अशक्त दुष्कर्म पीडि़ताओं के लिए बनाएं मुआवजा नीति: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने अशक्त दुष्कर्म पीडि़ताओं की असमर्थता और विशेष परिस्थितियां ध्यान में रखते हुए राज्यों को उनके लिए मुआवजा नीति बनाने का निर्देश दिया है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अशक्त दुष्कर्म पीडि़ताओं की असमर्थता और विशेष परिस्थितियां ध्यान में रखते हुए राज्यों को उनके लिए मुआवजा नीति बनाने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने गुरुवार को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि वे ऐसी पीडि़ताओं के लिए गोवा की तर्ज पर एक समान मुआवजा नीति बनाएं। गोवा में दुष्कर्म पीडि़ता को दस लाख रुपये मुआवजा दिए जाने की नीति है।
न्यायमूर्ति एमवाई इकबाल और न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की पीठ ने छत्तीसगढ़ के एक मामले में दुष्कर्म के दोषी की याचिका खारिज करते हुए ये आदेश दिए हैं। कोर्ट ने अभियुक्त टीकम उर्फ टेकराम की सात साल कारावास की सजा पर अपनी मुहर लगा दी। टेकराम ने गांव की 18 वर्ष की नेत्रहीन लड़की को शादी का झांसा देकर दुष्कर्म का शिकार बनाया था। सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार को हर महीने 8000 रुपये पीडि़ता को मुआवजा देने का भी आदेश दिया है।
इस मामले में पीडि़ता के शारीरिक रूप से अक्षम होने की स्थिति को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने दुष्कर्म पीडि़ताओं और विशेषकर अशक्त दुष्कर्म पीडि़ताओं के मुआवजे के मुद्दे पर विचार किया। सुनवाई के दौरान कोर्ट में दुष्कर्म पीडि़ताओं को मुआवजे की राज्यों द्वारा बनाई गई नीतियां देखीं।
कोर्ट ने पाया कि राज्यों की मुआवजा नीति में एकरूपता नहीं है। राज्यों में 50000 रुपये से लेकर 10 लाख रुपये तक की मुआवजा नीति है। दस लाख रुपये की मुआवजा नीति सिर्फ गोवा सरकार की है। पीठ ने राज्यों से कहा है कि वे गोवा की मुआवजा नीति के अनुरूप ही अशक्त दुष्कर्म पीडि़ताओं के लिए एक समान मुआवजा नीति तय करें।
मौजूदा मामले में मुआवजा तय करते समय कोर्ट ने पाया कि घटना के समय पीडि़ता 18 वर्ष की थी जो कि अब 37 वर्ष की हो चुकी है। पीडि़ता फिलहाल छत्तीसगढ़ के एक गांव में कच्चे मकान में अकेली रहती है और उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है। कोर्ट ने कहा कि अगर उसे एकमुश्त 10 लाख रुपये मुआवजा दे दिया गया तो वह उसे संभाल नहीं पाएगी। इसलिए कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह पीडि़ता को ताउम्र 8000 रुपये महीना मुआवजा दे।