दिल्ली में भाजपा की सरकार बनाने वाले बयान से पलटीं शीला
दिल्ली में भाजपा सरकार की वकालत कर सुर्खियां बटोरने वालीं पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित कांग्रेस में इस मसले पर बढ़ते विरोध को देखते हुए पलट गई हैं। शनिवार को उन्होंने सफाई दी कि उन्होंने कभी भी दिल्ली में भाजपा को सरकार बनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि मैंने कहा था कि यदि भाजपा के पास सरकार बनाने के लिए पर्याप्त संख्या है तो सरकार बनाए। एक टीवी चैनल से बात करते हुए शीला दीक्षित ने ये बात कही।
नई दिल्ली। दिल्ली में भाजपा सरकार की वकालत कर सुर्खियां बटोरने वालीं पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित कांग्रेस में इस मसले पर बढ़ते विरोध को देखते हुए पलट गई हैं। शनिवार को उन्होंने सफाई दी कि उन्होंने कभी भी दिल्ली में भाजपा को सरकार बनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि मैंने कहा था कि यदि भाजपा के पास सरकार बनाने के लिए पर्याप्त संख्या है तो सरकार बनाए। एक टीवी चैनल से बात करते हुए शीला दीक्षित ने ये बात कही।
उधर, दीक्षित के सियासी मास्टर स्ट्रोक से चित हुई सूबे की कांग्रेस जवाबी कार्रवाई की तैयारी में है। पार्टी के कुछ विधायकों ने दबे स्वर में उनका समर्थन जरूर किया है, लेकिन पार्टी के कड़े तेवरों के मद्देनजर ज्यादातर कांग्रेसी इस मुद्दे पर खुलकर बोलने से परहेज कर रहे हैं। ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि आने वाले दिनों में कांग्रेस दीक्षित को लेकर जवाबी कार्रवाई कर सकती है।
पार्टी द्वारा दीक्षित के बयान से किनारा और बयान वापस लेने की मांग करने के बावजूद दीक्षित की ओर से शुक्रवार को ऐसा कुछ भी नहीं कहा गया। बड़ी बात यह है कि उनके मंत्रिमंडल में शामिल रहे और उनके करीबी कहे जाने वाले नेता भी इस मुद्दे पर खुलकर बोलने से परहेज करने लगे हैं। हालांकि मतीन अहमद और मोहम्मद आसिफ भी कह चुके हैं कि यदि भाजपा के पास बहुमत हो तो वह सरकार बना ले, ऐसा कहने में भला क्या आपत्ति हो सकती है। विधायक जयकिशन द्वारा भी दीक्षित का समर्थन किए जाने की चर्चा थी, लेकिन पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि वह किसी भी सूरत में भाजपा सरकार के समर्थन में नहीं हैं।
सनद रहे कि दीक्षित द्वारा केरल के राज्यपाल पद से इस्तीफा दिए जाने के बाद ही यह तय हो गया था कि उनकी दिल्ली वापसी सूबे की कांग्रेसी सियासत में हलचल पैदा करेगी। वजह यह है कि वह एक साल पहले तक दिल्ली में सियासत की धुरी रही हैं और राजधानी की राजनीति में उनका कद बहुत बड़ा माना जाता रहा है। ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि उनके आ जाने से उन कांग्रेसी नेताओं को एक ठिकाना मिल जाएगा जो वर्तमान प्रदेश नेतृत्व से नाखुश हैं।
लेकिन दीक्षित द्वारा भाजपा की तरफदारी कर देने से अब ऐसे नेताओं के लिए भी खुलकर दीक्षित का समर्थन करना मुश्किल हो गया है। कहा यह भी जा रहा है कि दो महासचिवों डॉ. शकील अहमद व अजय माकन द्वारा दीक्षित के बयान से कांग्रेस को अलग करने संबंधी बयान जारी करने से दिल्ली के कांग्रेसियों को यह लगने लगा है कि यदि उन्हें पार्टी में बने रहना है तो फिलहाल चुप रहने में ही भलाई है।