क्या आप जानते हैं ‘विरामचिह्न्’ का आविष्कार कैसे हुआ था
लेखन में विरामचिह्न् के महत्व से लिखने-पढ़ने वाले सभी व्यक्ति परिचित होंगे, लेकिन कुछ विरामचिह्न् ऐसे भी हैं जो भाषा का हिस्सा तो हैं पर वह कीबोर्ड में नहीं मिलते यानी प्रचलन में नहीं हैं। प्रश्नवाचक अल्पविराम और विस्मयबोधक अल्पविराम व्याकरण के ऐसे ही अंश हैं।
नई दिल्ली (जागरण न्यूज नेटवर्क)। लेखन में विरामचिह्न् के महत्व से लिखने-पढ़ने वाले सभी व्यक्ति परिचित होंगे, लेकिन कुछ विरामचिह्न् ऐसे भी हैं जो भाषा का हिस्सा तो हैं पर वह कीबोर्ड में नहीं मिलते यानी प्रचलन में नहीं हैं। प्रश्नवाचक अल्पविराम और विस्मयबोधक अल्पविराम व्याकरण के ऐसे ही अंश हैं। वर्ष 1992 में तीन अमेरिकी आविष्कारकों लियोनार्ड स्टॉर्च, हेगन अर्नेस्ट वान और सिग्मंड सिल्वर ने इन दो विरामचिह्नों का आविष्कार किया था।
इनके पेटेंट के लिए दायर किए अपने दावे में उन्होंने लिखा था कि विस्मयबोधक अल्पविराम का इस्तेमाल ‘कुछ अतिरिक्त भावनात्मक बोध लिए एक कॉमा की तरह वाक्यों के बीच में होगा।’ इसी तरह प्रश्नवाचक अल्पविराम का इस्तेमाल वाक्य खत्म होने से पहले प्रश्न पूछने के भाव के लिए किया जाएगा। इस आविष्कार से जुड़ी खास बात यह थी कि इसका पेटेंट तीन वर्ष बाद ही रद हो गया था क्योंकि इन दोनों विरामचिह्नों का इस्तेमाल आमतौर पर नहीं किया जा सका था। विरामचिह्नों के आविष्कर्ताओं में से एक लियोनार्ड स्टॉर्च ने हाल में अपने फेसबुक पोस्ट में खुलासा किया है कि उन्हें किस तरह इसका विचार आया था।
वह लिखते हैं, ‘नब्बे के दशक की शुरुआत में एक रोज एक टेक्निकल पेपर लिखने के दौरान एक सुबह 4 बजे मुझे सपने में एक छवि दिखाई दी। इसके नीचे एक कॉमा दिख रहा था। इसके बाद मैं नींद में ही इतनी जोर से चिल्लाया कि मेरी पत्नी डर के उठ बैठी थीं। मुझे याद है कि यह पहली बार था कि जब गहरी नींद में मैंने कोई चीज खोज निकाली थी।’लगभग सीमित इस्तेमाल के बावजूद इन दोनों विरामचिह्नों को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सका है।
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