नैतिक मूल्य कहते हैं कि मीडिया से बात नहीं करेंगे जज
इलाहाबाद हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एसआर सिंह कहते हैं कि वैसे तो इस बारे में कोई कानूनी रोक नहीं है। न्यायपालिका के स्वनियंत्रण की बात है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपनाए गए नैतिक मूल्य कहते हैं कि जज मीडिया से बात नहीं करेंगे। हालांकि, यह कोई बाध्यकारी कानूनी व्यवस्था नहीं है। बल्कि न्यायपालिका द्वारा स्वेच्छा से स्वीकार किया गया नियंत्रण है।
सात मई, 1997 को सुप्रीम कोर्ट ने फुल कोर्ट में न्यायाधीशों के लिए नैतिक मूल्य (रिइंस्टेटमेंट ऑफ वैल्यू ऑफ ज्युडिशियल लाइफ) स्वीकार किए थे और इसे 1999 में चीफ जस्टिस कान्फ्रेंस में मंजूरी देकर पूरी न्यायपालिका के लिए स्वीकार किया था। सोलह बिंदुओं के इन नैतिक मूल्यों का नवां बिंदु कहता है कि जजों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने फैसलों के जरिये बोलेंगे। वे मीडिया को साक्षात्कार नहीं देंगे।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एसआर सिंह कहते हैं कि वैसे तो इस बारे में कोई कानूनी रोक नहीं है। न्यायपालिका के स्वनियंत्रण की बात है। यह रोक इसीलिए लगाई गई थी ताकि जो स्थिति आज उत्पन्न हुई है वह न पैदा हो। जैसा कि चार वरिष्ठ न्यायाधीश कह रहे हैं कि गड़बड़ी है। वैसा हो सकता है। हम उसके सही गलत होने पर नहीं जाते। लेकिन, जिस तरह से इस मामले को उठाया या उछाला गया है, उससे जनता का न्यायापालिका पर विश्वास हिलेगा उसमें कमी आएगी।
बताते चलें कि एक हाई कोर्ट के न्यायाधीश ने ब्लॉग लिखना शुरू किया था और बाद उनके ब्लॉग लिखने पर रोक लगा दी गई थी। जजों द्वारा इस तरह से खुल कर मीडिया और जनता में बात करने का भारतीय न्यायपालिका में रिवाज नहीं रहा है।
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