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सीमा पार आतंक ही भारत-पाक के खराब रिश्तों की मूल वजहः रिचर्ड वर्मा

रिचर्ड वर्मा को भरोसा है कि भारत अमेरिका के रिश्तों को दुरुस्त करने में वहां रह रहे 35 लाख भारतीय भूमिका निभाएंगे।

By Gunateet OjhaEdited By: Published: Wed, 18 Jan 2017 08:42 PM (IST)Updated: Thu, 19 Jan 2017 08:44 AM (IST)
सीमा पार आतंक ही भारत-पाक के खराब रिश्तों की मूल वजहः रिचर्ड वर्मा
सीमा पार आतंक ही भारत-पाक के खराब रिश्तों की मूल वजहः रिचर्ड वर्मा

नई दिल्ली, जेएनएन। पहले भारतीय अमेरिकी राजदूत के तौर पर लगभग ढाई वर्ष भारत में काम करने के बाद रिचर्ड वर्मा शुक्रवार को वापस लौट रहे हैं। चेहरे पर एक संतुष्टि भी है और उस देश से जाने का एक छिपा सा दर्द भी जहां उनका मूल रहा है। खुशी है कि तनाव के दौर से उठाकर दोनों देशों को उत्साहित और भरोसेमंद रिश्तों के दौर में लाने में उन्होंने भूमिका निभाई।

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उस भारत को कुछ वापस कर सके जिसे छोड़कर पिता अमेरिका गए थे। उन्हें भरोसा है कि भारत अमेरिका के रिश्तों को दुरुस्त करने में वहां रह रहे 35 लाख भारतीय भूमिका निभाएंगे। उन्होंने भारत में बिताए ढ़ाई वर्ष और यादों के बाबत दैनिक जागरण के राष्ट्रीय ब्यूरो प्रमुख आशुतोष झा और विशेष संवाददाता जयप्रकाश रंजन से लंबी बात की। उसका एक अंश:

सवाल-

आप जब भारत के राजदूत बनाए गए थे तब दोनों देशों के रिश्तों मे खटास था। जिन उद्देश्यों से आपको भारत भेजा गया था, उसे कहां तक आप ढ़ाई वर्षो के कार्यकाल में पूरा कर पाये हैं?

उत्तर-

निश्चित तौर पर यह बहुत ही बड़ा प्रोफेशनल दायित्व था साथ ही व्यक्तिगत तौर पर एक बड़ा सम्मान था। लेकिन दोनों देशों के बीच रिश्तों की नींव को मजबूत बनाने की कोशिश पिछले दो दशकों से चल रही थी। पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की यात्रा और उसके बाद बुश प्रशासन और फिर राष्ट्रपति ओबामा ने अपनी तरफ से खास कोशिश किये। खास तौर पिछले दो वर्षो से दोनों देशों के नेताओं के बीच बहुत ही गहरे संपर्क बने हैं। दोनों देशों की सरकारों के प्रमुखों के बीच नौ बार बार द्विपक्षीय मुलाकात हो चुकी है। द्विपक्षीय रिश्तों पर तीन अहम बैठकें हो चुकी हैं। इसकी वजह से 100 से ज्यादा कार्यक्रमों की शुरुआत हुई है। मेरा मुख्य उद्देश्य यह था कि रिश्तों में सतत विकास होता रहे और इसमें कोई भी गिरावट नहीं हो। मुझे लगता है कि अभी हम ऐसे मुकाम पर हैं जहां से आगे काफी उम्मीद से देख सकते हैं। हमने ऐसी नींव रख दी है जिसके आधार पर हम अब बड़े अहम काम कर सकते हैं।

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सवाल-

कुछ ही दिनों बाद अमेरिका में नया प्रशासन काम संभाल लेगा। दुनिया में भी काफी अहम बदलाव हो रहे हैं, ऐसे में भारत व अमेरिका के रिश्तों का भविष्य क्या होगा?

