डीए केस में हिमाचल के सीएम वीरभद्र सिंह को दिल्ली HC से नहीं मिली राहत
वीरभद्र का कहना है कि सीबीआइ ने उनके खिलाफ कार्रवाई गलत मंशा से की।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। आय से अधिक संपत्ति बनाने के मामले में हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ सीबीआइ का शिकंजा कस गया है। दिल्ली हाईकोर्ट की हरी झंडी मिलने के तत्काल बाद सीबीआइ ने वीरभद्र सिंह, उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह समेत नौ लोगों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल कर दिया है। वीरभद्र सिंह पर केंद्र में स्टील मंत्री रहने के दौरान 10,30,47,946 रुपये की आय से अधिक संपत्ति बनाने का आरोप है।
हिमाचल प्रदेश में एक साल के भीतर विधानसभा चुनाव होना है, ऐसे में सीबीआइ के आरोपपत्र से उनकी राजनीतिक मुश्किलें भी बढ़ सकती हैं। दिल्ली हाईकोर्ट ने वीरभद्र सिंह की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने सीबीआइ की एफआइआर को गैरकानूनी बताते हुए उसे निरस्त करने की मांग की थी।
जस्टिस विपिन सांघी ने अपने फैसले में साफ कर दिया कि केंद्र में स्टील मंत्री रहने के दौरान की गई कमाई की जांच का अधिकार सीबीआइ को है और इसके लिए उसे किसी की अनुमति की जरूरत नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के एक अक्टूबर 2015 उस अंतरिम आदेश भी निरस्त कर दिया, जिसमें वीरभद्र सिंह की गिरफ्तारी और उनके खिलाफ आरोपपत्र दाखिल करने पर रोक लगा दी थी।
वीरभद्र सिंह 2009 से 2012 के दौरान केंद्र में स्टील मंत्री थे। दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के बाद सीबीआइ को वीरभद्र सिंह के खिलाफ कार्रवाई करने की खुली छूट मिल गई। सीबीआइ ने इस मौके का पूरा फायदा भी उठाया और चंद घंटे के भीतर जस्टिस वीरेंद्र कुमार गोयल की विशेष सीबीआइ अदालत में आरोपपत्र दाखिल भी कर दिया।
आरोपपत्र में वीरभद्र सिंह और उनकी पत्नी पर आय से अधिक संपत्ति बनाने का आरोप लगाया है। इसके साथ ही सीबीआइ ने एलआइसी एजेंट आनंद चौहान को भी आरोपी बनाया है। चौहान पर करोड़ों रुपये नकद लेकर वीरभद्र सिंह और उनके परिवार के सदस्यों के नाम पर बीमा पालिसी खरीदने का आरोप है। आनंद चौहान करोड़ रुपये की नकदी का स्त्रोत बताने में विफल रहा। आनंद चौहान को ईडी पहले ही मनी लांड्रिंग के आरोप में गिरफ्तार कर चुकी है और फिलहाल वह न्यायिक हिरासत में जेल में है।
आरोपपत्र दाखिल होने के बाद वीरभद्र सिंह के पास विकल्प बहुत सीमित बचे हैं। दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को वे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं, लेकिन ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही को टालना उनके लिए आसान नहीं होगा। सीबीआइ के आरोपपत्र के बाद ट्रायल कोर्ट आरोपियों के खिलाफ समन जारी करेगा और वीरभद्र सिंह समेत सभी आरोपियों को जमानत लेनी होगी। जमानत नहीं मिलने की स्थिति में उन्हें जेल भी जाना पड़ सकता है। सीबीआइ ने इस मामले की प्रारंभिक जांच 2012 में ही शुरू कर दी थी। लेकिन तीन साल तक अदालती कार्रवाई में ही उलझी रही।
2015 में सीबीआइ ने इस मामले में पहली बार एफआइआर दर्ज करते हुए वीरभद्र सिंह और उनकी पत्नी को आरोपी बनाया। इसके साथ ही ईडी ने भी इसी मामले में उनके खिलाफ मनी लांड्रिंग का केस कर्ज कर लिया। सीबीआइ और ईडी की संयुक्त टीम मुख्यमंत्री आवास समेत 11 स्थानों पर छापा भी मारा था। सीबीआइ के आरोपपत्र के बाद ईडी वीरभद्र सिंह के खिलाफ मनी लांड्रिंग रोकथाम कानून के तहत अलग से आरोपपत्र दाखिल करेगा।
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