अगस्ता वेस्टलैंड स्कैम :यूपीए शासन के दौरान ईडी ने जांच में बरती नरमी
अगस्ता वेस्टलैंड स्कैम में प्रवर्तन निदेशालय ने वर्ष 2014 में जांच को प्रभावित करने की कोशिश की। ईडी मनी लॉन्ड्रिंग का चार्ज लगाने के पक्ष में नहीं था।
नई दिल्ली। अगस्ता वेस्टलैंड स्कैम मामले में संसद में संग्राम जारी है। अदालत में लड़ी जाने वाली लड़ाई की जगह राजनीतिक दल एक दूसरे के ऊपर आरोप और प्रत्यारोप के जरिए ये साफ कर रहे हैं कि सब बेदाग हैं। ऐसे में सवाल पैदा होता है कि सभी बेदाग हैं तो ये घोटाला कैसे हो गया।
अगस्ता वेस्टलैंड स्कैम- रक्षा मंत्री ने कांग्रेस को संसद में घेरा
अगस्ता वेस्टलैंड से हर दिन कुछ न कुछ चौंकाने वाली जानकारियां सामने आ रही हैं। अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक वर्ष 2014 में प्रवर्तन निदेशालय ने जांच में ढील देने की कोशिश की थी। प्रवर्तन निदेशालय मनी लॉन्ड्रिंग के सिलसिले गंभीर धाराओं को लगाने के पक्ष में नहीं था। बताया जा रहा है कि दिसंबर 2013 में सीबीआई द्वारा एफआईआर दर्ज करने के सात महीने के बाद यानि जुलाई 2014 में प्रवर्तन निदेशालय की तरफ से जांच शुरू की गई। यही नहीं प्रवर्तन निदेशालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने इस मामले की जांच प्रिंवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट 2002 की जगह फेमा 1999 के उल्ल्घंन को आधार बना कर जांच करना चाहते थे।
कांग्रेस नेता एंटनी बोले, कार्रवाई करो धमकी मत दो
अगस्ता जांच से जुड़ी कहानी
अगस्ता वेस्टलैंड मामले में सीबीआई ने मार्च 2013 में एफआईआर दर्ज की थी। ईडी ने सीबीआई और पुलिस के एफआईआर को आधार बना कर इस मामले में प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया। और सीबीआई से एफआईआर की कॉपी मांगी। इस सिलसिले में ईडी की तरफ से सीबीआई को दो रिमाइंडर भी भेजे गए। लेकिन सीबीआई की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला। इस पूरे क्रम में ईडी को एफआईआर की कॉपी दिसंबर 2013 में दी गई। लेकिन दिसबंर में एफआईआर की कॉपी मिलने के बाद ईडी ने जांच करने के सिलसिले में सात महीने तक फैसला नहीं किया। ईडी के वरिष्ठ अधिकारी ने फाइल पर लिखा कि इस मामले की जांच फेमा के तहत होनी चाहिए। लेकिन ईडी के ही कुछ अधिकारियों ने कहा कि ये पूरा मामला सीधे तौर पर मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ा हुआ है। और 3 जुलाई 2014 को पीएमएलए का मामला दर्ज किया गया ।
एम्मार एमजीएफ के बॉस से हुई पूछताछ
एम्मार एमजीफ के बॉस श्रवन गुप्ता से ईडी अधिकारियों ने बुधवार को लंबी पूछताछ की थी। गुप्ता से इस मुद्दे में इस लिए पूछताछ की गयी क्योंकि अगस्ता वेस्ट़ लैंड से जुड़ा एक दलाल गुडो हैश्के कंपनी के बोर्ड ऑफ डॉयरेक्टर में 2007 से 2009 तक स्वतंत्र निदेशक था। इसके अलावा एक और दूसरा आरोपी गौतम खेतान भी कुछ समय के लिए एम्मार एमजीएफ के बोर्ड में शामिल था।
फेमा के तहत आने वाले अपराधों को सिविल अपराध माना जाता है और सजा के तौर पर दोषी कंपनियों या लोगों के खिलाफ जुर्माना लगाया जाता है। लेकिन पिछले साल सरकार ने इसमें संशोधन किया और अब दोषी लोगों की संपत्तियों को जब्त भी किया जा सकता है। और संदिग्ध लोगों से पूछताछ भी हो सकती है।