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आज से कैशलेस हो जाएगा ठाणे का धसई गांव

बैंक ऑफ बड़ौदा (बॉब) के उप महाप्रबंधक श्रीधर राव बताते हैं कि इस गांव के करीब 100 दुकानदारों ने नकदी रहित कारोबार की इच्छा जताई है।

By Rajesh KumarEdited By: Published: Wed, 30 Nov 2016 10:18 PM (IST)Updated: Thu, 01 Dec 2016 02:35 AM (IST)
आज से कैशलेस हो जाएगा ठाणे का धसई गांव

ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। महानगरों में कुछ लोग नोटबंदी पर स्यापा करते नहीं थक रहे हैं। वहीं मुंबई से 125 किलोमीटर दूर ठाणे जनपद का धसई गांव एक दिसंबर से अपना पूरा व्यवहार नकदी रहित करने जा रहा है।

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धसई ठाणे के मुरबाद तालुका का करीब 10,000 लोगों की आबादीवाला गांव है। इसके इर्द-गिर्द स्थित करीब 60 छोटे गांव व्यापार-कारोबार के लिए इसी गांव पर निर्भर हैं। यहां करीब 100 छोटे-मझोले व्यापारियों का एक छोटा सा बाजार है। बैंक ऑफ बड़ौदा के सहयोग से नकदी रहित होने जा रहे इस गांव में गुरुवार सुबह राज्य के वित्तमंत्री सुधीर मुनगंटीवार स्वयं आकर इस गांव के नकदीरहित होने की घोषणा करेंगे।

बैंक ऑफ बड़ौदा (बॉब) के उप महाप्रबंधक श्रीधर राव बताते हैं कि इस गांव के करीब 100 दुकानदारों ने नकदी रहित कारोबार की इच्छा जताई है। लोगों के पास जनधन खाता होने के कारण डेबिट कार्ड पहले से है। 39 स्वाइप कार्ड मशीन के फॉर्म भरे जा चुके हैं। ये मशीनें लेनेवालों में नाई से लेकर वड़ा-पाव बेचनेवाले तक शामिल हैं। जिन दुकानदारों के चालू खाते (करेंट एकाउंट) नहीं थे, उनके चालू खाते भी त्वरित व्यवस्था के तहत खोल दिए गए हैं। इसके लिए बॉब ने चालू खाते में रखी जानेवाली रकम की सीमा भी कम कर दी है। यह काम करने के लिए बॉब की टीम दो दिन से गांव में ही डेरा डाले हुए है।

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एनजीओ ने निभाई भूमिका :

धसई गांव को नकदी रहित अर्थव्यवस्था की ओर ले जाने में बड़ी भूमिका निभाई है स्वातं‌र्त्यवीर सावरकर स्मारक नामक स्वयंसेवी संस्था ने। इस संस्था के अध्यक्ष एवं स्वातं‌र्त्यवीर विनायक दामोदर सावरकर के पोते रंजीत सावरकर कहते हैं कि संसद में कांग्रेस नेता आनंद शर्मा जानना चाहते थे कि क्या गांव का किसान धोती में डेबिट कार्ड लेकर चलेगा? एक दिसंबर को धसई गांव इस सवाल का जवाब देने जा रहा है।

सावरकर के अनुसार जब किसान धोती में नकद रुपया लेकर चल सकता है, तो डेबिट कार्ड क्यों नहीं। रंजीत के अनुसार धसई गांव को तो आदिवासी गांव नहीं कहा जा सकता। लेकिन इसके आसपास पूरी आबादी जनजातीय समुदाय की ही है। यदि यहां यह प्रयोग सफल रहा तो धसई गांव का मॉडल दूसरे गांवों में भी लागू किया जा सकेगा। सावरकर की संस्था गांव के लोगों को इकट्ठा कर उन्हें नकदी रहित व्यवस्था लाने के लिए प्रशिक्षित भी कर रही है। खासतौर से स्कूली बच्चों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। ताकि वे घर जाकर अपने अभिभावकों को प्रशिक्षित कर सकें।

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