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याकूब मेमन के बारे में ये खास बातें जानते हैं आप

मुंबई में 1993 में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन को इस महीने के अंत में फांसी दी जाएगी। टाडा कोर्ट ने मेमन के खिलाफ डेथ वारंट जारी कर दिया है। अब अगर उसकी क्यूरेटिव याचिका भी खारिज हो गई। जिसके बाद अब उसकी फांसी का रास्ता साफ

By anand rajEdited By: Published: Wed, 15 Jul 2015 11:04 AM (IST)Updated: Wed, 29 Jul 2015 11:08 AM (IST)
याकूब मेमन के बारे में ये खास बातें जानते हैं आप

नई दिल्ली। मुंबई में 1993 में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन को इस महीने के अंत में फांसी दी जाएगी। टाडा कोर्ट ने मेमन के खिलाफ डेथ वारंट जारी कर दिया है। अब अगर उसकी क्यूरेटिव याचिका भी खारिज हो गई। जिसके बाद अब उसकी फांसी का रास्ता साफ हो गया है। अब उसे इसी महीने के अंतर में नागपुर जेल में फांसी दी जा सकती है। इससे पहले उसकी दया याचिका सुप्रीम कोर्ट से लेकर राष्ट्रपति तक ने खारिज कर दी थी। याकूब को सजा के बाद यह इस मामले में पहली फांसी होगी। इस पूरे प्रकरण में 22 साल लग गए।

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पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट है याकूब मेनन

याकूब का पूरा नाम याकूब अब्दुल रज्जाक मेमन है। याकूब की पत्नी का नाम रहीन मेमन है। उसे एक बेटी भी है।

वह पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट है। गिरफ्तारी से पहले वह एक अकाउंट से जुड़ी फर्म चला रहा था,जिसके जरिये वह अपने भाई टाइगर मेमन के गैर-कानूनी फाइनेंस संभालता था।

याकूब इंदिरा गांधी ओपन यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस से PG की पढाई कर रहा है। उसने 2013 में इग्नू से अंग्रेजी में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की थी।

मुंबई धमाके में याकूब के परिवार के चार लोग शामिल थे। धमाके का मुख्य आरोपी टाइगर मेमन, याकूब मेमन का बड़ा भाई है।

याकूब पर धमाके की साजिश के लिए पैसे जुटाने का आरोप है। 1994 में याकूब को काठमांडू हवाई अड्डे से गिरफ्तार किया गया था। उसके बाद उसे सीबीआइ के हवाले कर दिया गया।

53 वर्षीय याकूब को टाडा कोर्ट ने 27 जुलाई 2007 में आपराधिक साजिश का दोषी करार देते हुए सजा-ए-मौत सुनाई थी।

इसके बाद उसने बॉम्बे हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन उसे राहत नहीं मिली।

फिर 2013 में याकूब ने राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दाखिल की थी, उसे भी खारिज कर दिया गया।

याकूब ने क्यूरेटिव याचिका दाखिल की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।

इस मामले में विशेष टाडा अदालत ने 10 अन्य दोषियों को मौत की सजा सुनाई थी। उसे सुप्रीम कोर्ट ने उम्रकैद में बदल दिया।

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