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यहां तो मुर्दे भी भुगत रहे हैं केस की तारीख

कानून की चौखट पर न्याय की उम्मीद में लोग सालों तक तारीख दर तारीख भुगतते हैं, मगर उन्हें न्याय नहीं मिल पाता है। कुछ भाग्यशाली ऐसे भी होते हैं जिन्हें मुकदमा लड़ते-लड़ते मौत आ जाती है और अदालती मुकदमे के झंझट से मुक्ति मिल जाती है। मगर, ऐसा हर किसी के नसीब में नहीं होता।

By Edited By: Published: Sun, 27 Jul 2014 08:49 AM (IST)Updated: Sun, 27 Jul 2014 09:32 AM (IST)
यहां तो मुर्दे भी भुगत रहे हैं केस की तारीख

नई दिल्ली, [पवन कुमार]। कानून की चौखट पर न्याय की उम्मीद में लोग सालों तक तारीख दर तारीख भुगतते हैं, मगर उन्हें न्याय नहीं मिल पाता है। कुछ भाग्यशाली ऐसे भी होते हैं जिन्हें मुकदमा लड़ते-लड़ते मौत आ जाती है और अदालती मुकदमे के झंझट से मुक्ति मिल जाती है। मगर, ऐसा हर किसी के नसीब में नहीं होता। कुछ लोगों के तो मुर्दा होने के बाद भी उन पर मुकदमा चलाया जाता है। बकायदा मुर्दो के वारंट भी जारी होते हैं। सीबीआइ उन मुर्दो की तलाश भी करती है।

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ये बातें सुनकर चौंकिए मत। इस तरह का कारनामा दिल्ली की तीसहजारी कोर्ट में सामने आया है। जहां पर 10 साल से मृत आतंकी हिजबुल मुजाहिदीन की खुफिया विंग के प्रमुख मोहम्मद अयूब ठाकुर पर मुकदमा चलाया जा रहा है। ठाकुर की मौत की जानकारी इंटरपोल ने 10 साल पहले ही भारत सरकार को दे दी थी। मगर, इसके बावजूद भी ठाकुर पर मुकदमा चलता रहा और सीबीआइ उसकी तलाश करती रही। 10 साल तक तलाश करने के बाद सीबीआइ को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने अदालत से ठाकुर के खिलाफ चलाया जा रहा मुकदमा बंद करने की मांग की है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पवन कुमार जैन की अदालत ने मामले में सीबीआइ की लापरवाही सामने आने पर उन्हें न केवल कड़ी फटकार लगाई है बल्कि इस केस में सभी लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच गठित कर कार्रवाई के आदेश भी जारी कर दिए हैं। इस संबंध में अदालत ने अपने फैसले की प्रति सीबीआइ निदेशक को भिजवाई है और उन्हें कार्रवाई से संबंधित रिपोर्ट अदालत के समक्ष पेश करने को कहा है।

यह था पूरा मामला

देशभर में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने के मामले में सीबीआइ ने वर्ष 1990 में आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के खुफिया विंग के प्रमुख मोहम्मद अयूब ठाकुर, उप प्रमुख अशफाक हुसैन लोन और अन्य आतंकियों केखिलाफ देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का मुकदमा दर्ज किया था। सीबीआइ ने वर्ष 1992 में एक मुखबिर की सूचना के आधार पर लोन को चांदनी महल इलाके से गिरफ्तार किया था, जबकि ठाकुर मौके से फरार होने में कामयाब रहा था। लोन को वर्ष 1998 में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।

कई बार जारी हुए थे वारंट

ठाकुर को गिरफ्तार करने के लिए सीबीआइ की अदालत ने सबसे पहले 11 मई, 1993 को एक गैर जमानती वारंट जारी किया। इसके बाद अदालत ने 16 मई, 1997 को वारंट जारी किया। उस समय तक ठाकुर भूमिगत था, इसलिए उसका पता नहीं चल सका। इसके बाद अदालत द्वारा वर्ष 2014 तक कई बार ठाकुर की गिरफ्तारी के लिए ककई वारंट जारी किए गए।

लंदन में हुई थी ठाकुर की मौत

मोहम्मद अयूब ठाकुर भारत से भाग कर लंदन चला गया था और वहीं बस गया। वहां वर्ष 2004 में वह बीमार हुआ और उसे वहीं के सेंट मैरी अस्पताल में भर्ती कराया गया। 10 मार्च, 2004 को अस्पताल में उसकी मौत हो गई। ठाकुर उस समय कई देशों के लिए मोस्ट वांटेड आतंकी था। इसलिए इसकी सूचना इंटरपोल ने भारत सरकार को दे दी थी। मगर, ठाकुर के मरने के बावजूद भी सीबीआइ अधिकारियों की लापरवाही के चलते वह सीबीआइ की फाइलों में जिंदा रहा।

ऐसे सीबीआइ को पता चली अपनी गलती

ठाकुर के नाम से जारी किए गए वारंट को तामील कराने के लिए सीबीआइ ने इंटरपोल को पत्र भेजा। इंटरपोल ने उक्त वारंट के संबंध में अपना जवाब देते हुए सीबीआइ को बताया कि जिस ठाकुर की वे तलाश कर रहे हैं उसकी वर्ष 2004 में लंदन में मौत हो चुकी है। उस समय उसके मरने की सूचना भारत सरकार को दी गई थी।

सीबीआइ की साख पर बड़ा सवाल

किसी आतंकी की 10 साल पहले मौत हो जाती है और देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी सीबीआइ इससे बेखबर रहती है। इसके बाद सीबीआइ उस मर चुके आतंकी की खोज करती है और 10 साल तक अदालत में मुकदमा भी चलता है। ऐसे में सीबीआइ के अधिकारियों की सबसे बड़ी खामी है यह केस। यह केस सीबीआइ की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगा रहा है।

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