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ढिठाई पर अड़ा लूट-खसोट के आरोपों से घिरा फोर्टिस अस्पताल

फोर्टिस अस्पताल प्रबंधन खुली लूट के बाद भी ढिठाई के साथ यह सफाई देकर अपने को सही बताने की कोशिश कर रहा है कि उसने तो एमआरपी के हिसाब से ही पैसे लिए।

By Abhishek Pratap SinghEdited By: Published: Sat, 16 Dec 2017 04:14 PM (IST)Updated: Sat, 16 Dec 2017 04:30 PM (IST)
ढिठाई पर अड़ा लूट-खसोट के आरोपों से घिरा फोर्टिस अस्पताल
ढिठाई पर अड़ा लूट-खसोट के आरोपों से घिरा फोर्टिस अस्पताल

नई दिल्ली, [जागरण न्यूज नेटवर्क]। डेंगू के इलाज के नाम पर एक बच्ची के इलाज में 16 लाख रुपये का बिल बनाने वाले गुरुग्राम, हरियाणा के फोर्टिस अस्पताल का प्रबंधन उस रिपोर्ट के बाद भी ढिठाई पर आमादा है, जिसके तहत यह साबित हो रहा है कि उसने किस तरह दवाओं को मेडिकल सामग्री के मनमाने दाम वसूल किए।

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राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण यानी एनपीपीए के अनुसार, फोर्टिस अस्पताल ने आद्या सिंह के डेंगू के इलाज में काम आई दवाओं व अन्य मेडिकल सामग्री पर 200 से 1700 प्रतिशत तक मुनाफा वसूला। इसी के चलते करीब 15 दिनों के उपचार का बिल 16 लाख रुपये के करीब पहुंचा। इतने मंहगे इलाज के बाद भी अस्पताल आद्या को बचा नहीं सका।

एनपीपीए ने फोर्टिस अस्पताल की पोल खोलते हुए बताया है कि उसने कैसे डोटामिन नामक 28.35 रुपये वाली दवा के 287.50 रुपये, 36 रुपये वाली पैरासिटामाल के 310 रुपये, 15 रुपये वाली डिस्पोजल सिरिंज के 200 रुपये, 406 रुपये वाले मेरोपेनम इंजेक्शन के 3112 रुपये वसूले। पांच रुपये वाली स्टाप कॉक के तो उसने 106 रुपये वसूल कर 1700 फीसद मुनाफा वसूला।

इस खुली लूट के बाद भी फोर्टिस अस्पताल प्रबंधन ढिठाई के साथ यह सफाई देकर अपने को सही बताने की कोशिश कर रहा है कि उसने तो एमआरपी के हिसाब से ही पैसे लिए। उस पर ज्यादा पैसे लेने के आरोप सही नहीं।

फोर्टिस अस्पताल का प्रबंधन जो नहीं स्वीकार कर रहा, वह यह कि किन कारणों से वह एमआरपी के तहत ही दवाओं की खरीद करता है? लोगों को समझ नहीं आ रहा कि जब एक मामूली क्लीनिक चलाने वाले डॉक्टर भी थोक में दवा लेते हैं तो उन्हें एमआरपी के हिसाब से पैसे नहीं देने पड़ते तब फोर्टिस हास्पिटल एमआरपी के हिसाब से दवा खरीद का दावा कैसे कर सकता है?

फोर्टिस अस्पताल प्रबंधन यह भी कह रहा है कि उसने दवाओं के जो दाम वसूले वही अन्य अस्पताल भी वसूलते हैं। उसकी ऐसी ढिठाई के चलते फोर्टिस अस्पताल के प्रति आम लोगों का गुस्सा बढ़ रहा है और वे उसके खिलाफ वैसी ही कार्रवाई चाह रहे हैं जैसी दिल्ली सरकार ने मैक्स अस्पताल के खिलाफ की है और उसे बंद करने की घोषणा की है।

ये गुस्सा इसलिए बढ़ा क्योंकि...

एक और परिवार अस्पताल के खिलाफ इसी तरह के दावे के साथ सामने आया है। ये मामला पित्त की थैली में पथरी को लेकर है लेकिन अस्पताल के खिलाफ शिकायत वही है। इस बाबत गुरुग्राम के मुख्य चिकित्सा अधिकारी को शिकायत की गई है। 

मरीज भीम सिंह के चाचा सुखबीर की अगर माने तो फोर्टिस अस्पताल ने भीम सिंह को 36.68 लाख रुपये बिल थमा दिया। भीम सिंह को पित्त की थैली में पथरी की वजह से भयंकर दर्द था, जिसके बाद उनको पार्क अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन पार्क अस्पताल ने उनको फोर्टिस अस्पताल में रेफर कर दिया।

भीम सिंह को वेंटिलेटर पर रखा गया

भीम सिंह को 27 अप्रैल 2016 को पेट में दर्द की शिकायत के चलते पार्क अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वहां उनका छोटा ऑपरेशन हुआ। अगले दिन डॉक्टर्स ने कहा कि उनके दिमाग में सूजन हो गई है और हो सकता है कि लकवा मार जाए। इसके बाद उनको वेंटिलेटर पर रख फोर्टिस अस्पताल रैफर कर दिया गया। फोर्टिस में इलाज करने में देरी की गई जिसकी वजह से उनकी किडनी खराब हो गई।

सुखबीर ने आगे बताया कि किडनी में खराबी की वजह से उनको डायलसिस पर रखा गया और 36 लाख रुपये का बिल थमा दिया गया, लेकिन भीम सिंह की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ वो अभी भी बिस्तर पर ही हैं। उन्होंने बताया कि इस मामले के खिलाफ भीम सिंह ने परिजनों ने पुलिस के साथ साथ सीएमओ से भी शिकायत की लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। 

अस्पताल का क्या कहना है?

फोर्टिस अस्पताल ने एक बयान में कहा कि भीम सिंह को 30 अप्रैल 2016 को गंभीर स्थिति में वेंटिलेटर पर लाया गया था। यहां उनको सीधे आईसीयू में भर्ती कराया गया। इस दौरान उनको उचित इलाज मुहैया कराया गया। भीम सिंह के इलाज में पहले के अस्पताल ने कोताही बरती जिसको फोर्टिस अस्पताल में संभाला गया है।

यह भी पढ़ें: डेंगू पीड़ित बच्ची की मौत के मामले में फोर्टिस के डॉक्टर पर केस दर्ज
 


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