मादा लेब्राडोर ने अपना दूध पिलाकर दुधमुंहे बच्चे को बना दिया 'शेर'
बाघ के शावक 45 से 60 दिन ही दूध पीते हैं। इस अवधि के बाद वह चिकन, अंडा खाना शुरू कर देते हैं।
बिलासपुर [शिव सोनी]। छत्तीसगढ़ के कानन पेंडारी जू में एक मादा डॉग (कुतिया) ने बाघिन के शावक को अपना दूध पिलाकर उसका पालन-पोषण किया। जन्म के चार दिन बाद तक न तो शावक दूध पी पा रहा था और न ही बाघिन इसमें सफल हो रही थी। इससे शावक में शारीरिक कमजोरी आने लगी। लिहाजा उसकी जान बचाने के लिए लेब्राडोर डॉग जिमी को किराए पर लिया गया।
जिमी ने बड़ी सहजता के साथ शावक को स्वीकार कर लिया और मां की तरह दूध पिलाकर उनकी जान बचा ली। अब बाघ का शावक खतरे से बाहर है और तीन माह का हो चुका है। इतना ही नहीं, अब तो यह मादा शावक रोजाना 2 किग्रा चिकन भी चट कर जाता है।
लेब्राडोर डॉग ने पिलाया अपना दूध
दरअसल कानन पेंडारी जू में तीन महीने पहले 6 नवंबर को दो शावकों का जन्म हुआ। यह व्हाइट टाइगर विजय व बंगाल टाइग्रेस की संतान है। शावकों के जन्म को जू प्रबंधन ने पूरी तरह गोपनीय रखा था, जिससे उनका पालन पोषण अच्छे तरीके से किया जा सके। जन्म के बाद एक मादा शावक मां का दूध नहीं पी पाई। इससे प्रबंधन परेशान हो गया। इसके चलते शावक का वजन दो से तीन दिन में 80 से 100 ग्राम कम हो गया। शावक को डिहाइड्रेशन होने लगा था। ऐसे में उसे मां चेरी से अलग कर दिया गया और अस्पताल में डॉक्टरों की निगरानी में लाकर रखा गया। फिर एक प्रयोग करने का प्लान बनाया गया। शहर के एक डॉग हैंडलर से संपर्क किया गया। उसने लेब्राडोर प्रजाति की डॉग जिमी को तीन महीने के लिए जू प्रबंधन को उपलब्ध कराया। डॉग की यह प्रजाति शांत रहती है।
जिमी को कानन आते ही शावक के पास भेज दिया गया। जिमी में शावक को देखकर ममता जाग उठी और उसने शावक को अपना बच्चा समझकर दूध पिलाने शुरू कर दिया। हालांकि एक जू कीपर को निगरानी में तैनात किया गया। वहीं डॉ. पीके चंदन हर घंटे मानिटरिंग कर रिपोर्ट लेने लगे। जू प्रबंधन की मेहनत रंग लाई। तीन माह में शावक पूरी तरह शेर प्रजाति के रंग में ढल चुका है और मांस खाने लगा है। दूध की चिंता अब समाप्त हो गई।
इसलिए आती है परेशानी
कानन पेंडारी जू के डॉक्टर पी.के. चंदन ने बताया कि कभी-कभी दूध पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाता है। जो शावक चंचल स्वभाव का होता है वह आसानी से दूध पी जाता है। चेरी के शावकों के साथ भी यही हुआ। नर शावक जन्म के बाद से बेहद चंचल और तंदुरुस्त था। मादा कमजोर थी। इसके कारण उसे दूध पीते नहीं बन रहा था।
45 से 60 दिन तक होती है दूध की जरूरत
बाघ के शावक 45 से 60 दिन ही दूध पीते हैं। इस अवधि के बाद वह चिकन, अंडा खाना शुरू कर देते हैं। दोनों शावकों ने भी दो महीने बाद ही दूध पीना छोड़ दिया है। चिकन खा रहे हैं। इसकी निगरानी की जाती है। इस दौरान यह देखा जाता है कि कहीं आहार कम तो नहीं हो रहा है। यह निगरानी 6 महीने तक चलेगी।
तीन महीने बाद जारी की तस्वीर
कानन पेंडारी जू प्रबंधन ने दोनों शावकों के स्वस्थ होने के बाद पहली तस्वीर जारी की है। हालांकि इससे पहले शावकों के जन्म की पुष्टि हो चुकी थी। लेकिन वहां जाने की इजाजत किसी को नहीं थी। एक जू-कीपर पर ही केज की सफाई, आहार देने की जिम्मेदारी थी। अब भी एक शावक मां के साथ और दूसरे को अस्पताल में रखा गया है। इन्हें पर्यटकों को फिलहाल नहीं दिखाया जाएगा।
दो-तीन सप्ताह में जनता देख सकेगी शावकों को
कानन पेंडारी जू के प्रभारी सुनील कुमार बच्चन ने बताया कि चेरी के दोनों शावक अब स्वस्थ हैं और मजे से चिकन का स्वाद चख रहे हैं। 15 से 20 दिन बाद पर्यटक इन नन्हें मेहमानों का दीदार कर सकेंगे।