मराठों के शक्ति प्रदर्शन से हिली फड़नवीस सरकार, दिया अारक्षण का अाश्वासन
पुणे में हुई मराठा समाज की मूक रैली में करीब 10 लाख लोग शामिल हुए। रैली में राकांपा अध्यक्ष शरद पवार के भतीजे और पूर्व उपमुख्यमंत्री अजीत पवार सहित कई मराठा दिग्गज शामिल हुए।
मुंबई [ ओमप्रकाश तिवारी]। महाराष्ट्र में मराठा समाज के मूक आंदोलन से राज्य की देवेंद्र फड़नवीस सरकार सकते में है। विशेष बात यह है कि इस आंदोलन में भाजपा के भी शीर्ष मराठा नेता खुलकर हिस्सा ले रहे हैं। रविवार को पुणे में हुई मराठा समाज की मूक रैली में करीब 10 लाख लोग शामिल हुए। रैली में राकांपा अध्यक्ष शरद पवार के भतीजे और पूर्व उपमुख्यमंत्री अजीत पवार सहित कई मराठा दिग्गज शामिल हुए।
रैली की सफलता की खबर लगते ही मुख्यमंत्री फड़नवीस ने एक कार्यक्रम में एलान किया कि उनकी सरकार मराठा समाज को आरक्षण दिलाएगी। सरकार मराठा समाज को आरक्षण देने के मुद्दे पर गंभीर है। लेकिन न जाने किन राजनीतिक कारणों से मुख्यमंत्री कह गए कि उन्हें नहीं पता कि वह कब तक मुख्यमंत्री पद पर रहेंगे। लेकिन जब तक रहेंगे, परिवर्तन के लिए काम करते रहेंगे। फड़नवीस के इस बयान ने राजनीतिक हलकों में नई चर्चा को जन्म दे दिया है।
कांग्रेस प्रवक्ता सचिन सावंत ने पूछा है कि मराठा समाज की रैलियों में मुख्यमंत्री का विरोध नहीं किया जा रहा है। इसके बावजूद उन्हें अपनी कुर्सी का डर क्यों सता रहा है? बता दें कि महाराष्ट्र के आधा दर्जन से ज्यादा नगरों में अब तक मराठा समाज की मूक रैलियां हो चुकी हैं।
जिनमें मुख्यतया मराठा-कुणबी समाज को आरक्षण देने और राज्य में अत्याचार अधिनियम में सुधार की मांग की जा रही है। इन प्रतीकात्मक मोर्चों में महिलाओं और युवाओं की संख्या अधिक दिखाई देती है और सभी दलों के मराठा नेता इनमें शामिल हो रहे हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राव साहब दानवे भी इसमें शामिल हो चुके हैं। महाराष्ट्र में मराठाओं की आबादी 34 से 36 फीसद है।
यही कारण है कि मराठा समाज किसी और का नेतृत्व स्वीकार नहीं करता। इसके बावजूद भाजपा ने राज्य में सिर्फ तीन से चार फीसद आबादी वाले ब्राह्माण समाज के प्रतिनिधि फड़नवीस को मुख्यमंत्री बनाया। माना जाता है कि मराठा समाज बड़े पैमाने पर मूक मोर्चे निकालकर ब्राह्माण मुख्यमंत्री को सांकेतिक चुनौती भी दे रहा है। इस चुनौती में भाजपा के दिग्गज मराठा नेताओं का भी शामिल होना फड़नवीस को सशंकित कर रहा है। शायद इसीलिए उन्होंने अपने पद की सुनिश्चितता को लेकर पहली बार शंका जाहिर की है।