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सूचना की साझेदारी ला रही शासन में भागीदारी

मध्य प्रदेश के भोपाल जिले का खजूरिया कलां गांव भी आस-पास के इलाके की तरह सीमित संसाधनों वाला गांव है। यहां उपलब्ध मूलभूत सुविधाओं को ले कर यहां के दूसरे युवाओं की तरह कमलेश भी बेहद असंतुष्ट हैं। लेकिन अब उन्हें इस बात की खुशी है कि सरकारी काम-काज में

By Abhishek Pratap SinghEdited By: Published: Tue, 01 Dec 2015 07:24 PM (IST)Updated: Tue, 01 Dec 2015 07:36 PM (IST)
सूचना की साझेदारी ला रही शासन में भागीदारी

मुकेश केजरीवाल, भोपाल। मध्य प्रदेश के भोपाल जिले का खजूरिया कलां गांव भी आस-पास के इलाके की तरह सीमित संसाधनों वाला गांव है। यहां उपलब्ध मूलभूत सुविधाओं को ले कर यहां के दूसरे युवाओं की तरह कमलेश भी बेहद असंतुष्ट हैं। लेकिन अब उन्हें इस बात की खुशी है कि सरकारी काम-काज में और सरकारी खर्च में पारदर्शिता आ गई है।

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वे कहते हैं कि उनके गांव के कई लोग लगातार सूचना का अधिकार कानून (आरटीआइ) के तहत आवेदन कर यहां की अधिकांश सरकारी योजनाओं का ब्योरा लेते रहते हैं। पहले अधिकांश बार सड़कें सिर्फ कागज में बनती थीं, लेकिन अब सड़क निर्माण से ले कर हैंड पंप लगाने और वृक्षारोपन तक के काम पर गांव के लोगों की पूरी नजर होती है।


सत्ता के विकेंद्रीकरण के लिहाज से मध्य प्रदेश में पिछले कुछ दशकों के दौरान हुए प्रयास में सूचना का अधिकार कानून (आरटीआइ) ने काफी अहम भूमिका निभाई है। विकेंद्रीकृत योजना लागू करने में तो मध्य प्रदेश सबसे शुरुआती राज्यों में रहा ही है, आरटीआइ के मामले में भी इसने पहले पहल की। वर्ष 2005 में राष्ट्रीय स्तर पर सूचना का अधिकार कानून लागू होने से पहले ही वर्ष 2002 में राज्य में जानकारी की स्वतंत्रता का कानून लागू हो गया था।

पंचायती राज कानून में जन-सहभागिता और विकेंद्रीकरण का जो लक्ष्य रखा गया है, उसे साकार करने में यह कानून अहम भूमिका निभा रहा है। राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप मानते हैं कि शासकीय कार्यों में जनता की भागीदारी बढ़ाने और पूरी सरकारी मशीनरी को निचले स्तर तक उत्तरदायी बनाने के मकसद में यह कानून काफी प्रभावी साबित हो रहा है। वे कहते हैं, ‘लोग अपनी निजी समस्याओं और हितों के लिए तो इसका उपयोग कर ही रहे हैं सार्वजनिक लाभ के लिए भी जम कर इसका उपयोग कर रहे हैं।’


राज्य में आरटीआइ कानून लागू हुए एक दशक से ज्यादा हो चुका है। सरकार के निचले से निचले स्तर तक पर पारदर्शिता लाने के इरादे से इस कानून में नागरिकों को अपनी जरूरत के मुताबिक सूचना हासिल करने की सुविधा तो दी ही गई है, साथ ही यह प्रावधान भी किया गया है कि पंचायती राज संस्थाएं लोकहित में सभी जरूरी सूचनाओं को खुद भी सार्वजनिक करने के लिए प्रयासरत रहें।

‘नीति आयोग- यूएनडीपी मीडिया फेलोशिप’ के तहत भोपाल और विदिशा जिले में ग्राम पंचायत से ले कर जिला पंचायत स्तर तक पर आधा दर्जन पंचायती राज संस्थाओं के किए गए आकलन में पाया गया कि खजूरिया कलां गांव के लोगों की तरह बहुत सी जगहों पर लोग आरटीआइ के जरिए सूचना हासिल करने के बाद लोग पंचायती राज संस्थाओं में ज्यादा सक्रिय योगदान कर रहे हैं और ज्यादा सही फैसले ले रहे हैं।


