एफसीआई की इस शर्त से मिड मिल पर संकट के बादल
खास बात यह है कि मिड-डे मील के तहत राज्यों को मिलने वाले खाद्यान्न को सरकार ने जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है, बावजूद इसके एफसीआई ने अपने काम-काज को पारदर्शी बनाए रखने के लिए इसे अनिवार्य किया है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। स्कूलों में बच्चों को दिए जाने वाले मिड-डे मील के लिए राज्यों को अब जीएसटी (गुड्स एंड सर्विस टैक्स) नंबर लेना अनिवार्य होगा। भारतीय खाद्य निगम ने इसके बगैर राज्यों को आगे खाद्यान्न दे पाने से हाथ खड़े कर दिए है। साथ ही इसकी जानकारी मानव संसाधन विकास मंत्रालय को भी दी है। इसके लिए मंत्रालय ने सभी राज्यों को जल्द से जल्द जीएसटी रजिस्ट्रेशन कराने के निर्देश दिए है।
खास बात यह है कि मिड-डे मील के तहत राज्यों को मिलने वाले खाद्यान्न को सरकार ने जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है, बावजूद इसके एफसीआई ने अपने काम-काज को पारदर्शी बनाए रखने के लिए इसे अनिवार्य किया है।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के स्कूली शिक्षा विभाग के मिड-डे मील डिवीजन ने सभी राज्यों को जारी किए गए निर्देश में साफ किया है, इसका मतलब यह कतई नहीं है कि मिड-डे मील को जीएसटी के दायरे में लाया गया है। यह व्यवस्था सिर्फ एफसीआई ने अपने काम-काज को पारदर्शी बनाए रखने के लिहाज से किया है। मंत्रालय के मिड-डे मील डिवीजन के निदेशक जी विजय भास्कर ने राज्यों को दिए गए निर्देश में कहा है कि वह परेशानी और समय पर मिड-डे मील के तहत मिलने वाले खाद्यान्न को लेने के लिए जीएसटी नबंर ले ले। मिड-डे मील योजना के तहत मौजूदा समय में देश के करीब 12.65 लाख स्कूलों में बच्चों को मिड-डे मील दिया जाता है। इसके लिए खाद्यान्न उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी भारतीय खाद्य निगम की है। राज्यों को केंद्र प्रति बच्चे के हिसाब से इसके लिए पैसा भी देती है। इसके तहत बच्चों को स्कूलों में अच्छा खाद्य पोषण उपलब्ध कराया जाता है।
मिड-डे मील की यह है मौजूदा व्यवस्था
मिड-डे मील की मौजूदा व्यवस्था के तहत केंद्र सरकार इसे वित्तीय मदद देती है, जबकि राज्यों पर सिर्फ इसके संचालन की जिम्मेदारी होती है। इस दौरान खाद्यान्न खरीदी भी राज्य सरकार को करनी होती है, जो भारतीय खाद्य निगम से करती है। इसके अलावा अन्य सामग्रियों की खरीदी के लिए भी राज्य सरकार ने एक प्रणाली विकसित कर रखी है जो इस पूरी खरीदी को अंजाम देती है।