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इसरो ने अंतरिक्ष में बनाया विश्व रिकॉर्ड, वैश्विक मीडिया हुआ भारत का कायल

इसरो ने बुधवार को 104 सेटेलाइट एक साथ लांच कर अंतरिक्ष की दुनिया में रूस की बादशाहत खत्म कर दी। रूस ने 2014 में 37 सेटेलाइट लांच किए थे।

By Kishor JoshiEdited By: Published: Thu, 16 Feb 2017 12:16 AM (IST)Updated: Thu, 16 Feb 2017 02:20 PM (IST)
इसरो ने अंतरिक्ष में बनाया विश्व रिकॉर्ड, वैश्विक मीडिया हुआ भारत का कायल
इसरो ने अंतरिक्ष में बनाया विश्व रिकॉर्ड, वैश्विक मीडिया हुआ भारत का कायल

नई दिल्ली (जेएनएन)। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बुधवार को एक साथ एक ही मिशन में 104 सेटेलाइट कामयाबी के साथ अंतरिक्ष में प्रवेश करा कर एक नया इतिहास बना दिया है। इस मिशन के जरिये इसरो ने अपनी शानदार क्षमता का प्रदर्शन तो किया ही, साथ ही अंतरिक्ष बाजार में अपनी धाक भी जमा ली है,जिसकी अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भी जबरदस्त सराहना की है।

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इसी मिशन के जरिये उसने कार्टोसेट-2 सीरीज की एक महत्वपूर्ण सेटेलाइट को भी लांच किया। इसके जरिये देश को मौसम की सूचना से लेकर सड़कों के हाल तक की जानकारी और जमीन के उपयोग का पता लगाने तक में मदद मिल सकेगी। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस कामयाबी के लिए वैज्ञानिकों को बधाई दी है।

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चेन्नई से लगभग सौ किलोमीटर दूर श्रीहरिकोटा में स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से बुधवार सुबह 9 बज कर 28 मिनट पर यह मिशन लांच किया गया। भारत के विश्वसनीय पोलर सेटेलाइट लांच व्हीकल (पीएसएलवी) की यह 39वीं उड़ान थी। उसने तय समय से अपने ठिकाने पर पहुंच कर सबसे पहले 714 किलोग्राम के कार्टोसेट-2 सेटेलाइट को अंतरिक्ष में उतारा। इसके बाद आइएनएस 1ए और 1बी को बारी-बारी से रवाना किया गया।

वैश्विक मीडिया ने इस तरह की तारीफ

इसरो द्वारा बुधवार को एक रॉकेट से 104 उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण के बाद वैश्विक मीडिया ने भारतीय स्पेस कार्यक्रम की जबरदस्त तारीफ करते हुए कहा है कि भारत अंतरिक्ष आधारित सर्वेलंस और संचार के तेजी से बढ़ते वैश्विक बाजार में महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनकर उभरा है।

अमरीकी समाचार पत्र वॉशिंगटन पोस्ट ने कहा है, 'यह प्रक्षेपण भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के लिए एक और उपलब्धि है। कम खर्च में सफल मिशन को लेकर इसरो की साख अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेजी से बढ़ रही है।'

न्यूयॉर्क टाइम्स का कहना है, 'प्रक्षेपण में रिस्क बहुत ज्यादा था क्योंकि 17,000 मील प्रति घंटा की रफ्तार से जा रहे एक रॉकेट से जिस तरह हर कुछ सेंकंड में गोली की रफ्तार से उपग्रहों को उनकी कक्षाओं में स्थापित किया गया, उसे देखते हुए यदि एक भी उपग्रह गलत कक्षा में चला जाता तो वे एक-दूसरे से टकरा सकते थे।'

ब्रिटेन के प्रमुख अखबार द गार्जियन ने इसरो अध्यक्ष किरण कुमार के हवाले से कहा कि भारत ने जो उपलब्धि आज हासिल की है वह प्रत्येक प्रक्षेपण के साथ उसकी क्षमता को बढ़ाने में मदद कर रही है और यह प्रक्षेपण भविष्य में अधिक से अधिक फायदेमंद साबित होंगे।

