जला रहे शिक्षा का दीया ताकि रुके पलायन
आदिवासी बस्ती में पहुंच बच्चों को पढ़ाते हैं डॉक्टर दंपती...
देवघर (कंचन सौरभ मिश्रा)। झारखंड के देवघर जिले का मोहनपुर प्रखंड। इसी प्रखंड में है बाबूपुर गांव। देवघर जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी की दूर। करीब 500 की आबादी है। कुल 60 घर आदिवासियों के हैं। सभी गरीबी की रेखा के नीचे बसर करते हैं। खेतों में मजदूरी के सिवा करने को कुछ नहीं है। मजबूरी में शहरों की ओर पलायन करना पड़ता है। पूरा परिवार घोर संघर्ष में कूद पड़ता है। परिवार के यहां-वहां भटकने का असर बच्चों की शिक्षा पर अधिक पड़ता है। जिससे अधिकांश अशिक्षित ही रह जाते हैं। यह अशिक्षा उन्हें फिर इसी दलदल में फंसाए रखती है। अपने मां-बाप की ही तरह एक दिन उन्हें भी पलायन करने पर विवश होना पड़ता है। इनकी इस समस्या को देर-सबेर शिक्षा ही दूर कर सकती है। इसी विचार से प्रेरित हो एक डॉक्टर दंपती ने इन आदिवासी परिवारों के बच्चों को शिक्षित बनाने का प्रयास शुरू किया है। देश भर में हर गांव की यही कहानी है। जहां ऐसे वंचित परिवार अशिक्षा के कारण पीढ़ी दर पीढ़ी गरीबी को ढोते चले आ रहे हैं। दरकार है इसी तरह
के प्रयास की, जो यह दंपती कर रहा है।
ताकि टूट सके गरीबी का चक्र : गांव के इन वंचित परिवारों के बच्चे तालीम से वंचित न हों। और अशिक्षा के चलते गरीबी के कुचक्र में न फंसें, इसी सोच के साथ देवघर के चिकित्सक दंपती सर्जन डॉ. राजीव पांडेय और स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. किरण ने इस गांव को गोद लिया। गांव के ही बंद पड़े एक विद्यालय के बरामदे में बच्चों का विशेष स्कूल शुरू करवाया। गांव के ही दो शिक्षित युवक मटरू मुर्मू और संतोष मुर्मू को बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी सौंपी।
हर सप्ताह ये दंपती स्वत: गांव जाते हैं और बच्चों को पढ़ाते हैं, उनकी प्रगति की समीक्षा करते हैं। पढ़ाई से जुड़ी जरूरतों को पूरा करते हैं। बच्चों के साथ वक्त गुजारते हैं और उन्हें पढ़ने को प्रोत्साहित करते हैं। बच्चों की शिक्षा के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य का भी पूरा ध्यान रखते हैं। कॉपी, किताबें, पेंसिल और समय पर वस्त्र भी उपलब्ध कराते हैं। यह सिलसिला पिछले एक साल से चल रहा है। इनके इस प्रयास से गांव के बच्चों व उनके अभिभावकों में शिक्षा के प्रति ललक बढ़ी है। इस विशेष स्कूल में सुबह छह बजे से आठ बजे तक पहली से आठवीं तक के बच्चों को मुफ्त शिक्षा मिलती है। अभी यहां 54 बच्चे नामांकित हैं। यहां पढ़ने वाले बच्चों का अंग्रेजी और गणित का ज्ञान काबिल-ए- तारीफ है। यहां गुणवत्तापूर्ण शिक्षा ग्रहण करने के बाद बच्चे अपने सरकारी विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने को नियमित तौर पर जाते हैं।
बदल रही तस्वीर : गांव में दो ही लोग स्नातक हैं, मटरू और संतोष। नौकरी का प्रयास किया पर नहीं मिली। अब इस विशेष स्कूल में पढ़ाते हैं। इसके लिए डॉक्टर दंपती उन्हें राशि भी देते हैं। इसके अलावा वे खेती करते हैं। तमन्ना यही है कि बच्चे पढ़ाई कर नाम रोशन करें। चौथी कक्षा के छात्र शंकर कुमार का कहना है कि अपने डॉक्टर अंकल की तरह डॉक्टर बनना चाहता हूं। शंकर के पिता शहर में ड्राइवरी करते हैं। तीसरी कक्षा के छात्र संजीव मुर्मू ने बताया कि वह शिक्षक बनना चाहता है। ताकि अपने जैसे अन्य बच्चों को पढ़ा सके। संजीव के पिता शहर में मजदूरी करते हैं। गांव के सरजू मुर्मू ने बताया कि इस स्कूल में पढ़ने के कारण उनका पोता तो अंग्रेजी भी बोलता है।
शिक्षा व स्वास्थ्य हर बच्चे की बुनियादी जरूरत है। गरीबी इसमें आड़े न आए, बच्चे पढ़ाई कर अच्छे नागरिक
बनें यही प्रयास है। ऐसा ही विद्यालय अन्य आदिवासी गांव में भी संचालित करने की योजना है।- डॉ. राजीव पांडेय
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