Move to Jagran APP

इतनी कम सजा से नहीं रुकेगा भ्रष्टाचार

सुना है कि ईश्वर सर्वशक्तिमान, अंतरयामी और सर्वव्यापी है, लेकिन लगता है अब इसकी जगह भ्रष्टाचार ने ले ली है। चारा घोटाले में सजा सुनाते हुए भ्रष्टाचार की व्यापकता पर की गई विशेष जज की ये टिप्पणी भ्रष्टाचार रोकने के मौजूदा कानून और तंत्र पर सोचने को मजबूर करती है। राजनेता और नौकरशाह भ्रष्टाचार करते हैं। दो ढाई दशक मुकदमा चलता है और सजा होती है 4 या 5 साल की।

By Edited By: Published: Mon, 07 Oct 2013 09:10 AM (IST)Updated: Mon, 07 Oct 2013 09:25 AM (IST)
इतनी कम सजा से नहीं रुकेगा भ्रष्टाचार

नई दिल्ली [माला दीक्षित]। सुना है कि ईश्वर सर्वशक्तिमान, अंतरयामी और सर्वव्यापी है, लेकिन लगता है अब इसकी जगह भ्रष्टाचार ने ले ली है। चारा घोटाले में सजा सुनाते हुए भ्रष्टाचार की व्यापकता पर की गई विशेष जज की ये टिप्पणी भ्रष्टाचार रोकने के मौजूदा कानून और तंत्र पर सोचने को मजबूर करती है। राजनेता और नौकरशाह भ्रष्टाचार करते हैं। दो ढाई दशक मुकदमा चलता है और सजा होती है 4 या 5 साल की। ऐसे में कानूनविद् भ्रष्टाचार को काबू करने के लिए सख्त सजा और प्रभावी तंत्र की जरूरत पर बल देते हैं। उनका मानना है कि इतनी कम सजा से भ्रष्टाचार नहीं रुकेगा। गंभीर भ्रष्टाचार में उम्रकैद तक की सजा होनी चाहिए।

loksabha election banner

भ्रष्टाचार में दोष नहीं लड़ सकते चुनाव

किसी भी अपराध की गंभीरता उस जुर्म में दी जाने वाली सजा से तय होती है, लेकिन सजा के लिहाज से भ्रष्टाचार उतना गंभीर अपराध नहीं दिखता। कानून अधिकतम सात साल के कारावास की सजा की बात करता है। तंत्र भी इतना पेचीदा कि भ्रष्टाचारी को सजा दिलाना आसान नहीं। लोकसेवकों पर मुकदमा चलाने के लिए सरकार से ही मंजूरी लेनी पड़ती है। भ्रष्टाचार के आधे मामले यहीं दम तोड़ देते हैं। सेवानिवृत न्यायाधीश प्रेमकुमार कहते हैं कि भ्रष्टाचार कभी गंभीर अपराध रहा ही नहीं। इसका कारण अंग्रेजों के शासनकाल में बना पुराना पीसी एक्ट, 1947 है। अंग्रेजों ने अपने लिए कानून बनाया था। इसलिए इसे कड़ा नहीं बनाया। मुकदमे की मंजूरी भी सरकार के हाथ में थी। आजाद देश ने भी उसे ज्यों का त्यों अपना लिया। इसे रोकना है तो सजा सख्त और तंत्र मजबूत करना होगा।

दिल्ली हाईकोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश एसएन धींगरा भी सहमति जताते हैं कि कानून सख्त करना तो दूर, जो है वही लागू नहीं होता। भ्रष्टाचार के ट्रायल में दो-दो दशक लगते हैं। जब एजेंसियां जांच करके साक्ष्य के आधार पर मुकदमा चलाने की मंजूरी मांगती हैं, तो सरकार कैसे मना कर सकती है। सरकार को अपनी जांच एजेंसी पर भरोसा करना चाहिए। उच्च पदों पर बैठे लोग अगर भ्रष्टाचार करते हैं तो उन्हें उम्रकैद से कम सजा नहीं होनी चाहिए। चपरासी और मंत्री स्तर के भ्रष्टाचार में अंतर है।

पूर्व न्यायाधीश डीके शर्मा भ्रष्टाचार के लिए श्रेणियां बनाने की बात करते हैं। उनका कहना है कि जैसे दुष्कर्म में अपराध की श्रेणियां तय हैं, वैसे ही इसमें भी होनी चाहिए। ऐसा नहीं है कि भ्रष्टाचार को हर जगह कम गंभीर माना गया है। रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार को आरपी एक्ट की उस श्रेणी में शामिल किया गया है, जिसमें सिर्फ जुर्माने की सजा ही अयोग्य बना देती है। आरपी एक्ट के ये प्रावधान भ्रष्टाचार की गंभीरता की ओर इशारा करते हैं। सजा के लिहाज से भी इसे गंभीर बनाने की जरूरत है।

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.