शहादत के बाद भी सुरक्षा एजेंसियों के हौसले बुलंद
राजनाथ सिंह ने गृहराज्यमंत्री हंसराज अहीर को छत्तीसगढ़ में मौका ए वारदात का दौरा करने को कहा है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। नक्सली हमले में सीआरपीएफ के जवानों की मौत से सकते में आई सुरक्षा एजेंसियां इससे निपटने की तैयारी में जुट गई है। एक तरफ गृहमंत्रालय ने सुरक्षा में हुई चूक की पड़ताल कर रहा है, तो वहीं सुरक्षा एजेंसियां नक्सलियों के खिलाफ बनी बढ़त को और मजबूत करने का फैसला किया है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री ने शहीद के परिवारों के प्रति संवेदना प्रकट करते हुए कहा कि उनकी शहादत के व्यर्थ नहीं जाने दिया जाएगा। जबकि गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने इसे एक चुनौती के लिए रूप में लिया है। हकीकत यही है कि पिछले कुछ सालों में सुरक्षा बलों के आगे नक्सलियों को हौसले लगातार पस्त हो रहे हैं।
दरअसल गृहमंत्रालय को कमजोर पड़े नक्सलियों से ऐसे हमले की उम्मीद नहीं थी। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि खुफिया विभाग की ओर से ऐसा कोई एलर्ट नहीं आया था। यही कारण है कि नक्सली हमले की सूचना मिलते ही गृहसचिव राजीव महर्षि ने तत्काल वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक बुलाई। हालात की समीक्षा के बाद पीएमओ और गृहमंत्री राजनाथ सिंह को इसकी जानकारी दी गई। शुरूआती सूचना के अनुसार जवानों की ओर से स्टैंडर्ड आपरेशन प्रोसेड्योर (एसओपी) के उल्लंघन की बात सामने आई है। लेकिन पूरी जांच के बाद ही असली हकीकत सामने आएगी।
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राजनाथ सिंह ने गृहराज्यमंत्री हंसराज अहीर को छत्तीसगढ़ में मौका ए वारदात का दौरा करने को कहा है। अहीर के साथ-साथ सीआरपीएफ के महानिदेशक भी मंगलवार को सुकमा पहुंचेंगे। नक्सल विरोध आपरेशन से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि 26 जवानों की मौत से धक्का जरूर लगा है, लेकिन उनके हौसले अब भी बुलंद है। पिछले सालों के नक्सली हिंसा के आंकड़े उनके दावे की पुष्टि करते हैं। नक्सलियों की हताशा का अनुमान उनके आत्मसमर्पण के आंकड़ों से आसानी से लगाया जा सकता है।
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2013 में जहां केवल 282, 2014 में 676 और 2015 में 570 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया था, वहीं 2016 में 1442 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया। इस साल तीन महीने में 327 नक्सली आत्मसमर्पण कर चुके हैं। इसी तरह मुठभेड़ में मारे जाने वाले नक्सलियों की संख्या भी पिछले चार सालों में चार गुना बढ़ चुकी है।