Move to Jagran APP

लुप्त हुई सांस्कृतिक धरोहर

रामनगरी की सांस्कृतिक धरोहर तिलई नदी [तिलोद्दकी गंगा] का अस्तित्व शास्त्रों में सिमटकर रह गया है। हालांकि दो दशक पूर्व तक इस पौराणिक नदी का अस्तित्व नजर आता था।

By Edited By: Published: Wed, 23 Jul 2014 05:05 AM (IST)Updated: Wed, 23 Jul 2014 05:06 AM (IST)
लुप्त हुई सांस्कृतिक धरोहर

अयोध्या, रघुवर शरण। रामनगरी की सांस्कृतिक धरोहर तिलई नदी [तिलोद्दकी गंगा] का अस्तित्व शास्त्रों में सिमटकर रह गया है।

loksabha election banner

हालांकि दो दशक पूर्व तक इस पौराणिक नदी का अस्तित्व नजर आता था। बरसात के महीनों में मुख्यत: यह उस मणि पर्वत को घेरते हुए प्रवाहित नजर आती थी, जहां से सावन शुक्ल तृतीया को अयोध्या का सुप्रसिद्ध सावन झूला मेला शुरू होता है। मान्यता थी कि जब मणि पर्वत पर भगवान राम झूला झूलते थे तो तिलई उनका चरण पखारने के लिए प्रस्तुत होती थी। हालांकि भगवान को अपने धाम गमन किए युगों बीत चुके हैं पर यह विरासत कुछ अर्सा पूर्व तक जीवंत थी। श्रद्धालु मणि पर्वत पर झूलनोत्सव के आगाज का आस्वाद लेने के साथ तिलोद्दकी गंगा का आचमन करना भी नहीं भूलते थे।इस नदी का नगरी की एक अन्य पौराणिक धरोहर सीता कुंड के पूर्व एवं रेलवे लाइन के पश्चिम दो सोते के रूप में सलिला सरयू से संगम होता था। प्रति वर्ष भाद्र मास की अमावस्या को यहां मेला लगता था, दंगल आयोजित होता था और श्रद्धालु पूरी निष्ठा से स्नान करते थे। मान्यता थी कि तिलई-सरयू के संगम में स्नान करने से जन्म-जन्म के पाप धुल जाते हैं और रोगों से मुक्ति मिलती है। लोग बड़े सम्मान से यहां की मिट्टी भी ले जाते थे।

पर पौराणिक नदी से जुड़ी भरी-पूरी संस्कृति की डोर टूट गई है। जगह-जगह अतिक्रमण से न केवल तिलई नदी का प्रवाह अतिक्रमण की भेंट चढ़ा बल्कि तिलई-सरयू संगम के जिस स्थल पर मेला लगता था, उस पर भी अतिक्रमण कर कुछ लोगों ने मकान बना लिया और कुछ मकान अब भी बन रहे हैं। श्री अयोध्या जी सेवा संस्थान के अध्यक्ष कौशलकिशोर मिश्र का कहना है कि तिलई-सरयू संगम स्थल की पैमाइश कराकर उस स्थान को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाय, वहीं ज्योतिष गुरु एवं साधक पं. कृष्णकुमार तिवारी इस नदी को पुनर्जीवन देने की मांग करते हैं, उनका कहना है कि साधना परंपरा में तिलई-सरयू संगम का महत्वपूर्ण स्थान है।

कश्मीर से निकली थी तिलइ

तिलई नदी के बारे में अग्नि पुराण एवं रुद्रयामल जैसे अयोध्या की पौराणिकता विंबित करते ग्रंथ में विस्तार से चर्चा मिलती है। इन ग्रंथों के अनुसार तिलई का उद्गम कैकेयी प्रदेश यानी कश्मीर था और यह नदी महाराज दशरथ एवं उनकी रानी कैकेयी के कश्मीर से संबंधों की ओर भी इशारा करती है।

पढ़ें: गंगा की तरह पवित्र हैं सभी नदियां

पढ़ें: हर दिन आबादी की ओर बढ़ रहीं नदियां


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.