लैंगिक समानता से 27 फीसद बढ़ सकता है जीडीपी
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) की प्रमुख क्रिस्टीन लेगार्ड और नॉर्वे की प्रधानमंत्री एर्ना सॉल्बर्ग ने एक संयुक्त बयान में यह बात कही।
By Sachin BajpaiEdited By: Published: Sun, 21 Jan 2018 10:26 PM (IST)Updated: Mon, 22 Jan 2018 12:46 PM (IST)
style="text-align: justify;">नई दिल्ली, प्रेट्र : नौकरियों में महिलाओं की भागीदारी सामाजिक ही नहीं, आर्थिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। यदि देश की श्रमशक्ति में महिलाओं की उपस्थिति भी पुरुषों जितनी हो जाए तो इससे सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 27 फीसद तक की वृद्धि होगी। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) की प्रमुख क्रिस्टीन लेगार्ड और नॉर्वे की प्रधानमंत्री एर्ना सॉल्बर्ग ने एक संयुक्त बयान में यह बात कही।
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) द्वारा दावोस में वार्षिक सम्मेलन की शुरुआत से ठीक पहले प्रकाशित दस्तावेज में दोनों नेताओं ने 2018 को महिलाओं की कामयाबी का साल बनाने की वकालत की। उन्होंने कहा कि महिलाओं के प्रति भेदभाव और हिंसा का समय लद चुका है। लेगार्ड और सोल्बर्ग सोमवार से शुरू हो रहे वार्षिक महिला सम्मेलन की अध्यक्षता कर रही हैं। भारत की सामाजिक उद्यमी चेतना सिन्हा भी सम्मेलन की सह अध्यक्षता करेंगी। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप समेत 70 देशों के प्रमुख शामिल होंगे। संयुक्त बयान के मुताबिक, 'महिलाओं के लिए सम्मान और अवसरों की जरूरत अब सार्वजनिक संवाद का अहम हिस्सा होने लगा है। महिलाओं और लड़कियों को सफल होने का अवसर मुहैया कराना न केवल सही है बल्कि यह समाज और अर्थव्यवस्था को भी बदल सकता है। आर्थिक आंकड़े खुद इसकी पुष्टि करते हैं। श्रमशक्ति में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के बराबर होने से जीडीपी को गति मिलेगी। उदाहरण के लिए ऐसा करने पर जापान की जीडीपी नौ फीसद और भारत की जीडीपी 27 फीसद तक तेज हो सकती है।'
उन्होंने कहा कि महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना किसी भी देश के लिए चुनौती है। यह एक ऐसा लक्ष्य जिससे हर देश को फायदा होगा। लेगार्ड और सॉल्बर्ग ने कहा कि महिलाओं को पिछड़ा रखने के कुछ कारक हर जगह हैं। करीब 90 फीसद देशों में लैंगिक आधार पर रुकावट डालने वाले एक या अधिक कानून हैं। कुछ देशों में महिलाओं के पास सीमित संपत्ति अधिकार हैं, जबकि कुछ देशों में पुरुषों के पास अपनी पत्नी को काम से रोकने का अधिकार है। कानूनी रुकावटों से इतर काम और परिवार में तालमेल बिठाना, शिक्षा, वित्तीय संसाधन और सामाजिक दबाव भी बड़ी बाधाएं हैं। उन्होंने कहा कि महिलाओं को परिवार का पालन करने के साथ ही कार्यस्थल पर सक्रिय रखने में मदद करना महत्वपूर्ण है।
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) द्वारा दावोस में वार्षिक सम्मेलन की शुरुआत से ठीक पहले प्रकाशित दस्तावेज में दोनों नेताओं ने 2018 को महिलाओं की कामयाबी का साल बनाने की वकालत की। उन्होंने कहा कि महिलाओं के प्रति भेदभाव और हिंसा का समय लद चुका है। लेगार्ड और सोल्बर्ग सोमवार से शुरू हो रहे वार्षिक महिला सम्मेलन की अध्यक्षता कर रही हैं। भारत की सामाजिक उद्यमी चेतना सिन्हा भी सम्मेलन की सह अध्यक्षता करेंगी। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप समेत 70 देशों के प्रमुख शामिल होंगे। संयुक्त बयान के मुताबिक, 'महिलाओं के लिए सम्मान और अवसरों की जरूरत अब सार्वजनिक संवाद का अहम हिस्सा होने लगा है। महिलाओं और लड़कियों को सफल होने का अवसर मुहैया कराना न केवल सही है बल्कि यह समाज और अर्थव्यवस्था को भी बदल सकता है। आर्थिक आंकड़े खुद इसकी पुष्टि करते हैं। श्रमशक्ति में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के बराबर होने से जीडीपी को गति मिलेगी। उदाहरण के लिए ऐसा करने पर जापान की जीडीपी नौ फीसद और भारत की जीडीपी 27 फीसद तक तेज हो सकती है।'
उन्होंने कहा कि महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना किसी भी देश के लिए चुनौती है। यह एक ऐसा लक्ष्य जिससे हर देश को फायदा होगा। लेगार्ड और सॉल्बर्ग ने कहा कि महिलाओं को पिछड़ा रखने के कुछ कारक हर जगह हैं। करीब 90 फीसद देशों में लैंगिक आधार पर रुकावट डालने वाले एक या अधिक कानून हैं। कुछ देशों में महिलाओं के पास सीमित संपत्ति अधिकार हैं, जबकि कुछ देशों में पुरुषों के पास अपनी पत्नी को काम से रोकने का अधिकार है। कानूनी रुकावटों से इतर काम और परिवार में तालमेल बिठाना, शिक्षा, वित्तीय संसाधन और सामाजिक दबाव भी बड़ी बाधाएं हैं। उन्होंने कहा कि महिलाओं को परिवार का पालन करने के साथ ही कार्यस्थल पर सक्रिय रखने में मदद करना महत्वपूर्ण है।
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