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पाकिस्तान के लिए महज 40 हजार रुपये में बिक जाता था 'इनका' इमान

आइएसआइ के लिए काम करने वाले दोनों पाकिस्तानी जासूस के सेना सहित सुरक्षा एजेंसियों के बीच गहरी घुसपैठ थी। सेना व पुलिस में होने से वे उन सुरक्षा एजेंसी से जुड़े लोगों के बीच तुरंत तालमेल बढ़ा लेते थे। बाद में उन्हें आकर्षक आफर का लालच देकर उनसे खुफिया जानकारी

By JP YadavEdited By: Published: Tue, 01 Dec 2015 11:55 AM (IST)Updated: Tue, 01 Dec 2015 05:28 PM (IST)
पाकिस्तान के लिए महज 40 हजार रुपये में बिक जाता था 'इनका' इमान

नई दिल्ली (संतोष शर्मा)। आइएसआइ के लिए काम करने वाले दोनों पाकिस्तानी जासूसों के सेना सहित सुरक्षा एजेंसियों के बीच गहरी घुसपैठ थी। सेना व पुलिस में होने से वे उन सुरक्षा एजेंसी से जुड़े लोगों के बीच तुरंत तालमेल बढ़ा लेते थे। बाद में उन्हें आकर्षक आफर का लालच देकर उनसे खुफिया जानकारी इकट्ठा की जाती थी।

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बाद में उसे जानकारी को पाकिस्तान भेज दिया जाता था। एक सूचना पर जासूसों को 40 से 60 हजार रुपये दिए जाते थे। पुलिस आरोपी जासूसों से पूछताछ कर अन्य एजेंसियों के करीब एक दर्जन लोगों की पहचान करने में जुटी हुई है। मुख्य आरोपी कफेतुल्ला पाकिस्तान भी जा चुका है।

वहीं, दिल्ली पुलिस आज बीएसएफ के गिरफ्तार हेड कांस्टेबल को जम्मू लेकर जाएगी। पुलिस को काफी कोड वर्ड का भी पता है, जिसके जरिये ये और ISI एजेंट कफेतुल्ला बात करते थे। एक बैंक एकाउंट का भी पता पुलिस को चल गया है। सूत्रों के मुताबिक, भोपाल में अभी कफेतुल्ला के कुछ एसोसिएट छुपे हैं, जो ISI के लिए काम करते हैं।

इसके अलावा, उत्तर प्रदेश भी सुरक्षा एजेंसी के रडार पर है। पुलिस कफेतुल्ला और हेड कांस्टेबल के मोबाइल फोन लैपटॉप की भी जांच कर रही है। कफेतुल्ला के मोबाइल फोन से कई अहम जानकारी क्राइम ब्राच के हाथ लगी है।

वहीं उसकी मुलाकात आइएसआइ के लोगों से भी हुई थी। उसे खास कर बॉर्डर पर सेना की तैनाती, बार्डर फेसिंग (बाड़) और टुकडिय़ों के मूवमेंट जैसे संवेदनशील जानकारी मुहैया करवाने को कहा गया था।

कफेतुल्ला खान और अब्दुल रशीद दोनों सेना से जुड़े थे। लिहाजा गुप्त जानकारी उपलब्ध करवाने में ज्यादा परेशानी नहीं होती थी। अपराध के संयुक्त आयुक्त रविंद्र यादव ने बताया कि आरोपी जासूस कफेतुल्ला का सन 1992 में बीएसएफ में चयन हो गया था, लेकिन जब तक वह सेना में शामिल होता इसी दौरान उसका चुनाव सन 1993 में जम्मू कश्मीर पुलिस के लिए हो गया।

ट्रेनिंग के वह सन 1995 में पुलिस के शास्त्र बल का हिस्सा बन गया था। उसने 17 वर्ष तक जम्मू कश्मीर पुलिस में काम किया। लेकिन सन 2013 में कफेतुल्ला ने पुलिस की नौकरी छोड़ दी और हायर सेकंडरी स्कूल में लाइब्रेरी असिस्टेंट बन गया।

इसी बीच वह एक बार पाकिस्तान भी गया था, जहां उसकी मुलाकात आइएसआइ एजेंट से हुई थी। आइएसआइ एजेंट भारतीय सेना की खुफिया जानकारी ले उसका अपने हित में प्रयोग करना चाहते थे। लिहाजा सेना व पुलिस में रह चुका कफेतुल्ला उन्हें उपयुक्त व्यक्ति लगा।

जासूसी करने के लिए आरोपी को आइएसआइ की ओर से आकर्षक ऑफर भी दिए गए। जासूस बनने के बाद उसे एयरफोर्स के आपरेशन सहित सेना की महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध करवाने को कहा गया था। इसके बाद अब्दुल रशीद सहित सेना व सुरक्षा एजेंसियों से जुड़े कई अन्य लोगों के संपर्क में आ गया। संबंध गहरे होते ही भारत में रहने वाले जासूसों की बहाली का भी जिम्मा भी उन्हें दे दिया।

दूसरा आरोपी अब्दुल रशीद कफेतुल्ला के गांव में रहता है और उसका रिश्तेदार भी है। वहीं अब्दुल रशीद जम्मू कश्मीर में बीएसएफ के इंटेलीजेंस विंग में हेड कांस्टेबल के पद पर तैनात था। उसकी ड्यूटी बीएसएफ मुख्यालय के डीजी कार्यालय में थी।

लिहाजा उसके पास सीमा सुरक्षा बल सहित अन्य एजेंसियों की खुफिया जानकारी रहती थी। यही कारण है कि वह आईएसआई द्वारा बताई गई जानकारी तुरंत मुहैया करा देता था। अब्दुल की सन 1990 में गुजरात और पश्चिम बंगाल में पोस्टिंग थी। सन 1998 में उसका स्थानांतरण जम्मू कश्मीर में हुआ था।

पुलिस पूछताछ में अब्दुल ने बताया कि कफेतुल्ला द्वारा प्रेरित करने पर रुपये के लालच में उसने पाकिस्तान के लिए जासूसी करना शुरू किया था। पहले वह कफेतुल्ला के माध्यम से पाकिस्तानी इंटेलीजेंस आपरेटिव (पीआईओ) को सूचना भेजता था, लेकिन बाद में वह सीधा आइएसआइ से जुड़ काम करने लगा था।

तफ्तीश में पता चला है कि दोनों आरोपी इंटरनेशनल बैैंक ट्रांसफर और मनी ट्रेल द्वारा रुपये प्राप्त करते थे। पुलिस यह पता लगाने में जुटी है कि आरोपियों ने अब तक कितने रुपये प्राप्त किए हैैं। यही नहीं जिन खाते से रुपया दोनों के खाते में स्थानांतरित किए गए थे उसकी भी छानबीन की जा रही है।


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