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राज्यों और कालेजों की अलग परीक्षा कराने की मांग पर कोर्ट ने मांगा जवाब

राज्यों और कालेजों ने अपने विशेषाधिकार और बच्चों के हितों की दुहाई देते हुए कोर्ट से इस वर्ष अलग से परीक्षा कराए जाने की अनुमति मांगी।

By Gunateet OjhaEdited By: Published: Tue, 03 May 2016 08:28 PM (IST)Updated: Tue, 03 May 2016 08:59 PM (IST)
राज्यों और कालेजों की अलग परीक्षा कराने की मांग पर कोर्ट ने मांगा जवाब

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। मेडिकल में प्रवेश की एकल साझा परीक्षा नीट के अलावा अलग से अपनी अपनी प्रवेश परीक्षा कराए जाने की राज्यों और मेडिकल कालेजों की मांग पर सुप्रीमकोर्ट ने केंद्र सरकार, एमसीआई और सीबीएसई से जवाब मांगा है। मामले पर कोर्ट गुरूवार को फिर सुनवाई करेगा। उधर मंगलवार को राज्यों और कालेजों ने अपने विशेषाधिकार और बच्चों के हितों की दुहाई देते हुए कोर्ट से इस वर्ष अलग से परीक्षा कराए जाने की अनुमति मांगी। हालांकि कोर्ट ने इस संबंध में अभी तक कोई आदेश नहीं दिया है सुनवाई जारी है।

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मंगलवार को कर्नाटक, गुजरात, तमिलनाडु, जम्मू कश्मीर सहित कई राज्यों ने कोर्ट से अपनी अलग प्रवेश परीक्षा कराए जाने की अनुमति मांगी। वैलूर के क्रिश्चियन कालेज ने अल्पसंख्यक वर्ग का होने की दुहाई देते हुए नीट से छूट मांगी। कोर्ट ने इन सभी की अर्जियों पर केंद्र सरकार, एमसीआइ और सीबीएसई को अपना नजरिया स्पष्ट करने के कहा है।

लोगों को दी जाए जानकारी

मामले की शुरूआत में ही कोर्ट ने सीबीएसई की ओर से पेश एडीशनल सालिसीटर जनरल पिंकी आनंद से पूछा कि गत एक मई की परीक्षा ठीक ढंग से निबट गई कोई परेशानी तो नहीं हुई। पिंकी ने कहा कि परीक्षा ठीक से निबट गई और उसमें करीब साढ़े छह लाख बच्चों ने हिस्सा लिया है। पीठ ने कहा कि लोगों में जो भ्रम है उसे दूर करने के लिए उन्हें सही जानकारी दी जाए। प्रेस कान्फ्रेंस और वेबसाइट के जरिये लोगों को चीजों से अवगत कराया जाए। ताकि उन्हें भ्रम या परेशानी न हो। पिंकी ने दोनों माध्यमों से लोगों तक जानकारी पहुंचाने का कोर्ट को भरोसा दिलाया।

नीट का कार्यकारी आदेश राज्यों के कानून से ऊपर नहीं हो सकता

राज्यों ने कानून की दुहाई देते हुए मेडिकल में प्रवेश की अलग से परीक्षा कराने का अधिकार मांगते हुए सुप्रीमकोर्ट के गत मंगलवार के संविधानपीठ के फैसले का हवाला दिया। कर्नाटक के मेडिकल कालेज एसोसिएशन की ओर से बहस करते हुए केके वेणुगोपाल ने कहा कि सुप्रीमकोर्ट के आदेश के मुताबिक नीट का मसला राज्यों और केंद्र के बीच का है और उसे संविधान के अनुच्छेद 254 के मुताबिक तय किया जाना चाहिये। अनुच्छेद 254 कहता है कि अगर किसी मसले पर राज्य और केंद्र दोनों का कानून है तो केंद्र का कानून लागू होगा। लेकिन नीट परीक्षा के मामले में संसद से कानून पारित नहीं हुआ है बल्कि कार्यकारी आदेश के जरिए नीट कराने का फैसला हुआ है और कोई भी कार्यकारी आदेश राज्य के कानून के ऊपर नहीं हो सकता। मेडिकल की प्रवेश परीक्षा कराने का कर्नाटक राज्य का अपना कानून है और उसके मुताबिक परीक्षा होनी चाहिए।

राज्य नीट की मेरिट से चुन सकते हैं अपना कोटा

पीठ ने छात्रों को बेवजह अलग अलग परीक्षा में शामिल होने और फीस जमा करने के दबाव से बचाने के लिए नीट की तरफदारी करते हुए कहा कि राज्य नीट की मेरिट से अपने कोटे के बच्चे चुन सकते हैं यहां तक कि निजी मेडिकल कालेज और अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त कालेज भी अपनी पसंद के छात्रों का चुनाव नीट की मेरिट से कर सकते हैं। ये टिप्पणी कोर्ट ने तब की जब एमसीआइ ने बताया कि नीट में भी राज्यों का कोटा और आरक्षण का नियम लागू है। जब राज्यों ने प्रादेशिक भाषा और अलग पाठ्यक्रम की दुहाई देते हुए नीट का विरोध किया तो पीठ ने गुजरात से पिछले वर्ष की राज्य की प्रवेश परीक्षा का पर्चा कोर्ट में पेश करने को कहा ताकि कोर्ट को पर्चे और पाठ्यक्रम का अंदाजा हो सके।

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