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सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, नोटबंदी नहीं है संपत्ति के अधिकार का हनन

सिर्फ पुराने नोटों का इस्तेमाल नियंत्रित किया है। सरकार जनहित में इस तरह के नियंत्रण लगा सकती है।

By Rajesh KumarEdited By: Published: Thu, 01 Dec 2016 09:46 PM (IST)Updated: Fri, 02 Dec 2016 07:06 AM (IST)
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, नोटबंदी नहीं है संपत्ति के अधिकार का हनन

माला दीक्षित, नई दिल्ली। सरकार ने 500 और 1000 के पुराने नोटों की बंदी को सही ठहराते हुए सुप्रीमकोर्ट में कहा है कि उसने कानून के दायरे में और जनहित में ये फैसला लिया है। सरकार को ऐसा करने का कानूनन अधिकार है। सरकार की इस कार्रवाई से लोगों को संविधान के अनुच्छेद 300ए में मिले संपत्ति के अधिकार का हनन नहीं होता। सरकार ने सिर्फ जनता के अधिकारों को रेगुलेट (नियमित) किया है उन्हें उससे वंचित नहीं किया है।

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सरकार ने यह बात गुरुवार को नोट बंदी के फैसले को चुनौती देने वाली विवेक नारायण शर्मा की याचिका के जवाब में दाखिल हलफनामे में कही है। सरकार ने कोर्ट से याचिका खारिज करने का अनुरोध किया है। मामले में शुक्रवार को सुनवाई होगी।

नोट बंदी मामले में सरकार का यह दूसरा हलफनामा है। नये हलफनामे में नोटबंदी की जरूरत और उद्देश्य बताते हुए एक बार फिर कालाधन बाहर निकालने और नकली भारतीय मुद्रा पर लगाम लगाने की बात कही गई है। फैसले के समर्थन में सरकार ने कालाधन पर बनी एसआइटी की रिपोर्टो का भी हवाला दिया है जिसमें कालेधन पर रोक के लिए नगदी रखने की सीमा 10 या 15 लाख करने की सिफारिश है। सरकार ने कहा है कि आरबीआई कानून के तहत आरबीआई और केन्द्र सरकार को ऐसा करने का अधिकार है।

सरकार ने ये फैसला कार्यकारी आदेश के जरिये नहीं बल्कि संसद द्वारा पास कानून में मिली शक्ति के तहत किया है। आरबीआई कानून की धारा 7 में केंद्र सरकार आरबीआइ गर्वनर से परामर्श करके आरबीआई को जनहित में निर्देश दे सकती है।

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कानूनन भारत सरकार को आरबीआई को नियमित और नियंत्रित करने का अधिकार है और आरबीआई सरकार के निर्देश पर उसके उद्देश्य को पूरा करने के लिए काम करेगी। चल रही मुद्रा भारत सरकार की होती है और आरबीआइ को उसकी सीमा तय करने का अधिकार है। सरकार ने सेन्ट्रल बोर्ड की सिफारिश पर 500 और 1000 के नोट का लीगल टेंडर खत्म किया है इसे अनुच्छेद 77 का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता। सरकार के नीतिगत फैसले को गैरकानूनी नहीं कहा जा सकता।

ये सही है कि पुराने नोट अब मान्य नहीं हैं लेकिन सरकार ने जनता को नये नोटों के इस्तमाल से नहीं रोका है। सिर्फ पुराने नोटों का इस्तेमाल नियंत्रित किया है। सरकार जनहित में इस तरह के नियंत्रण लगा सकती है। जनता को पैसा रखने, एकत्र करने या उसे निस्तारित करने से नहीं रोका गया है। सिर्फ अधिकारों को नियमित किया गया है उन्हें उससे वंचित नहीं किया गया है।

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नियमन और वंचित करने में अंतर है। 85 फीसद करेंसी बदली जानी थी साथ ही निकासी सुचारु रखने के लिए फंड भी चाहिये था। आरबीआई को खातधारकों के हित में निकासी और सेविंग रेगुलेट करने का अधिकार है। रेगुलेटरी कार्रवाई को गैरकानूनी नहीं कहा जा सकता। कोर्ट को आर्थिक नीति सरकार पर छोड़ देनी चाहिये। सरकार के नीतिगत मामले को मनमाना और अतार्किक कह कर तब तक चुनौती नहीं दी जा सकती जबतक कि मौलिक अधिकारों का हनन न होता हो। सरकार ने कहा है कि कोर्ट ने 1978 की नोट बंदी को सही ठहराया था।


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