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ग्रीस में जनमत संग्रह शुरू, 'हां' और 'ना' पर टिका है देश का भविष्‍य

आर्थिक संकट से निकलने की जद्दोजहद में लगे ग्रीस के लोग जनमत संग्रह के जरिए आज स्थिति साफ कर देंगे। जनमत संग्रह सुबह सात बजे से शुरू हो गया, जो कि शाम 7 बजे तक चलेगा। प्रधानमंत्री एलेक्सिस सिप्रास ने 'ना' में वोट करने की अपील करते हुए बेलआउट के

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 05 Jul 2015 08:06 AM (IST)Updated: Sun, 05 Jul 2015 11:48 AM (IST)
ग्रीस में जनमत संग्रह शुरू, 'हां' और 'ना' पर टिका है देश का भविष्‍य

एथेंस। आर्थिक संकट से निकलने की जद्दोजहद में लगे ग्रीस के लोग जनमत संग्रह के जरिए आज स्थिति साफ कर देंगे। जनमत संग्रह सुबह सात बजे से शुरू हो गया, जो कि शाम 7 बजे तक चलेगा। प्रधानमंत्री एलेक्सिस सिप्रास ने 'ना' में वोट करने की अपील करते हुए बेलआउट के ब्लैकमेल को नकारने की अपील जनता से की है। दूसरी ओर, हर बीतते पल के साथ सरकार के रुख के प्रति लोगों का समर्थन घटता दिख रहा है।

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राजधानी एथेंस में सरकार के समर्थन में करीब 25,000 लोगों ने रैली निकाली। इससे कुछ ही दूरी पर करीब 20,000 लोग सरकार के विरोध में जमा हुए और 'हां' के पक्ष में मतदान की अपील की। संकट के और गहराने की आशंका को देखते हुए ग्रीसवासी हां की तरफ रुख करते नजर आ रहे हैं। इधर, यूरोपीय संघ (ईयू) और अंतरराष्ट्रीरीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) ने जनमत संग्रह से पहले ग्रीस पर दबाव बढ़ा दिया है।

ईयू ने कहा है कि जनमत संग्रह को नकारने पर ग्रीस को यूरो जोन से बाहर होना पड़ सकता है। वहीं, आइएमएफ ने कहा है कि जनवरी में जब से सीरीजा पार्टी सत्ता में आई है देश की वृद्धि की संभावना नाटकीय रूप से घटी है।

एक करोड़ वोटर
रविवार को करीब एक करोड़ लोग वोट डालेंगे। 19,159 मतदान केंद्र बनाए गए हैं। इस कवायद करीब 1.6 अरब रुपये खर्च आएगा जो जनवरी में हुए आम चुनाव का आधा है।

ग्रीस की बदहाली की बड़ी वजहें

कांटे की टक्कर

सर्वेक्षण कांटे की टक्कर बता रहे हैं। एल्को की रायशुमारी के मुताबिक 44.8 फीसद लोग हां और 43.4 फीसद लोग ना के पक्ष में हैं। ब्लूमबर्ग के सर्वे के अनुसार 43 फीसद लोगों के हां और 42.5 फीसद लोगों के ना के पक्ष में वोट डालने के आसार हैं।

आतंकित कर रहे हैं ऋणदाता

ग्रीस के वित्त मंत्री यानिस वारफाकिफ ने ऋणदाताओं पर बेल आउट प्रस्ताव को मानने के लिए आतंकित करने का आरोप लगाया है। साथ ही उन्होंने कहा कि यदि यूरो जोन से ग्रीस को बाहर जाने के लिए मजबूर किया गया तो इसके गंभीर नतीजे होंगे।

ग्रीस में दवा और रोटी का भारी संकट

अंतरराष्ट्रीय ऋण के बोझ के नीचे छटपटा रहे ग्रीस में यूं तो आज जनमत संग्रह होने जा रहा है, लेकिन उससे पहले देश में जनता के सामने रोटी और दवा जैसी बुनियादी चीजों का भारी संकट आ खड़ा हुआ है। देश की अर्थव्यवस्था का मूल आधार माने जाने वाले पर्यटन उद्योग को भी इस कारण भारी धक्का पहुंचा है।
द्वीपों पर कम हुआ आना

उम्मीद

सिप्रास को उम्मीद में है कि 'ना' में परिणाम आने पर यूरोपीय सहयोगियों के साथ बातचीत में ग्रीस का हाथ मजबूत होगा। आर्थिक संकट से निकलने के लिए वह बेहतर समझौता करने में कामयाब रहेगा। बैंकिंग कामकाज सामान्य हो जाएंगे।

आशंका

'हां' में नतीजे आने पर यूरो जोन में ग्रीस की स्थिति कमजोर हो सकती है। सरकार को इस्तीफा देना पड़ सकता है। बेलआउट की शर्तें मानने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।

देश में पर्यटन के केंद्र माने जाने वाले मायकोनोज और सांटोरिनी द्वीपों में पर्यटकों का आना बेहद कम हो गया है। इसका एक बहुत बड़ा कारण खाद्य आपूर्ति की कमी बताई जा रही है। वहीं दूसरी ओर दवाओं की भी भारी कमी है क्योंकि ग्रीस में अधिकांश दवाएं आयात की जाती हैं और बैंकों के बंद होने के कारण दवा कंपनियां अपने सप्लायर्स को पैसे नहीं भेज पा रही हैं। कुछ ऐसी ही हालत खाद्यान्न की भी है। देश में खाने के लिए अधिकांश वस्तुएं बाहर से आती हैं, लेकिन बैंकों के बंद होने के उनके रास्ते भी बंद हैं।

बहुत कुछ हुआ ठप

ग्रीस की नेशनल कन्फेडेरेशन ऑफ हेलेनिक कॉमर्स के अनुसार देश में आयात, निर्यात, कारखाने और सभी तरह का यातायात ठप पड़ा है। खाद्यान्न और ईंधन दो ही सेक्टर हैं जिनकी मांग सब तरफ से उठ रही है। हालांकि देश के दवा विक्रेता और सुपरमार्केट्स कुछ दिन पहले ही सरकार को दवाओं और खाद्यान्न की कमी की आशंका के बारे में चेता चुके हैं।

बैंकों में सिर्फ 1 अरब यूरो ही नकद

उधर ग्रीस के बैंकों के अनुसार उनके पास अगले कुछ दिनों तक के लिए केवल 1 अरब यूरो नकद बचे हैं और उन्हें यूरोपियन सेंट्रल बैंक से आपात स्थिति में मदद चाहिए। बैंकों के अनुसार चाहे जनमत का नतीजा कुछ भी रहे, देश की अर्थव्यवस्था को एक निश्चित रफ्तार पर चलाए रखने के लिए यह मदद हर हालत में जरूरी है ताकि जनता के सामने मंडरा रहा मूलभूत वस्तुओं के संकट से उबरा जा सके।

यूरोपियन कमीशन को लिखा

हालांकि, पिछले सप्ताह ही यूरोपियन फेडरेशन ऑफ फार्मास्युटिकल इंडस्ट्रीज एंड एसोसिएशन (ईएफपीआइए) यूरोपियन कमीशन को ग्रीस के सामने दवाओं के संभावित संकट के बारे में लिख चुका था। कमीशन के अनुसार इस कारण जनता की स्वास्थ्य सेवाओं पर गहरा संकट आ सकता है।

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