फिर से हरियाली की चादर ओढ़ेगा उजड़ा हुआ जंगल
सारंडा के जंगल को साल के क्लोन से किया जा रहा आबाद...
जमशेदपुर (वीरेंद्र ओझा)। एशिया में ख्याति रखने वाले सारंडा के जंगल की हरियाली नक्सलियों और वन माफियाओं ने छीन ली है, लेकिन अर्से बाद यह जंगल दोबारा आबाद होने जा रहा है। वन विभाग ने क्लोन के जरिये साल के पौधे तैयार किए हैं। सारंडा के जंगलों में ये पौधे इन दिनों लगाए जा रहे हैं। जब ये लहलहाएंगे तो सारंडा के जंगल फिर से अपने पुराने स्वरूप में नजर आएंगे।
सारंडा के जंगल में हर तरह के पेड़ थे, लेकिन साल के पेड़ सबसे अधिक थे। माफिया तत्वों ने दर्जनों आरा मशीनें लगाकर हजारों पेड़ काट डाले। वन की लकड़ी के अवैध कारोबार से नक्सलियों ने भी जमकर काली कमाई की। नतीजा यह है कि करीब तीन चौथाई जंगल बर्बाद हो चुका है। 700 वर्ग किलोमीटर में फैला सारंडा छत्तीसगढ़ और ओडिशा की सीमा से सटा है, लेकिन झारखंड के हिस्से में तीन-चौथाई से ज्यादा हिस्सा आता है। इसे पुराने स्वरूप में लाने के लिए वन विभाग सक्रिय हुआ। चूंकि अन्य पेड़ों की तरह साल को नर्सरी में सामान्य तरीके से नहीं उगाया जा सकता इसलिए पौधरोपण के सभी विकल्पों पर विचार किया गया। सरायकेला-खरसावां के गम्हरिया स्थित वन अनुसंधान केंद्र में 2010 से साल के क्लोन तैयार करने का काम शुरू हुआ। अब तक लगभग 22,000 पौधे तैयार किए जा चुके हैं, जिसमें से करीब पांच हजार पौधे लगाए भी जा चुके हैं। इनके विकास क्रम पर नजर रखी जा रही है।
ऐसे तैयार हो रहा क्लोन
वन अनुसंधान केंद्र में क्लोन बनाने के लिए सारंडा से साल की टहनियां काटकर लाई जाती हैं। पतले डंठल छीलकर निचले हिस्से में मिट्टी लगाकर ग्रीन हाउस में रखा जाता है। अधिकतम तापमान 37 डिग्री व आर्द्रता 70-90 फीसद तक रखी जाती है। जैसे ही पत्तियां आती हैं, इसे बाहर लगाया जाता है।
मुश्किल था काम
दुनिया में यही वृक्ष है, जिसे चाहकर नहीं उगाया जा सकता। गर्मी के मौसम में इस पेड़ के बीज हवा में फैलते हैं, यदि 24-48 घंटे में बारिश नहीं हुई तो बीज मर जाते हैं। इसी को देखते हुए क्लोन विधि को आजमाने का फैसला किया गया। कहते हैं कि सारंडा में जब तक साल के जंगल थे, तब तक आसपास अच्छी बारिश होती थी, लेकिन अब बारिश अनियमित हो गई है।
कई तरह के होंगे लाभ
झारखंड में खनन ही सरकारी राजस्व का बड़ा स्नोत है। अवैध खनन रुकने से राजस्व की क्षति बंद हुई है। चूंकि साल की लकड़ी में कीड़े नहीं लगते हैं, सो मांग अधिक है। साल के पत्तों से भोजन की थाली तैयार होती है। इससे क्षेत्रीय रोजगार को बढ़ावा मिलेगा।
साल के क्लोन से जो पौधे तैयार हो रहे हैं, उसमें 45 फीसद ही सही तरीके से बढ़ रहे हैं। इसके बावजूद हमारा प्रयास जारी है। उम्मीद है कि आने वाले 10-15 वर्षों में सारंडा पुराने स्वरूप के करीब पहुंच जाएगा।- अरविंद कुमार सिंह, प्रभारी, वन अनुसंधान केंद्र
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