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पुलिस कार्रवाई के बाद गोरखा नेता ने की केंद्र से हस्तक्षेप की मांग

अलग राज्य की मांग पर अपने रूख को और कड़ा करते हुए जीजेएम ने सोमवार को प्रस्तावित गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन के मुद्दे पर त्रिपक्षीय बैठक में हिस्सा नहीं लेने का फैसला किया है।

By Manish NegiEdited By: Published: Thu, 15 Jun 2017 09:39 PM (IST)Updated: Thu, 15 Jun 2017 09:39 PM (IST)
पुलिस कार्रवाई के बाद गोरखा नेता ने की केंद्र से हस्तक्षेप की मांग
पुलिस कार्रवाई के बाद गोरखा नेता ने की केंद्र से हस्तक्षेप की मांग

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। अपने नेताओं की गिरफ्तारी और पुलिस के छापे के बाद गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) ने केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की गुहार लगाई है। इस सिलसिले में जीजेएम के महासचिव रोशन गिरी और दार्जीलिंग से सांसद व केंद्रीय राज्यमंत्री एसएस अहलुवालिया ने गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की। अलग राज्य की मांग पर अपने रूख को और कड़ा करते हुए जीजेएम ने सोमवार को प्रस्तावित गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन के मुद्दे पर त्रिपक्षीय बैठक में हिस्सा नहीं लेने का फैसला किया है।

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रोशन गिरी ने राजनाथ सिंह को बताया कि पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार पर दार्जीलिंग के स्कूलों में बंगाली भाषा को अनिवार्य बनाकर गोरखा अस्मिता को नष्ट करने की कोशिश कर रही है, जिसे गोरखा समुदाय किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं कर सकता है। उन्होंने आरोप लगाया कि गोरखा नेताओं के घरों और दफ्तरों पर खुद ही हथियार रखकर बंगाल पुलिस उन्हें बदनाम करने की कोशिश कर रही है। उनके अनुसार गोरखा समुदाय के खिलाफ पुलिस का दमन चरम है और ऐसे में आने वाले दिनों में स्थिति और भी खराब हो सकती है। उन्होंने मांग की कि हालात को काबू में करने के लिए केंद्र सरकार को तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए।

रोशन गिरी ने साफ कर दिया कि अब अलग गोरखा राज्य बनने तक उनका आंदोलन जारी रहेगा और गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन पर होने वाली त्रिपक्षीय बातचीत का अब कोई मतलब नहीं रह गया है। क्षेत्रीय प्रशासन की स्वायत्तता से जुडे विभिन्न मुद्दों को लेकर सोमवार को गृहमंत्रालय में केंद्र, पश्चिम बंगाल और जीजेएम के प्रतिनिधियों के बीच बातचीत होनी थी। उन्होंने कहा कि गोरखालैंड की समस्या एक राजनीतिक समस्या है और इसका समाधान भी राजनीतिक ही हो सकता है। पुलिस बल के प्रयोग से स्थिति और बदतर हो सकती है। उन्होंने कहा कि बंगाली भाषा को स्कूलों में अनिवार्य बनाने वाली अधिसूचना को राज्य सरकार को वापस लेना ही होगा। इसके वापस लिये जाने तक आंदोलन जारी रहेगा।

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