फिर खेला जाएगा खूनी खेल जलीकट्टू, खेल में अब तक हो चुकी हैं इतनी मौत
आधे घंटे के इस खेल में जिंदगी की जंग मौत से होती है और कई बार जिंदगी मौत से हार चुकी है।
नई दिल्ली, [गुणातीत ओझा]। तमिलनाडु में खेले जाने वाले हजारों साल पुराने खेल जलीकट्टू पर मचा बवाल अब लगभग खत्म हो चुका है। लेकिन केंद्र के समर्थन के बाद तमिलनाडु में ग्रीन सिग्नल मिल चुके इस खेल का इतिहास लाल है। जब-जब यह खेल खेला गया, खेल से धरती रक्त रंजित हुई ही है। आधे घंटे के इस खेल में जिंदगी की जंग मौत से होती है और कई बार जिंदगी मौत से हार चुकी है।
2008 से 2014 के बीच जलीकट्टू में हो चुकी है 43 मौत
-5,263 प्रतिभागी और दर्शक हो चुके हैं जख्मी
-2,959 प्रतिभागी और दर्शक हो चुके हैं गंभीर रूप से जख्मी
-खेल के दौरान मारे जा चुके हैं 43 लोग और 5 बैल
फिर भी सदियों से लोग इसे सांस्कृतिक प्रतीक मानते आ रहे हैं और खेल जारी है। बैल पर नियंत्रण पाने के इस खेल से जुड़ी चोटों और मौत का आंकड़ा एक भयावह तस्वीर प्रस्तुत करता है। भारत के पशु कल्याण बोर्ड (एडब्ल्यूबीआइ) द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार 2008 से 2014 के बीच इस खेल के दौरान हुई तमाम घटनाओं में 43 लोग अपना जीवन गंवा चुके हैं। ताजा मामले में जलीकट्टू खेल के दौरान तमिलनाडु के पुदुकोट्टै में 2 लोगों की मौत हुई है और 57 लोग घायल हुए हैं। आपको बता दें कि साल 2014 में पेटा की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने जलीकट्टू पर बैन लगा दिया था।
अब भी हैं हजारों जख्म के निशान
2009 में तमिलनाडु के पुदुकोट्टै के वाडामलपुर में और अलंगुडी वनिय्यार विदुथी की दो घटनाओं में करीब 300 लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे। 2008 और 2011 के बीच कम से कम आठ मामलों में 100 से अधिक लोगों को खेल के दौरान गंभीर चोटें आई थी। लगभग 170 दर्शकों की गंभीर चोटों का सामना करना पड़ा था। इसके अलावा 2011 में, अलंगनल्लूर में, लगभग 400 प्रतिभागियों और दर्शकों चोट आई थी।
जलीकट्टू के लिए बेचे जा रहे थे टिकट
एडब्ल्यूबीआइ की एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार 2014 में आयोजित इस खेल की खिलाफत में जानवरों के प्रति क्रूरता के आरोप में 43 एफआइआर और पांच शिकायतें दर्ज कराई गई थी। इस खेल के दौरान एडब्ल्यूबीआइ के एक पर्यवेक्षक ने पाया था कि जलीकट्टू के लिए टिकट बेचे जा रहे हैं। वहीं, एडब्ल्यूबीआइ की रिपोर्ट आने से पहले राज्य सरकार ने दावा किया था कि जलीकट्टू खेल को देखने के लिए कहीं कोई टिकट नहीं बेचा जा रहा है।
क्या है जलीकट्टू?
पोंगल उत्सव के दौरान होने वाले इस खेल में परंपरा के अनुसार शुरुआत में तीन बैलों को छोड़ा जाता है जिन्हें कोई नहीं पकड़ता। ये गांव के सबसे बूढ़े बैल होते हैं। जिन्हें गांव की शान माना जाता है। इन बैलों के जाने के बाद जलीकट्टू का असली खेल शुरू होता है। सिक्कों की थैली बैलों के सिंगों पर बांधी जाती है। फिर उन्हें भड़काकर भीड़ में छोड़ दिया जाता है। ताकि लोग उन्हें पकड़कर सिक्कों की थैली हासिल कर सकें। इस खेल में बैलों पर काबू पाने वाले लोगों को इनाम भी दिया जाता है। वहीं, जो बैल इस खेल में पकड़ में नहीं आते उन्हें मजबूत माना जाता है और उन्हें गायों के बेहतर नश्ल को बढ़ाने के लिए काम में लाया जाता है।
जलीकट्टू तब और अब
तब और अब के जलीकट्टू में बड़ा फर्क आ गया है। अब जल्लीकट्टू खेल के दौरान बैलों के साथ क्रूरता होती है। इस खेल में रोमांच लाने के लिए बैलों को भड़काया जाता है इसके लिए उन्हें शराब पिलाने, नुकीली चीजों से दागने, उनपर सट्टा लगाने से लेकर उनकी आंखों में मिर्च डाला जाता है और उनकी पूंछों को मरोड़ा तक जाता है, ताकि वे तेज दौड़ सकें।
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