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मथुरा: बैंक खातों में करोड़ों रुपये, लेकिन खींचते हैं रिक्शा और चराते हैं भैंस

मथुरा के दामोदर गांव में सोलह साल बाद बैराज प्रभावित गांवों में खुशियां लौट आयीं हैं।

By kishor joshiEdited By: Published: Sat, 22 Oct 2016 09:08 AM (IST)Updated: Sat, 22 Oct 2016 09:25 AM (IST)
मथुरा: बैंक खातों में करोड़ों रुपये, लेकिन खींचते हैं रिक्शा और चराते हैं भैंस

पवन निशांत, मथुरा। शहर के एक छोर पर बसे दामोदर गांव की तस्वीर में अजब रंग हैं। यहां सरकार से 16 साल तक लड़ाई के बाद लोगों को जमीन का मुआवजा मिला तो धन की वर्षा हो गई। अब यहां के रिक्शा चालक भी करोड़पति हैं, तो मोहमाया से विरक्त हो चुके साधु के बैंक खातों में भी एक करोड़ से ज्यादा रुपये हैं। वहीं चरवाहे के खातों में भी करोड़ से ज्यादा धनराशि है। गांव में कदम-कदम पर करोड़पति बसे हैं लेकिन जीवन शैली वही पुरानी है। उन्हें यह भी समझ नहीं आ रहा कि धनराशि का कैसे बेहतर प्रयोग कर सकते हैं।

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दामोदर गांव के लोगों की जमीन 1998 में गोकुल बैराज के लिए अधिग्रहीत की गई थी। डूब क्षेत्र में आने पर भी 11 गांवों में किसानों को सरकार ने मुआवजा नहीं दिया। इससे उनकी मुश्किलें शुरू हुईं। कई तो गांव छोड़ शहर में मजदूरी को चले गए, तो कुछ गांव में ही मजदूरी करने लगे। कुछ हर जगह आवाज उठाते रहे। हालांकि इनको भी खाने के लाले थे।

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सोलह साल तक चले आंदोलन के दौरान कुछ समाजसेवियों का साथ मिला,तो मामला हाई कोर्ट भी पहुंच गया। अदालत ने किसानों को नए कानून के अनुसार मुआवजा देने का आदेश दिया। जनवरी से मुआवजा बंटना शुरू हो गया। कुल ग्यारह गांवों के 943 परिवारों को 992 करोड़ का मुआवजा सरकार को देना पड़ा। स्थिति यह हुई कि जीरो बैलेंस रहने वालों खातों में करोड़ों की रकम जमा हो गई। डूब क्षेत्र का सबसे यादा प्रभावित गांव दामोदरपुरा ही रहा, इसलिए यहां मुआवजा भी खूब आया। अब हर चौथा मकान किसी करोड़पति का है। इसके बाद भी बहुतों की जिंदगी पुरानी रफ्तार से चल रही है।

मैं कछु और करुंगो, तो मेरी भैंस कहां जाएंगी

चरवाहा ब्रज मोहन कहते हैं, "बड़े इंतजारन तै मुआवजा मिलौ है। भइयन ने अपने कारोबार कर लियौ है। मौकू रुपया बैंक में छोड़ दियौ बाकी। मैं कछु और करुंगो, तो मेरी भैंस कहां जाएंगी।"

अछे कामम में लगा रह्यौ हूं पइसा

साधु लक्ष्मण कहते हैं, "जमीन गई हती तौ सड़क पर आ गयौ। कोई लड़का मेरे है नाएं, कहां करतो। अब पइसा मिलौ है। लरकिन की शादी है गई, सो ऊपर वाले को मिलो पइसा अछे कामम में लगा रह्यौ हूं। भंडारा, मंदिर, गरीब कन्या की शादी आदि में जित्तो है जाए, निकाल दऊं।"

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रिक्शा चलाते हैं नत्थी लाल

गांव के नत्थी लाल रिक्शा चलाते हैं। परिवार को पौने तीन करोड़ मिले थे। वह कहते हैं, "जमीन को पइसा मिलौ है। मैंने कछु जमीन लई है। एक नयौ रिक्शा खरीदौ है। जासे ज्यादा और का कर सकूं, सो रिक्शा चलाय रह्यो हूं।"


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