छत्तीसगढ़: नहीं मिला वाहन तो शव लेकर पैदल ही निकल गए 100 किमी दूर
छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले के दूरस्थ बिहारपुर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में शव वाहन और एंबुलेंस की व्यवस्था आज तक नहीं हो सकी है।
अंबिकापुर/सूरजपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। कुछ महीने पहले ओडिशा के कालाहांडी जिले के अस्पताल में शव वाहन नहीं रहने के कारण एक पति ने अपनी पत्नी के शव को अपने कंधे पर लेकर करीब 10 किलोमीटर का सफर तय किया था। इसी तरह का एक मामला छत्तीसगढ़ में आया है। राज्य के सूरजपुर जिले के दूरस्थ बिहारपुर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में शव वाहन और एंबुलेंस की व्यवस्था आज तक नहीं हो सकी है।
शनिवार सुबह हुए सड़क हादसे में पिकअप सवार ग्रामीण की मौत के बाद घर तक शव ले जाने वाहन की व्यवस्था उपलब्ध नहीं हो सकी। मृतक के शव को लकड़ी में बांध परिजन सौ किमी का सफर तय करने पैदल ही निकल गए। शव घर तक पहुंचा या नहीं इसकी पुष्टि तो नहीं हो सकी लेकिन तपती दोपहरी में मार्ग में जिस किसी ने भी इस नजारे को देखा उसने व्यवस्था पर सवाल खड़े किए।
जानकारी के मुताबिक बलरामपुर जिले के ग्राम प्रेमनगर निवासी मुकेश विश्वकर्मा का विवाह शुक्रवार को छत्तीसगढ़ से लगे मध्यप्रदेश के करामी में था। शादी की रस्म पूरी होने के बाद सभी बाराती वापस लौट रहे थे। पिकअप क्रमांक सीजी 10 ए 9050 में दुल्हा मुकेश विश्वकर्मा के नाना रामचंद्रपुर विकासखंड के सल्वाही निवासी बाजीलाल विश्वकर्मा पिता गोपाल विश्वकर्मा सहित अन्य लोग सवार थे। मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ सीमा पर बिहारपुर थाना क्षेत्र के नवाटोला फारेस्ट बैरियर को पार करते वक्त बाजीलाल विश्वकर्मा को बैरियर से सिर में चोट लग गई। मौके पर ही उन्होंने दम तोड़ दिया। दो अन्य लोग भी घायल हुए जिन्हें तत्काल प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बिहारपुर ले जाया गया। घटना की खबर लगते ही बिहारपुर पुलिस ने मौके पर पहुंच गई थी।
घटना के तत्काल बाद मृतक के शव का पंचनामा कर बिहारपुर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में पोस्टमार्टम कराया गया। बिहारपुर में शव वाहन की व्यवस्था नहीं होने और किसी भी निजी वाहन मालिक द्वारा बिहारपुर से लगभग सौ किमी सल्वाही तक शव ले जाने तैयार नहीं होने के कारण परिजन परेशान हो उठे। जब उन्हें कोई व्यवस्था नजर नहीं आई तो शव को लकड़ियों में बांध कांधे पर उठा लगभग आधा दर्जन लोग पैदल ही सल्वाही के लिए निकल पड़े। बिहारपुर मार्ग में कई लोगों ने शव ढोकर पैदल जा रहे ग्रामीणों को देखा। व्यवस्था पर सवाल भी खड़े किए लेकिन ससम्मान शव को घर तक पहुंचाने वाहन की व्यवस्था कराने में किसी ने भी पहल नहीं की।
तस्वीर बिहारपुर से सात किमी पहले की
खबर के साथ प्रकाशित तस्वीर बिहारपुर से सात किमी दूर की है। प्रचंड गर्मी में शव को ढोकर पैदल निकले लोग थककर चूर हो गए थे। एक पेड़ की छांव के नीचे बोरे और कपड़े से बंधे शव को जमीन पर रख परिवार के सदस्य थकान मिटाने में लगे हुए थे। मृतक बाजीलाल का शव घर तक पहुंचा या नहीं इसकी पुष्टि नहीं हो सकी है। शव ले जाने रास्ते में वाहन सुविधा मिली या नहीं यह भी पता नहीं चल सका है।
उपेक्षित है बिहारपुर
बेहतर बुनियादी सुविधा के साथ अधोसंरचना विकास के दावों के बीच जिला मुख्यालय सूरजपुर से लगभग 115 किमी दूर बिहारपुर आज भी उपेक्षित है। इस क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाओं का भी अभाव है। संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिए बिहारपुर अस्पताल में 102 महतारी एक्सप्रेस की सुविधा से तो लैस किया गया है लेकिन आजतक यहां एंबुलेंस व शव वाहन की उपलब्धता सुनिश्चित नहीं की गई है।
मरीजों, घायलों को बड़े अस्पतालों में ले जाने के लिए लोगों को एंबुलेंस की सुविधा नहीं मिल पाती। हादसा या किसी अन्य वजह से होने वाली मौतों पर भी पोस्टमार्टम के बाद शवों को घरों तक ले जाने पीड़ित परिवार के सदस्यों को तकलीफें उठानी पड़ती हैं। प्रशासनिक स्तर पर इन अव्यवस्थाओं की जानकारी सभी को है लेकिन दूरस्थ क्षेत्र के ग्रामीणों को सुविधा उपलब्ध कराने कोई पहल नहीं हो रही।
मुझे इस मामले की जानकारी नहीं है। यह सही है कि बिहारपुर में शव वाहन की व्यवस्था नहीं है, लेकिन यह निर्देश पहले ही जारी कर दिया गया है कि जहां शवों को घरों तक ले जाने शासकीय वाहन की व्यवस्था नहीं है, वहां जीवनदीप समिति की राशि का उपयोग कर किराए के वाहन से शव ससम्मान घर तक भेजा जाए। डॉ. एके जायसवाल, सीएमएचओ, सूरजपुर
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