...जब बेटे का गाउन पहन थामी उसकी उपाधि
उत्तराखंड संस्कृत विवि के दीक्षांत समारोह में जब आशीष कुमार का नाम स्वर्ण पदक के लिए पुकारा गया तो कुछ देर के लिए हॉल में सन्नाटा छा गया। सन्नाटे को तोड़ा आशीष के वृद्ध पिता के लडख़ड़ाते कदमों ने, जो बेटे की गाउन पहनकर राज्यपाल के हाथों उसका स्वर्ण पदक
हरिद्वार (शैलेंद्र गोदियाल)। उत्तराखंड संस्कृत विवि के दीक्षांत समारोह में जब आशीष कुमार का नाम स्वर्ण पदक के लिए पुकारा गया तो कुछ देर के लिए हॉल में सन्नाटा छा गया। सन्नाटे को तोड़ा आशीष के वृद्ध पिता के लडख़ड़ाते कदमों ने, जो बेटे की गाउन पहनकर राज्यपाल के हाथों उसका स्वर्ण पदक लेने मंच की ओर बढ़े।
यह देख आशीष को जानने वालों की आंखें भर आईं। नम आंखों से सभी ने करतल ध्वनि के साथ आशीष के पिता नवल किशोर खंडूड़ी का हौसला बढ़ाया। मेधावी छात्रों में गिने जाने वाला उत्तराखंड विवि का हीरो आशीष केदारनाथ आपदा में लापता हो गया था, अब सरकार ने उसे मृत घोषित कर दिया है।
आशीष के पिता नवल किशोर खंडूड़ी ने राज्यपाल केके पॉल के हाथों बेटे का स्वर्ण पदक और प्रथम श्रेणी की डिग्री प्राप्त की तो जेहन में दुख का वह मंजर भी ताजा हो गया, जिससे वह आज तक बाहर नहीं निकल सके। आज का दिन उन्हें बेटे पर गर्व की अनुभूति भी करा गया।
होनहार बेटे ने जाने के बाद भी पिता का नाम रोशन किया। आशीष कुमार 15-16 जून 2013 में आई केदारनाथ आपदा में लापता हुआ था। चमोली जनपद के कर्णप्रयाग के निकट नागकोट गांव निवासी आशीष कुमार पुत्र नवल किशोर खंडूड़ी ने सत्र 2012-13 में श्री 108 स्वामी सच्चिदानंद वेदभवन संस्कृत महाविद्यालय रुद्रप्रयाग से प्राचीन पाठ्यक्रम फलित ज्योतिष आचार्य की परीक्षा दी।
परीक्षा देकर आशीष कुमार केदारनाथ चला गया था। परीक्षा परिणाम आने से पहले आई आपदा में वह लापता हो गया। बाद में परिणाम आया तो आशीष कुमार ने विवि में टॉप किया। आशीष का नाम स्वर्ण पदक सूची में तीसरे स्थान पर आया।
शुक्रवार को भेल के सम्मेलन हॉल में जब आशीष कुमार का नाम उद्घोषित किया तो बेटे का गाउन पहन कर मंच पर गए तो उनका सीना बेटे की सफलता पर गर्व के फूला हुआ था, साथ ही आंखों में उसके न होने का गम भी था। नवल किशोर खंडूड़ी ने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा कि आज अगर उनका बेटा होता तो वे बेहद खुश होते, लेकिन बेटे के न होने के बाद बेटे की कामयाबी की उपाधि हाथ में आई तो फिर वहीं केदारनाथ आपदा का मंजर दिमाग में घूमने लगा है।
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