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पर्यावरण प्रेमी ने नौकरी छोड़ अपनाया ये रास्ता

1992 में गैर सरकारी संगठन साथी का गठन किया। संस्था के गठन के बाद ग्रामीणों ने स्वैच्छिक मदद की।

By Srishti VermaEdited By: Published: Thu, 27 Jul 2017 09:08 AM (IST)Updated: Thu, 27 Jul 2017 09:08 AM (IST)
पर्यावरण प्रेमी ने नौकरी छोड़ अपनाया ये रास्ता
पर्यावरण प्रेमी ने नौकरी छोड़ अपनाया ये रास्ता

नाहन (राजन पुंडीर)। 22 साल की उम्र में समाजशास्त्र के प्रवक्ता की सरकारी नौकरी के साथ डॉ. अनिल के जीवन में सब कुछ अच्छा चल रहा था, लेकिन एक अनजानी कसक कचोटती थी। दो साल तक सरकारी स्कूल में पढ़ाया, लेकिन मन नहीं रमा। कुछ अलग करने की ललक और जिद के चलते नौकरी छोड़ दी। जल, पर्यावरण संरक्षण और लोगों की सेवा का संकल्प लिया। 25 साल से उनकी तपस्या जारी है। नतीजे फलदायी रहने का सुकून चेहरे पर दिखता है।

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हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के मटरू गांव में 21 जनवरी, 1964 में जन्मे डॉ. अनिल को समाजसेवा का जुनून ऐसा था कि नौकरी ज्वाइन करने के दो साल बाद ही त्यागपत्र देकर लक्ष्य की ओर बढ़ चले। 1990 में सिरमौर जिले के पच्छाद विकास खंड के घिन्नी घाड क्षेत्र का दौरा किया। यहां पर पर्यावरण और ग्रामीणों की दयनीय स्थिति को देखकर वह हैरान रह गए। पूरा क्षेत्र पानी की समस्या से जूझ रहा था। जंगल धड़ाधड़ काटे जा रहे थे। उन्होंने निर्णय किया कि यहां के लोगों के सामाजिक व आर्थिक उत्थान के लिए कुछ करेंगे।

1992 में गैर सरकारी संगठन साथी का गठन किया। संस्था के गठन के बाद ग्रामीणों ने स्वैच्छिक मदद की। इससे अभियान को आगे ले जाने की राह आसान हुई। सबसे पहले घिन्नी घाड क्षेत्र में जल व मृदा संरक्षण के लिए चेकडैम व जोहड़ों का निर्माण करवाया। परंपरागत जलस्नोतों के संरक्षण व वर्षा जल भंडारण के लिए भी लोगों को जागरूक किया गया। सरकार व विश्व बैंक के सहयोग से चल रही योजनाओं का लाभ उठाया गया। जलस्नोत बचाए रखने के लिए पनढाल क्षेत्र में 42 हेक्टेयर में वाटर टैंक, चेकडैम व वर्षा जल संग्रहण टैंक बनवाए गए। इससे पानी की समस्या काफी हद तक सुलझने लगी।

पर्यावरण को बचाने के लिए ग्रामीणों की मांग पर फलदार व लुप्त होते पौधे उपलब्ध करवाए। जब मांग बढ़ी तो स्थानीय लोगों की सहायता से नर्सरी शुरू की गई। अब संस्था देशभर में विभिन्न प्रजातियों के पौधों के बीज उपलब्ध करवाती है। चारे व ईंधन की समस्या सुलझाने के लिए भी 85.5 हेक्टेयर में तारबंदी कर पौधे उगाए गए। इसमें पौधों की जीवित दर 65 प्रतिशत से अधिक है। पौधरोपण व चेकडैमों के निर्माण के बाद इस क्षेत्र में जमीन में नमी भरपूर है और प्राकृतिक जलस्नोत कभी सूखते नहीं हैं।

बढ़ने लगा दायरा
बकौल डॉ. अनिल, 25 साल से किफायती पर्यावरण मित्र गतिविधियों से 52 गांवों के 6,025 परिवारों को लाभ मिला है। पच्छाद में मिली कामयाबी के बाद अब पांवटा साहिब व शिलाई विकास खंड में भी ‘साथी’ की मुहिम रंग ला रही है। पर्यावरणीय मुद्दों के अलावा लोगों की आजीविका सुधारने के प्रयास सार्थक रहे हैं।

कृषि उत्पादकता भी बढ़ी
संस्था के प्रयास से ग्रामीण क्षेत्रों में भूक्षरण, पर्यावरण ठहराव संभव हो पाया है। कृषि उत्पादकता में प्रति हेक्टेयर दोगुनी वृद्धि हुई है। कौशल विकास कार्यक्रमों के जरिये युवाओं का मार्गदर्शन किया। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्वयं सहायता समूहों का गठन करवाया गया। हाल ही में शिमला में ‘साथी’ संस्था को सरकार ने सम्मानित किया।

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