सभी स्तरों पर शिक्षा की स्थिति दयनीय
बिहार में शिक्षा की स्थिति दयनीय है। एक नहीं सभी स्तरों पर यही हाल है।स्कूली शिक्षा को लें तो शिक्षकों के पद ही नहीं, प्रधानाचार्यों के पद बड़ी संख्या में रिक्त हैं।
बिहार में शिक्षा की स्थिति दयनीय है। एक नहीं सभी स्तरों पर यही हाल है।स्कूली शिक्षा को लें तो शिक्षकों के पद ही नहीं, प्रधानाचार्यों के पद बड़ी संख्या में रिक्त हैं। जो शिक्षक हैं उनमें बड़ी संख्या ऐसी है जो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने की स्थिति में नहीं हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि नियुक्त का तरीका सही नहीं था। शिक्षकों नियुक्ति हुई बोर्ड या विश्वविद्यालय परीक्षा में प्राप्त अंकों के आधार पर हुई। इनमें नकल का बोलबाला रहा है। सच्चाई यह है कि सूबे में मूल्यांकन का स्तर काफी गिरा है। स्कूल या विश्वविद्यालय स्तर पर अच्छे अंक मेरिट दर्शाएं यह जरूरी नहीं। राज्य सरकार शिक्षकों को फिलहाल जो वेतन दे रही है उससे प्रतिभाशाली उम्मीदवार तो इस पेशे में आएंगे नहीं। रोजगार की प्रकृति भी एडहॉक या संविदा आधारित है। संविदा पर नियुक्त शिक्षकों की सैलरी चपरासी के बराबर है। एक ही स्कूल में ऐसे स्थायी शिक्षक है जो 45 हजार रुपये पा रहे हैं तो उसी काम को करने के लिए संविदा शिक्षकों को महज 4 से 5 हजार रुपये प्रति महीने मिल रहे हैं। एक तरफ अमीरों के बच्चों के लिए वातानुकूलित स्कूल हैं तो वहीं ऐसे सरकारी विद्यालय भी हैं जहां छात्राओं के लिए शौचालय की सुविधा तक मयस्सर नहीं है। स्कूली शिक्षा की दो दुनिया बन गई है। विश्वविद्यालय स्तर पर भी शिक्षा की स्थिति काफी खराब है। शिक्षकों के आधे से अधिक पद रिक्त हैं। सूबे में चाहे वर्ष 1996या फिर 2003 की विश्वविद्यालय प्राध्यापक नियुक्ति प्रक्रिया हो, इसमें जाति, धर्म के आधार पर चयन एवं भ्रष्टाचार हावी रहा। 1996 की नियुक्ति प्रक्रिया में भ्रष्टाचार को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया। 2003 की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर विजिलेंस जांच अभी भी लंबित है। इन वर्षों में जो कॉलेजों में शिक्षकों के रूप मे चुने गए उनमें कई का स्तर किरानी के लायक भी नहीं है। हाल में जो कुलपति नियुक्त हुए हैं उनमें जेपी यूनिवर्सिटी एवं मिथिला यूनिवर्सिटी के वीसी भी अलग-अलग कारणों से चर्चा में हैं। विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति के लिए जो प्रक्रिया शुरू हुई है उसमें 85 फीसद वेटेज अकादमिक रिकार्ड व 15 फीसद साक्षात्कार पर है। सूबे में बोर्ड और विश्वविद्यालय परीक्षाओं में व्यापक नकल आम है। मूल्यांकन का स्तर भी काफी कम है। ऐसे में इसकी बजाय अच्छा यह होता कि प्रतियोगी परीक्षा का आयोजन कर इसमें प्राप्त अंकों के आधार पर नियुक्ति होती। वर्तमान सरकार एक तरफ सीएनएलयू, सीआइएमपी जैसे संस्थान खोल रही है वहीं पटना विश्वविद्यालय जैसे संस्थान गर्त की ओर जा रहे हैं। वर्तमान सरकार में भले ही साक्षरता का स्तर बढ़ा हो, शिक्षा की गुणवत्ता का स्तर गिरा है।
(लेखक-डॉ. नवल किशोर चौधरी, अर्थशास्त्री, पूर्व संकायाध्यक्ष पटना विश्वविद्यालय)