उत्तर-

हमने यह साबित कर दिया है कि भारत व अमेरिका के रिश्ते दोनों देशों के लिए कितना अहम है। हम दोनों देशों की आम जनता के जीवन पर असर डालने वाले तमाम क्षेत्रों पर सहयोग कर रहे हैं। हम मार्स मिशन से लेकर सामुद्रिक विज्ञान के क्षेत्र में रक्षा क्षेत्र में व्यापक सहयोग कर रहे हैं। साथ ही भविष्य के रिश्ते को अमेरिका में रह रहे तकरीबन 35 लाख भारतीय भी दिशा देंगे। ये भारतीय वहां के हर क्षेत्र से जुड़े हैं। राजनीतिक से लेकर विज्ञान तक, शिक्षा से लेकर गैर सरकारी संगठनों तक में काम कर रहे हैं। ये लोग भारत व अमेरिका के बीच एक प्राकृतिक पुल के तौर पर काम करेंगे। इसके अलावा हम लोकतांत्रिक मूल्यों, संवैधानिक ढांचे, अभिव्यक्ति व धार्मिक आजादी जैसे मूल्यों को भी साझा करते हैं। ये मूल्य भी हमें साथ जोड़े रहेंगे। निश्चित तौर पर नया प्रशासन अपनी प्राथमिकता तय करेगा लेकिन हमने जितना काम किया है वह आगे और तेजी से जारी रहेगा। भारत व अमेरिका के रिश्ता पूरी तरह से गैर पक्षपातपूर्ण है। अब आप यह देखिए कि अमेरिका में भारत समर्थक सांसदों का जो समूह है उसमे 350 सदस्य हैं। इतना बड़ा समूह और किसी भी देश का नहीं है। मुझे अमेरिका में ऐसा कोई भी मुद्दा याद नहीं आ रहा है जिसके समर्थन में एक साथ 350 अमेरिकी सांसद आये हो। यह एक और उदाहरण है जो बताता है कि हम वाणिज्यिक, रणनीतिक, ऊर्जा समेत तमाम मुद्दों पर आगे बढ़ सकते हैं।

सवाल-

पिछले दो वर्षो में भारत व अमेरिका रक्षा व सैन्य सहयोग के मामले में सबसे तेजी से आगे बढ़े हैं, इनको किस तरह से आप जमीन पर उतरते देख रहे हैं?

उत्तर-

निश्चित तौर पर दोनों देशों के बीच किया गया डिफेंस ट्रेड व टेक्नोलॉजी इनिसिएटिव (डीटीआइआइ) समझौता हमारी सबसे बड़ी सफलता रही है। इसे कुछ इस तरह से समझिए। हमने 50 अरब डॉलर के रक्षा सौदों पर बात की है। हम अब ज्यादा रक्षा अभ्यास कर रहे हैं। असल में दुनिया के किसी भी दूसरे देश के मुकाबले हम भारत के साथ सबसे ज्यादा रक्षा अभ्यास कर रहे हैं। भारत को अमेरिका ने अपना प्रमुख रक्षा साझेदार घोषित किया है। इसके तहत भारत को दर्जा दिया जा रहा है वह किसी भी दूसरे देश को नहीं दिया गया है। डीटीआइआइ के मूल उद्देश्य भी यही है कि हम सिर्फ चीजों को भारत को बेच नहीं रहे हैं बल्कि एक साथ मिल कर काम करेंगे। यानी रक्षा व तकनीकी क्षेत्र में संयुक्त तौर पर उत्पादन, शोध करेंगे और विशेष परियोजनाओं को संयुक्त तौर पर फंड उपलब्ध कराएंगे। इस समझौते के तहत छह बड़े समूह गठित किये गये हैं। इसमें एयरक्राफ्ट कैरियर से लेकर जेट इंजन बनाने की तकनीकी, सुरक्षा सैनिकों के काम आने वाली तकनीकी पर काम करेंगे। हाल ही में इस समझौते में दो नई योजनाओं को भी जोड़ा गया है। एक है बेहद आधुनिक हेलीकॉप्टर का निर्माण और दूसरा है युद्ध के मैदान में इस्तेमाल होने वाले आधुनिक वाहन। हम युद्धक विमान बनाने और भारत के लिए एयरक्राफ्ट कैरियर के विकास में भी साथ काम करेंगे। अमेरिका ने इस तरह का समझौता अन्य किसी भी देश के साथ नहीं किया है।

सवाल-

भारत में कई लोग मानते हैं कि अमेरिका ने आतंकवाद पर सिर्फ बात की है, आतंकवाद को बढ़ावा देने में पाकिस्तान को रोकने पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया है?