लंदन के टाइम्स अखबार ने अपने लेख में कहा है कि भारत के कई महत्वपूर्ण मिशन का खर्च उनके रूसी, यूरोपीय और अमेरिकी समकक्षों के मुकाबले बहुत कम रहा है। इसरो के मंगल मिशन का खर्च महज 7.3 करोड़ डॉलर था, जबकि के 'मावेन मार्स लांच' में 67.1 करोड़ डॉलर का खर्च आया था।

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101 विदेशी सेटेलाइट

पीएसएलवी के इस सफर में भारत के तीन और विभिन्न देशों के 101 अन्य सेटेलाइट शामिल थे। विदेशी सेटेलाइट में से 96 अमेरिका की दो कंपनियों के थे। जबकि इजरायल, कजाकिस्तान, नीदरलैंड्स, स्विट्जरलैंड और संयुक्त अरब अमीरात के एक-एक सेटेलाइट शामिल थे।

रूसी एजेंसी को पीछे छोड़ा

यह पहला मौका है जब दुनिया की किसी एजेंसी ने एक साथ इतनी बड़ी संख्या में सेटेलाइट अंतरिक्ष में भेजे हैं। रूस की अंतरिक्ष एजेंसी ने 2014 में एक साथ 37 उपग्रह लांच किए थे। इससे पहले इसरो जून, 2015 में एक साथ 20 सेटेलाइट लांच कर चुका है। वह अब तक कुल 226 सेटेलाइट लांच कर चुका है। इनमें से 179 विदेशों की रही हैं।

77 सेटेलाइट ने काम शुरू किया

इसरो के अध्यक्ष एएस किरण कुमार ने कहा कि सभी 104 सेटेलाइट सफलतापूर्वक अपनी कक्षा में पहुंच गए हैं और इनमें से 77 का पृथ्वी से तालमेल स्थापित भी हो गया है।

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सेटेलाइट के जरिये होंगे ये काम

इस मिशन के जरिये लांच किए गए कार्टोसेट-2 सीरीज के सेटेलाइट के जरिये भारत को मौसम संबंधी सूचना इकट्ठा करने में काफी मदद मिल सकेगी। कार्टोसेट-2 सेटेलाइट की अवधि पांच साल होगी और यह रिमोट सेंसिंग स्पेसक्राफ्ट है। इससे मिली तस्वीरों का बहुत से काम में इस्तेमाल किया जा सकेगा। इनमें समुद्र किनारे के इलाकों में जमीन के उपयोग और नियमन से लेकर देशभर में सड़कों की निगरानी, पानी के वितरण और जमीन के इस्तेमाल का खाका खींचने में भी मदद मिल सकेगी।

संक्षिप्त काउंटडाउन

इस मिशन के लिए इसरो ने सिर्फ 23 घंटे का काउंटडाउन किया, जो अब तक का इसरो का सबसे संक्षिप्त काउंटडाउन था। इसरो का कहना है कि वह इस अवधि को कम करने में इसलिए कामयाब हो सका, क्योंकि इस बार वह ज्यादा आश्वस्त था। इस काम में उसे अपने अनुभव का भी लाभ मिला। आम तौर पर ऐसे मिशन के लिए औसतन 52 घंटे तक के काउंटडाउन का समय लगता है।

15 मंजिला इमारत जितना ऊंचा रॉकेट

104 सेटेलाइट ले जाने के मिशन में सबसे भारी एक्सएल वर्जन के पीएसएलवी का इस्तेमाल किया गया। इसका वजन 320 टन और ऊंचाई 44.4 मीटर है। यह रॉकेट 15 मंजिला इमारत जितना ऊंचा है। इस पर 1378 किग्रा वजन था। इसके पहले इस पीएसएलवी का चंद्रयान और मंगल मिशन में उपयोग किया गया था। -----------------

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