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गरीबों व कमजोरों को दोषी ठहराती है अपराध न्याय व्यवस्था

अपराध न्याय व्यवस्था अधिकतर गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों को ही दोषी ठहराती है। इसलिए इसमें कई मोर्चों पर तत्काल सुधार की जरूरत है। भारत के मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू ने बुधवार को उन कानूनों को खत्म करने की मांग की जो भीख मांगने और यौनकर्म को

By Rajesh NiranjanEdited By: Published: Thu, 27 Nov 2014 12:10 AM (IST)Updated: Thu, 27 Nov 2014 01:20 AM (IST)
गरीबों व कमजोरों को दोषी ठहराती है अपराध न्याय व्यवस्था

नई दिल्ली। अपराध न्याय व्यवस्था अधिकतर गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों को ही दोषी ठहराती है। इसलिए इसमें कई मोर्चों पर तत्काल सुधार की जरूरत है। भारत के मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू ने बुधवार को उन कानूनों को खत्म करने की मांग की जो भीख मांगने और यौनकर्म को अपराध ठहराते हैं।

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कानून दिवस पर सुप्रीम कोर्ट में आयोजित कार्यक्रम में न्यायमूर्ति दत्तू ने कहा कि अपराध न्याय व्यवस्था अक्सर न केवल बड़े पैमाने पर कमजोर वर्ग के लोगों को दोषी ठहराती है। कानून खुद भी गरीब और वंचित तबके का अपराधीकरण करता है। भारत में भीख मांगने, यौन कर्म और आदिवासी समाज कुछ पेशों को अपराध करार देकर गरीबों को दंडित करने को विद्वान व मानवाधिकार कार्यकर्ता अपराधियों के संजाल को बढऩे का बड़ा कारण मानते हैं। कानूनी सहायता के साथ कानून को नए सिरे से बनाने की प्रक्रिया शुरू करने की जरूरत है। ऐसे कामों को आपराधिक कृत्य से अलग करने की जरूरत है। खासकर जिनका गरीबों पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। इस कार्यक्रम में केंद्रीय कानून मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा भी मौजूद थे। यौन हिंसा के खिलाफ महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे पर न्यायमूर्ति ने कहा कि हमें लगता है कि उनकी आजादी पर रोक लगाकर उनकी शारीरिक सुरक्षा के प्रति रुझान बढ़ता जा रहा है।

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आम आदमी की तरह काम करूंगा: मुख्य न्यायाधीश


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