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भूकंपः अनदेखी आफत की बहुत हुई 'अनदेखी'

चार्ल्स फ्रांसिस रिक्टर (जिन्होंने रिक्टर स्केल का अविष्कार किया) ने अपनी पुस्तक ‘एलिमेंटरी सिस्मोलोजी’ में भारत में आने वाले भूकंप पर विस्तार से प्रकाश डाला है। पुस्तक के मुताबिक 1897 से 1950 के दौरान देश में रिक्टर स्केल पर 8 से अधिक की तीव्रता वाले चार भूकंप आए। लेकिन 1950

By manoj yadavEdited By: Published: Mon, 27 Apr 2015 08:17 AM (IST)Updated: Mon, 27 Apr 2015 10:45 AM (IST)
भूकंपः अनदेखी आफत की बहुत हुई 'अनदेखी'

पटना, [एसए शाद]। चार्ल्स फ्रांसिस रिक्टर (जिन्होंने रिक्टर स्केल का अविष्कार किया) ने अपनी पुस्तक ‘एलिमेंटरी सिस्मोलोजी’ में भारत में आने वाले भूकंप पर विस्तार से प्रकाश डाला है। पुस्तक के मुताबिक 1897 से 1950 के दौरान देश में रिक्टर स्केल पर 8 से अधिक की तीव्रता वाले चार भूकंप आए। लेकिन 1950 के बाद से अबतक इतनी तीव्रता वाला कोई भूकंप नहीं आया।

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विशेषज्ञों का मानना था कि इस तीव्रता के भूकंप कभी भी आ सकते हैं। शनिवार को यह घड़ी लगभग आ ही गई। 7.5 तीव्रता वाले भूकंप ने नेपाल में तो तबाही मचाई ही, बिहार में भी अनेक जान ले ली, बड़ी संख्या में मकानों को क्षति पहुंचाई। वैसे, शायद विशेषज्ञों की बातें रिसर्च पेपर से निकलकर कर सरकार की कार्य योजना का हिस्सा नहीं बन पाती।

तत्कालीन नेशनल सिस्मिक एडवाइजर एएस आर्या जब 2008 में भूकंप पर आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला में पटना आए थे तब उन्होंने साफ कहा था कि बिहार के अनेक जिले ‘सिस्मिक जोन-5’ में आते हैं, लेकिन भूकंप की स्थिति का सामना करने की कोई तैयारी नहीं है।

अगर 1934 जैसा भूकंप रात में आ गया तो कम से कम 3 लाख लोगों की मौत होगी। बिहार के आपदा प्रबंधन विभाग की एक रिपोर्ट कहती है कि अगर पटना में 6.7 या 6.8 तीव्रता के ही भूकंप का एपीसेंटर बने तो हजारों इमारत ढह जाएंगी और लाखों जान जाएगी।

इस गंभीरता के बावजूद भूकंप का मुकाबला करने के कार्यक्रम के प्रति सरकार कभी गंभीर नहीं रही। 2007 में भूकंपरोधी भवन बनाने के लिए प्रत्येक प्रखंड में 30 राजमिस्त्री और पांच इंजीनियर को प्रशिक्षण देने की योजना बनी। मगर यह काम अबतक पूरा नहीं हुआ है। हां, इस बीच 15-22 जनवरी, 2012 को भूकंप सुरक्षा सप्ताह मनाने की रस्म अदायगी जरूर हुई।

देश में आपदा प्रबंधन-2005 अधिनियम लागू तो हुआ लेकिन इस पर अमल करने के लिए कोई कार्य योजना नहीं है। दिलचस्प बात तो यह है कि 1883 से लेकर अबतक बिहार में 12 छोटे-बड़े भूकंप आए जिनसे दो को छोड़ सभी का एपीसेंटर नेपाल ही रहा। लेकिन नेपाल में भी भूकंप से निपटने के लिए अलग से कोई नीति या कार्य योजना नहीं बनी है। 1996 में हर प्रकार की प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए बने ‘नेपाल नेशनल एक्शन प्लान’ से ही काम चल रहा है।

1897 में असम में आए भूकंप के बाद जियोलोजिकल सर्वे आफ इंडिया के तत्कालीन निदेशक आरडी ओल्डहाम ने व्यापक शोध किया था और उसी के नतीजे में कोलकाता में 1898 में पहली सिस्मोलोजी लैबोरेटरी स्थापित हुई। लेकिन भूकंप से मुकाबला का काम पिछले 117 सालों में बैकबेंच पर ही रहा। भले ही लातूर में आए भूकंप के बाद इस कार्य में हल्की तेजी देखी गई।

बिहार में अधिक ध्यान देने की इस कारण भी आवश्यकता है कि यहां आठ जिले यानी 15.2 प्रतिशत इलाके जोन-5 में हैं, जबकि 19 जिले यानी 63.7 प्रतिशत इलाके जोन-4 में हैं। जरूरत इस बात की भी है कि भूकंप से मुकाबले के लिए नेपाल के साथ मिलकर साझा कार्यक्रम बने। क्योंकि जिस प्रकार नेपाल की नदियां बिहार में बाढ़ से तबाही लाती हैं, उसी प्रकार वहां आने वाले भूकंप से यहां भी धरती डोलती है।

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