उत्तर-

अमेरिका ने भारत के साथ आतंकरोधी विषय में भी अपने रिश्ते को काफी विस्तार दिया है। हम अब ज्यादा खुफिया सूचनाओं का आदान करते हैं। हम सीमा पार आतंक के मुद्दे पर भारत के साथ हैं। जब भी ऐसी कोई घटना होती है तो हम न सिर्फ निंदा करते हैं बल्कि पाकिस्तान के नेताओं से बात भी करते हैं कि उन्हें आतंकियों के पनाह स्थलों को खत्म करना होगा और आतंकी घटनाओं को अंजाम देने वाले लोगों व संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करनी होगी। एलईटी व जेईएम को आतंकी संगठन करार दिया है। हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ हमने कड़ी कार्रवाई की है। इन संगठनों के फंडिंग पर नकेल कसी गई है। भारत के साथ मिल कर संयुक्त राष्ट्र में कुछ समूहों को आतंकी संगठन घोषित करने में मदद कर रहे हैं। यह जुबानी खर्च नहीं है। भारत व अमेरिका संयुक्त तौर पर यह मानते हैं कि आतंकी संगठन आज दुनिया के विकास की राह में सबसे बड़ी अड़चन हैं। लेकिन अभी तक पाकिस्तान आतंकवाद पर काबू नहीं पा सका है। यह एक कठिन समस्या है जिस पर सभी को मिल कर काम करना होगा। हमारी तरफ से कोशिश में कोई कमी नहीं है।

सवाल-

भारत व पाक के रिश्तों को लेकर आपके क्या अनुभव रहे?

उत्तर-

देखिए, मेरा परिवार भी इसी भौगोलिक क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। मैं इन दोनों देशों के इतिहास को जानता हूं। लेकिन मैं यह भी जानता हूं कि यहां के ज्यादातर लोग शांति व विकास को पसंद करते हैं। लेकिन इस बारे में इन्हें स्वयं ही आगे बढ़ना होगा। अमेरिका सिर्फ एक सहयोगी की भूमिका निभा सकता है। हम दोनों देशों में बातचीत को बढ़ावा देते रहे हैं। लेकिन किस जगह और किस तरह से बातचीत होगी, इसका फैसला इन देशों को ही करना होगा। लेकिन मैं मानता हूं कि सीमा पार आतंकवाद को रोकना भी इसके लिए काफी अहम है। भारत व पाक के रिश्तों के खराब होने के लिए सीमा पार आतंकवाद एक बड़ी वजह है। साथ ही यह इस क्षेत्र की अन्य कई चुनौतियों की भी वजह है। इसलिए हम लगातार आतंकियों के पनाह स्थलों के खात्मे की बात करते हैं।

सवाल-

आपको और वक्त मिलता तो आप भारत में और क्या काम करते?

उत्तर-

मैं निश्चित तौर पर पर्यावरण व स्वच्छ ऊर्जा पर काम करता। अमेरिका व भारत ने इस दिशा में काफी अच्छा काम किया। पेरिस समझौते से लेकर सौर ऊर्जा तक के मामले में हमने काफी करीबी सहयोग स्थापित किया। लेकिन स्वच्छ ऊर्जा में अभी काफी कुछ किया जा सकता है। वैसे मैं इस बात से संतुष्ट हूं कि मैं एक भारतीय परिवार से जुड़ा हुआ हूं और एक प्रोफेशनल के तौर पर मैं अपनी सेवा यहां दे सका।

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