किया जाता है।

तिरंगे से जुड़े कोड ऑफ कंडक्ट भी हैं। झंडा राष्ट्रीय प्रतीक होता है। सामान्य लोग झंडे का उचित तरीके से उपयोग करें, इसके लिए ही कुछ कोड ऑफ कंडक्ट बनाए गए हैं।

झंडे के तीन रंगों के अलग-अलग महत्व और मतलब हैं। केसरिया साहस और त्याग का प्रतीक है, वहीं सफेद रंग ईमानदारी, शांति और शुद्धता का प्रतीक है। इसी तरह हरा रंग विश्वास, शौर्य और जीवन का प्रतीक है।

इसी तरह अशोक चक्र धर्म और कानून का प्रतीक है। अशोक चक्र में 24 स्पोक्स होते हैं और झंडा 2:3 के साइज में होना चाहिए।


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