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किन्नरों से नफरत पड़ सकती है भारी, दो साल तक जेल की सजा

समलैंगिकता अपराध है तो कानून के मुताबिक उस पर कार्रवाई होगी लेकिन कोई उनके प्रति लोगों में नफरत नहीं फैला सकता।

By Rajesh KumarEdited By: Published: Mon, 27 Mar 2017 09:53 PM (IST)Updated: Tue, 28 Mar 2017 02:24 AM (IST)
किन्नरों से नफरत पड़ सकती है भारी, दो साल तक जेल की सजा
किन्नरों से नफरत पड़ सकती है भारी, दो साल तक जेल की सजा

माला दीक्षित, नई दिल्ली। किन्नरों और समलैंगिकों से नफरत और उनके खिलाफ लोगों को उकसाना मंहगा पड़ सकता है। अगर विधि आयोग की चली तो इन वर्गों के खिलाफ ज़हर उगलने पर हेट स्पीच (घृणास्पद भाषण) के दायरे में नप सकते हैं। विधि आयोग ने नफरत फैलाने को अलग से अपराध बनाने की सिफारिश करते हुए कानून की इतनी व्यापक परिभाषा दी गई है कि उसमें समाज का वह वर्ग भी शामिल हो गया है जिसे सम्मान देने में समाज अक्सर कोताही बरतता है। पहली बार आपराधिक कानून की परिभाषा में जेंडर आइडेन्टिटी और सैक्सुअल ओरिंटेशन जैसे शब्द जोड़े गये हैं। इन शब्दों में किन्नर और समलैंगिक वर्ग स्वत: शामिल हो जाता है।

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विधि आयोग ने घृणास्पद भाषणों के अपराध को परिभाषित करते हुए उसकी कानूनी रूपरेखा तैयार कर सरकार को रिपोर्ट सौंपी है। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) में संशोधन कर दो नई धाराएं 153 सी और 505ए जोड़ने की सिफारिश की है। जिसमें कहा गया है कि धर्म, वर्ण, जाति या समुदाय, लिंग, जेंडर आइडेन्टिटी, सैक्सुअल ओरिन्टेशन, जन्म स्थान, आवास, भाषा, दिव्यांग और जनजाति के आधार पर अगर कोई नफरत फैला कर हिंसा के लिए उकसाता है तो उसे दो वर्ष तक के कारावास और 5000 तक के जुर्माने की सजा हो सकती है।

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आयोग के अध्यक्ष जस्टिस बीएस चौहान कहते हैं कि हेट स्पीच को कानूनी दायरे में बांधते समय देश विदेश के कानून और अंतरराष्ट्रीय संधियों को ध्यान में रखा गया है और कोशिश की गई है कि ज्यादा से ज्यादा वर्ग इसकी परिभाषा में शामिल हो। कोई व्यक्ति किसी वर्ग या समूह के प्रति उसकी शारीरिक अक्षमता या जेन्डर आइडेन्टिटी के आधार पर भी नफरत फैला कर लोगों को न उकसाने पाये, जिससे कि उस वर्ग में भय का माहौल पैदा हो। समलैंगिकता अपराध है तो कानून के मुताबिक उस पर कार्रवाई होगी लेकिन कोई उनके प्रति लोगों में नफरत नहीं फैला सकता।

कानून में आयोग ने अभिव्यक्ति की आजादी और हेट स्पीच के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की है। इसमें भाषण देने वाले की मंशा को आधार माना गया है। अगर भाषण देने वाले की मंशा लोगों को उकसाना नहीं हो तो हेट स्पीच का अपराध नहीं बनता। पूर्व चीफ पब्लिक प्रासीक्यूटर केडी भारद्वाज कानून की व्यापक परिभाषा और उसमें किन्नर व समलैंगिकों को शामिल किये जाने पर कहते हैं कि अभी तक ये वर्ग क्रिमिनल ला के संरक्षण से बाहर था।

आयोग ने रिपोर्ट में नेताओं के घृणास्पद भाषणों पर कहा है कि चुनाव में लाभ लेने के लिए अक्सर ऐसे भाषण होते हैं लेकिन ये ध्यान रखा जाना चाहिए कि इससे नफरत न फैले। राजनैतिक प्रतिद्वंदिता गलत भाषा के इस्तेमाल के लिए प्रेरित कर सकती है लेकिन अगर उसमें मंशा गलत नहीं है तो ऐसे भाषण पर रोक लगाना ठीक नहीं है।

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