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आरटीआइ के तहत जानकारी के लिए बताना होगा मकसद

देश में पारदर्शिता के दौर को एक बड़ा झटका लगा है। मद्रास हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि सूचना के अधिकार (आरटीआइ) के तहत जानकारी के लिए आवेदनकर्ताओं को हर हाल में उसका मकसद बताना होगा क्योंकि इससे उसके पंजीयन कार्यालय को फाइल पर क्या लिखा गया है यह बताने में राहत महसूस होगी। हाइ

By Edited By: Published: Sun, 21 Sep 2014 10:20 PM (IST)Updated: Sun, 21 Sep 2014 10:20 PM (IST)
आरटीआइ के तहत जानकारी के लिए बताना होगा मकसद

नई दिल्ली। देश में पारदर्शिता के दौर को एक बड़ा झटका लगा है। मद्रास हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि सूचना के अधिकार (आरटीआइ) के तहत जानकारी के लिए आवेदनकर्ताओं को हर हाल में उसका मकसद बताना होगा क्योंकि इससे उसके पंजीयन कार्यालय को फाइल पर क्या लिखा गया है यह बताने में राहत महसूस होगी। हाईकोर्ट ने एक मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के खिलाफ शिकायत पर की गई कार्रवाई की जानकारी मांगने वाली आरटीआइ याचिका पर यह फैसला दिया।

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न्यायमूर्ति एनपी वसंतकुमार और के रविचंद्रबाबू की खंडपीठ ने कहा कि आवेदनकर्ता को हर हाल में यह बताना होगा कि जो जानकारी उसने मांगी है उसका मकसद क्या है। साथ ही उसे संतुष्ट करना होगा कि उसका मकसद कानून सम्मत है। पीठ के इस फैसले का आरटीआइ कानून के तहत सूचना पाने में आगे चलकर बहुत कठिनाइयां पैदा हो सकती हैं। इस फैसले की विधि विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आलोचना की है।

पीठ ने कहा, 'यदि सूचनाएं किसी ऐसे व्यक्ति को दी जाती हैं जिसके पास कोई कारण नहीं है और ऐसी जानकारी मांगने का कोई मकसद नहीं है तो हमारा मानना है कि तो इस कानून का अंतिम लक्ष्य पूरा नहीं होता। ऐसी जानकारी मांगने के पीछे उसके मकसद को जाने बगैर जानकारी देना किसी बेपरवाह व्यक्ति को पैम्फलेट देने जैसा होगा।'

हालांकि आइटीआइ कानून में अलग से की धारा 6 (2) को शामिल किया गया है। इसमें विशेष रूप से कहा गया है कि ऐसी जानकारी मांगने के लिए कोई कारण बताने की जरूरत नहीं होगी। हाईकोर्ट के इस आदेश में आरटीआइ कानून की इस धारा का उल्लेख नहीं किया गया है।

वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने इस आदेश को 'गैरकानूनी' करार देते हुए कहा है कि यह आरटीआइ कानून की भावना के बिल्कुल खिलाफ है। उन्होंने कहा कि इससे पहले आए हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न आदेशों की तरह यह स्वयंसेवी आदेश है जो अदालत में प्रशासनिक पारदर्शिता पर लगभग रोक लगाता है।

आरटीआइ कार्यकर्ता सीजे करीरा का कहना है कि यह फैसला आरटीआइ कानून पर जोरदार प्रहार है क्योकि इसकी धारा 6 (2) पर स्पष्ट तौर से कुछ कहे बगैर उसे हटा देने के बराबर है। जानेमाने आरटीआइ विशेषज्ञ शेखर सिंह ने भी कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने आरटीआइ को मौलिक अधिकार के रूप में परिभाषित किया है। इसके इस्तेमाल के लिए किसी को कोई कारण बताने की जरूरत नहीं है। ऐसा ही विचार कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव के कार्यक्रम समन्वयक वेंकटेश नायक का भी है। उनका कहना है कि यह आरटीआइ कानून का पूरी तरह उल्लंघन है।

यह मामला बी भारती द्वारा दायर कई आरटीआइ याचिकाओं का है जिनमें चेन्नई जिले के इग्मोर के मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के खिलाफ शिकायत पर क्या कार्रवाई की गई इसकी भी जानकारी मांगी गई थी। इसके अलावा हाईकोर्ट के महापंजीयक की नियुक्ति के नियमों का विस्तृत ब्योरा भी मांगा गया था।

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