इतने मकान बन चुके कि बिकने में लगेंगे पांच साल
वर्तमान में इतने मकान बन चुके हैं कि उन्हें बिकने में पांच साल से ज्यादा का वक्त लगेगा।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। अगर यह आशा लगाए बैठे हैं कि नोटबंदी के बाद आपको अपने पाकेट के अनुसार घर मिल सकता है तो उसका आधार भी है। दरअसल वर्तमान में इतने मकान बन चुके हैं कि उन्हें बिकने में पांच साल से ज्यादा का वक्त लगेगा। उत्तरी क्षेत्र में 65 महीने तथा पश्चिमी और दक्षिणी क्षेत्र में 30 और 22 महीने का स्टाक है।
ये आंकड़े केंद्र सरकार ने सुप्रीमकोर्ट को बताए हैं। नोट बंदी के फैसले को जायज ठहराने के हलफनामे में सरकार ने सुप्रीमकोर्ट को बताया है कि कालाधन धन बड़ी मात्रा में रियल एस्टेट में खपाया जाता है। यहां बड़ी मात्रा में नगदी में जमीन और मकान की खरीद का लेनदेन चलता है जिससे कीमतों में बनावटी उछाल आता है। इससे गरीब और मध्यमवर्ग के लिए उनकी क्षमता के भीतर मकान लेने की संभावना घटती जाती है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में रियल एस्टेट के हाउसिंग सेक्टर की बिक्री में कमी आयी है जिससे बिना बिके बने पड़े मकानों की संख्या में भारी बढ़ोत्तरी हुई है।
अगर मकान बिक्री की मौजूदा मासिक दर देखी जाए तो उत्तरी क्षेत्र में 65 महीनों यानी साढ़े पांच साल का स्टाक है। पश्चिमी और दक्षिणी क्षेत्र में भी 30 और 22 महीने का स्टाक है। सरकार का कहना है कि मकानों की बिक्री घटने और बने मकानों की संख्या बढ़ने के बावजूद बहुत से शहरों और कस्बों में 2015 में मकानों की कीमतें बढ़ी। भवन सूचकांक 2015 के मुताबिक 26 में से 20 शहरों में 2014 के बाद से मकान की कीमतें बढ़ीं। जिसमें सबसे ज्यादा नौ फीसद की बढ़ोत्तरी गुवाहाटी और उसके बाद आठ फीसद की पुणे में रही। पांच शहरों में कीमतें घटी हैं जिसमें सबसे ज्यादा चंडीगढ़ में आठ फीसद और बाद दिल्ली में 4 फीसद की गिरावट देखी गई।
सरकार का कहना है कि नोट बंदी का असर रियल एस्टेट पर पड़ेगा। नगदी और कालेधन पर रोक लगेगी जिससे मकानों की कीमतें घटेंगी। 1000 और 500 के नोट बंदी से बैंकों में पैसा जमा होगा परिणाम स्वरूप बैंकें अपनी सामान्य और होमलोन की ब्याज दर घटाएंगी। लोगों को सस्ता मकान मिलना संभव होगा और सरकार का सबको घर का उद्देश्य पूरा होगा।