अदालतें देखें कौन सा मृत्युपूर्व बयान है सच के करीब
पीठ ने कहा, 'ऐसे मामले में जहां एक से ज्यादा मृत्युपूर्व बयान हो तो यह अदालत की जिम्मेदारी बनती है कि उनमें से एक को उसके सही परिपे्रक्ष्य में विचार करे।
नई दिल्ली, (प्रेट्र)। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि किसी मामले में एक से ज्यादा मृत्युपूर्व बयान हों तो अदालतें खुद ही जांच कर देखें कि किस बयान से सच्चाई की झलक मिल रही है। जस्टिस अभय मनोहर सप्रे और आशोक भूषण की पीठ ने 27 वर्ष पुराने मामले का पटाक्षेप करते हुए यह व्यवस्था दी।
पीठ ने कहा, 'ऐसे मामले में जहां एक से ज्यादा मृत्युपूर्व बयान हो तो यह अदालत की जिम्मेदारी बनती है कि उनमें से एक को उसके सही परिपे्रक्ष्य में विचार करे। अदालत खुद को संतुष्ट करे कि उनमें से कौन सा एक बयान मामले की सच्चाई प्रदर्शित करता है।'
यह मामला महाराष्ट्र का है जिसमें एक लड़की ने अपने दो बयान में प्रेमी पर उसे आग के हवाले करने का आरोप लगाया था। अपने तीसरे बयान में उसने इन्कार किया था। सुप्रीम कोर्ट ने बांबे हाई कोर्ट और सुनवाई करने वाली अदालत के फैसले में हस्तक्षेप करने से मना कर दिया। निचली अदालत ने 18 वर्षीया लड़की के पहले दो बयान को सही मानते हुए आरोपी राजू दवाडे़ को सजा सुनाई थी।