खतरनाक तरीके से घट रहा ग्लेशियरों का स्नो कवर
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के अध्ययन में खुलासा हुआ है कि ग्लेशियरों का स्नो कवर खतरनाक तरीके से घट रहा है।
सुमन सेमवाल, देहरादून। छोटे-बड़े 968 ग्लेशियर वाले उत्तराखंड के लिए अच्छी खबर नहीं है। जिन स्नो कवर क्षेत्रों की बदौलत ग्लेशियरों के पिघलने की दर न्यूनतम रहती है, उनका दायरा 50 मीटर तक घट गया है। इस बात का खुलासा वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के अध्ययन में हुआ है।
केंद्र के प्रभारी डॉ. डीपी डोभाल के अनुसार गंगोत्री, चौराबाड़ी, डुकरानी व दूनागिरी ग्लेशियर के अध्ययन में यह बात सामने आई कि इनके स्नो कवर क्षेत्र में औसतन 50 मीटर की कमी आई है। ग्लेशियर का स्नो कवर एरिया जितना अधिक होगा, उनमें बर्फ टिके रहने का तापमान उतना ही अनुकूल रहता है।
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डॉ. डोभाल के अनुसार स्नो कवर क्षेत्र में आ रहे बदलाव का पता लगाने के लिए कई सालों के आंकड़ों का विश्लेषण भी किया गया। पता चला कि आठ-दस साल पहले तक बर्फबारी सितंबर से शुरू होकर जनवरी या फरवरी तक जारी रहती थी। यह अब जनवरी से शुरू होकर फरवरी व मार्च तक हो रही है। मार्च के तुरंत बाद वातावरण गर्म हो रहा है और ताजा बर्फ उसी रफ्तार से पिघलती जा रही है। सीधे तौर पर कहा जा सकता है कि जलवायु परिवर्तन के चलते मौसम शिफ्ट हो रहा है और इसी का विपरीत असर हिमालय के स्नो कवर पर पड़ रहा है। यह स्थिति रही तो आने वाले एक-दो दशक में अधिकतर ग्लेशियरों की सेहत में गिरावट आएगी।
हिमाचल के दो ग्लेशियर शामिल
डॉ. डीपी डोभाल के अनुसार हिमाचल प्रदेश की लाहौल स्पीति घाटी के पंछीनाला और पैपस्यू ग्लेशियर को अध्ययन का हिस्सा बनाया गया है। इनका निरीक्षण भी कर लिया गया है। अब यहां ऑटो वेदर सिस्टम लगाए जाएंगे। डॉ. डोभाल ने बताया कि ग्लेशियर की सेहत में आ रहे हर बदलाव की जांच कर बताया जाएगा कि ये ग्लेशियर किस स्थिति में हैं।
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