... तीन साल पहले ही सहारनपुर को सुलगाने की जमीन हो गई थी तैयार
सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक सहारनपुर हिंसा को सुनियाोजित रणनीति के जरिए अंजाम दिया गया।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । सहारनपुर के हिंसा प्रभावित इलाकों की तस्वीर पहले आज जैसी नहीं थी। दलित और ठाकुर समुदाय में तमाम बुनियादी अंतरों के बाद भी समरसता बनी रही। लेकिन कुछ लोगों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा कुछ इस कदर बढ़ी कि सहारनपुर सुलगने लगा। नफरत की आग में हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों के साथ साथ वो लोग भी जल रहे हैं जिनका इससे कोई नाता नहीं है। लेकिन सच ये है कि सहारनपुर की फिजा में तनाव अपने चरम पर है। यूपी सरकार के उच्च स्तरीय अधिकारियों की रिपोर्ट के मुताबिक इस हिंसा के पीछे जिम्मेदार लोगों की कुत्सित मंशा साफ नजर आ रही है।
2014 में तैयार हुई जमीन
रिपोर्ट के मुताबिक भीम सेना 2014 के लोकसभा चुनाव के समय सक्रिय हुई थी। इस सेना पर उस समय भी इलाके में जातीय विद्वेष फैलाने का आरोप लगा था। लेकिन प्रशासन को उस वक्त भनक नहीं लग सकी। भीम सेना से जुड़े लोग इस तरह का माहौल बनाने में जुटे रहे ताकि आपसी सौहार्द बेपटरी हो जाए। 23 मई को मायावती के सहारनपुर आने के बाद बड़गांव थानाक्षेत्र में हिंसा भड़क उठी। रिपोर्ट के मुताबिक षड़यंत्रकारियों का मकसद साफ था वो चाहते थे कि दलितों का गुस्सा यूं ही बना रहे और भविष्य में दलित-मुस्लिम गठजोड़ की मंशा परवान चढ़ सके। सहारनपुर में जातीय हिंसा के आरोपी चंद्रशेखर की गिरफ्तारी को लेकर किसी तरह का बवाल न हो इसके लिए गृह सचिव मणि प्रसाद मिश्रा की रिपोर्ट पर डीएम ने इंटरनेट सेवाओं को बंद करने का निर्देश दिया था। अब चंद्रशेखर की गिरफ्तारी के लिए एसटीएफ और एटीएस की टीमों सहारनपुर और उसके आस पास सात जगहों पर डेरा डाले हुई है।
चंद्रशेखर के अलग-अलग खातों में 50 लाख रुपये
शब्बीरपुर में हिंसा के सूत्रधार माने जा रहे भीम सेना के संस्थापक चंद्रशेखर के खाते में अलग-अलग 50 लाख रुपये जमा कराने का मामला सामने आया है। अधिकारियों के मुताबिक भीम सेना के खाते में अलग अलग लोगों ने थोड़ी थोड़ी राशि के जरिए 50 लाख रुपये जमा किए। चंद्रशेखर को आर्थिक मदद पहुंचाने वाले नेताओं की कुंडली भी खंगाली जा रही है। रिपोर्ट में माना गया है कि 30 से 40 लाख रुपये की छह नेताओं ने जो आर्थिक मदद दी है उसे भीम सेना के अलग अलग पदाधिकारियों ने विभिन्न खातों में जमा कराया है। चंद्रशेखर और छह नेताओं के बीच मोबाइल फोन पर बातचीत, विभिन्न स्थानों पर उनके मिलने का रिकॉर्ड तैयार किया गया है ताकि आरोपित नेताओं की गिरफ्तारी पर किसी तरह का हो हल्ला न मचे।
नफरत की जमीन पर राजनीति
23 मई की हिंसा के लिए गृह सचिव की रिपोर्ट में भीम सेना से जुड़े दलितों का हाथ माना है। गृह सचिव ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भीम सेना के सदस्य अपने संदेशों को पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया की मदद ले रहे हैं। बताया जा रहा है कि इसी तरह का प्रयोग पिछले 34 दिन में पांच बार जातीय हिंसा में किया गया। रिपोर्ट के मुताबिक 20 अप्रैल को सड़क दुधली में हुई जातीय हिंसा के बाद माहौल शांत था। लेकिन पांच मई को थाना बड़गांव के शब्बीरपुर में हुआ बवाल राजनीतिक षड़यंत्र की देन था। इसे अंजाम देने के लिए विभिन्न दलों के 6 नेताओं के इशारे पर बड़ी संख्या में बाहरी युवक बुलाए गए थे।
एक नजर में सहारनपुर हिंसा
नौ मई को सहारनपुर में आठ स्थानों पर हिंसा मात्र गांधी पार्क में धरना-प्रदर्शन की अनुमति न देने पर हुई थी। यदि हिंसा होती तो गांधी पार्क या किसी एक स्थान पर हो सकती थी। लेकिन आठ जगहों पर हिंसा होना इस बात का प्रमाण है कि यह सब कुछ सुनियोजित था। इस हिंसा के लिए पुलिस जांच में भीम सेना का नाम स्पष्ट तौर पर सामने आया है। इस संगठन से संस्थापक चंद्रशेखर के खिलाफ दो मुकदमे दर्ज किए गए हैं।
मुकदमे के बाद पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार 10 से 12 मई के बीच तीन बार रात को चंद्रशेखर की गिरफ्तारी के लिए उसके छुटमलपुर स्थित आवास पर पुलिस ने दबिश दी लेकिन उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सका। 21 मई को ये सबके जानकारी में थी कि दिल्ली के जंतर मंतर पर चंद्रशेखर शामिल था। लेकिन दो सियासी नेताओं ने इस बात का खौफ दिखाया कि यदि चंद्रशेखर को गिरफ्तार किया गया तो इसका गलत संदेश जाएगा। लिहाजा दिल्ली गई पुलिस टीम उसे गिरफ्तार नहीं कर सकी।
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