मध्य प्रदेश में 80 के दशक में जिलाधिकारी रह चुके प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर भी कहते हैं कि इस कानून ने निचले स्तर पर काफी बदलाव लाए हैं। अपने अनुभव के आधार पर वे कहते हैं कि एक समय था कि सरकारी कामों में होने वाले भ्रष्टाचार को देखते-समझते हुए भी लोग कुछ कह नहीं पाते थे और उस समय लोग खुद को बेहद असहाय पाते थे।

अब आम लोगों की ओर से बहुत समझदारी से इसका उपयोग किया जा रहा है। लोगों ने मस्टर रोल और बिल वाउचर मांगने शुरू कर दिए हैं। इसके बाद पहले की तरह भ्रष्टाचार नहीं हो सकता। लोग सरकार की ओर से खर्च हो रहे अपने धन के बारे में जानकारी मांग रहे हैं, इससे अधिकारियों और स्थानीय निकायों के जन प्रतिनिधियों में भय रहता है। मुंडलाचंद गांव की गृहणी मुन्नी बताती हैं कि गांव के स्कूल में पहले मिड डे मिल का फायदा बच्चों को महीने में मुश्किल से दस दिन मिल पाता था। मगर अब वे सारे रिकार्ड देखती हैं इसलिए अधिकांश दिन स्कूल में बच्चों को भोजन मिलता है।


आरटीआइ कानून की धारा चार यह प्रावधान करती है कि सभी पंचायती राज संस्थाएं और खास कर ग्राम पंचायत विकास योजनाओं से जुड़ी सभी जरूरी सूचनाएं गांव में बोर्ड लगा कर सार्वजिनक करें। इसके लिए वे अपने कार्यालय, गांव के स्कूल या ऐसी किसी सार्वजनिक इमारत का उपयोग करें। इसमें विभिन्न योजनाओं के लिए मिलने वाले धन और उसके खर्च का पूरा ब्योरा जरूर शामिल हो। साथ ही ग्राम सभा की बैठक में भी इसे लोगों के साथ साझा किया जाए। लेकिन इस अध्ययन के दौरान पाया गया कि अधिकांश पंचायती राज संस्थाओं में इस प्रावधान की भारी उपेक्षा हो रही है।

कुछ जगहों पर स्कूलों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के परिसर में ऐसे सूचना पट्ट जरूर लगे हैं। लेकिन उनमें ताजा सूचना नहीं होने की वजह से वह लोगों के उपयोग की नहीं है। खजूरी कलां के ही राजकुमार कहते हैं कि सामान्य ब्योरों के लिए भी उन्हें आवेदन करना होता है और लंबे इंतजार व शुल्क के भुगतान के बाद ही वे जानकारी ले पाते हैं। ग्राम पंचायत स्तर पर सरपंच या सचिव को और जनपद पंचायत तथा जिला पंचायत के स्तर पर मुख्य कार्यकारी अधिकारी या उनकी ओर से निर्धारित अधिकारी को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वे सारे रिकार्ड लोगों को सार्वजनिक करने की व्यवस्था करें। लेकिन इनकी उपेक्षा की वजह से राज्य सूचना आयोग में सर्वाधिक अपीलें स्थानीय निकायों की ही आती हैं।


राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप कहते हैं कि बदलाव की प्रक्रिया बहुत तेजी से चल रही है। लोगों को सूचना नहीं मिल पाने का एक बड़ा कारण यह भी है कि जिम्मेवार लोगों को इसके बारे में पूरी जानकारी नहीं। इसी तरह उन्हें जरूरी नियमित प्रशिक्षण भी नहीं दिया जा रहा। कानून में प्रावधान होने के बावजूद आरटीआइ के बारे में लोगों में जागरुकता बढ़ाने के लिए सरकार विज्ञापन भी नहीं कर रही। लेकिन सकारात्मक बात यह है कि लोग ना सिर्फ इसका उपयोग कर रहे हैं बल्कि और बेहतर तरीके से उपयोग करना सीख रहे हैं। साथ ही अधिकारियों के व्यवहार में भी लगातार बदलाव आ रहा है।

(विकेंद्रीकृत योजना पर ‘नीति आयोग-यूएनडीपी मीडिया फेलोशिप’ के तहत)


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