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साहस और सावधानी काटेंगे सारी परेशानी, डर कर मरना या जीना किसी समस्‍या का हल नहीं

कोरोना के बढ़ते मामलों के चलते लोगों के मन में इसको लेकर दहशत व्‍याप्‍त है। लेकिन डर कर जीना किसी समस्‍या का हल नहीं होता है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 31 May 2020 10:15 AM (IST)Updated: Sun, 31 May 2020 10:15 AM (IST)
साहस और सावधानी काटेंगे सारी परेशानी, डर कर मरना या जीना किसी समस्‍या का हल नहीं
साहस और सावधानी काटेंगे सारी परेशानी, डर कर मरना या जीना किसी समस्‍या का हल नहीं

कुमार प्रशांत। लॉकडाउन में घर के भीतर मरते हैं कि क्वारंटाइन में मरते हैं या सड़क पर खतरों को रौंदते हुए मरते हैं, सबकी मौत डाली तो मौत के खाते में ही जाती है, हमें मरते-मरते भी यह देखना चाहिए कि हमारी मौत तो एक आंकड़ा भर होती है, लेकिन वह जो सड़क पर उतर कर चला तो चलता गया जब तक घर नहीं पहुंचा

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या जब तक मरा नहीं, तो उसकी मौत आंकड़ा नहीं बनी, अंकित हो गई, वह जिंदगी से दो-दो हाथ करता रहा और मौत से भी उसने सीधी टक्कर ली। साहस की इस खिड़की से कोरोना को देखिए।

पहले लॉकडाउन से इस चौथे लॉकडाउन तक देखिए तो एक ही चीज समान पाएंगे- भय। हर तरफ, हर आदमी डरा हुआ है, क्या डर कोरोना के इलाज की दवा है? सांस बंद हो जाने का यह डर क्यों, जब पता है कि वह क्षण तो आना ही है जीवन में। क्या उससे हम जीना छोड़ देते हैं? नहीं न। हम ऐसे दुश्मन से लड़ रहे हैं जिसे जानते ही नहीं हैं, हमारे पास लड़ने का कोई हथियार भी नहीं है। अगर अपनी पुराण गाथाओं में खोजेंगे तो आपको ऐसे युद्ध कौशल की जानकारी मिलेगी जो हथियारों के बगैर लड़ी जाती थी।

वह समस्त ज्ञान को एकत्रित कर लड़ी जाने वाली लड़ाई थी, डरना नहीं, साहसी बनना। सावधानी के साथ बाहर निकलना, सारी हिदायतों का पालन करते हुए अपना काम करना, सावधानी के साथ दूसरों की मदद करना, ईमानदार व उदार बनना कोरोना से लड़ने वाले सिपाही की पहचान है। कोरोना का एक सिपाही वह है जो अस्पतालों में रात-दिन बीमारी से जूझ रहा है। वह ईमानदारी से अपना काम करता है तो सिपाही है, ईमानदारी से नहीं करता है तो यही है कि जिसके कारण हम यह लड़ाई हार जाएंगे।

दूसरा सिपाही वह है जो दूर खेतों-खलिहानों में, फूल-फलों के बगीचों में, छोटे-बड़े उद्योगों में लगातार मेहनत कर उत्पादन की शृंखला को टूटने नहीं दे रहा है। तीसरा सिपाही वह है जो सिपाही के कपड़ों में हर सड़क चौराहे पर खड़ा मिलता है, वह हमें रोकता है, निषेध करता है, कभी मुंह से तो कभी डंडे से बात करता है, जब वह डंडे से बात करता है तब वह हारा हुआ, अकुशल सिपाही होता है लेकिन उसे देखकर हम उन अनगिनत सिपाहियों को नजरअंदाज कैसे कर सकते हैं जो हर लॉकडाउन में न लॉक होते हैं और न डाउन होते हैं?

चौथा सिपाही वह है जो अपनी प्रेरणा से, अपनी छोटी मुट्ठी में बड़ा संकल्प बांधकर खाना-पीना-मास्क-ग्लव्स लेकर कभी यहां तो कभी वहां स्वप्रेरणा से भागता दिखाई देता है। पांचवां सिपाही वह है जो सहानुभूतिपूर्वक हर किसी की तकलीफ सुन रहा है और सद्भावपूर्वक उसे रास्ता बता रहा है। यही है जो हमारे घरों- सड़कों- पेड़ों पर रहने वाले बेजुबानों के लिए कहीं पानी धर देता है, कहीं रोटी डाल देता है। यह है जो हमारे उस प्राचीन गणित को सही साबित करना चाहता है जिसमें एक और एक, दो नहीं, 11 होते हैं। यह गलत गणित नहीं है, हमारे गलत गणित को सही करने वाला शाश्वत गणित है। आप लॉकडाउन में घरों के भीतर ही नहीं, घरों के बाहर क्या कर रहे हैं और किस नजर से कर रहे हैं यही बताएगा कि आप स्वयं ही कोरोना हैं कि कोरोना के खिलाफ छेड़ी गई लड़ाई के सिपाही हैं।

(लेखक जाने-माने गांधीवादी हैं) 

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