शीत सत्र तत्काल बुलाने के लिए सरकार से कहें राष्ट्रपति
कांग्रेस ने कहा है कि अनौपचारिक तौर पर सरकार शीत सत्र बुलाने में देरी के लिए गुजरात चुनाव की दलील दे रही है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली : संसद का शीत सत्र बुलाने में हो रही देरी पर सरकार को घेर रही कांग्रेस ने अब इस मामले में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से सीधे दखल देने का आग्रह किया है। उसने राष्ट्रपति को पत्र भेजकर कहा है कि सरकार गुजरात चुनाव के राजनीतिक मकसद से संसद की अनदेखी कर सत्र नहीं बुला रही है। पार्टी के मुताबिक, सरकार के इस रुख के मद्देनजर राष्ट्रपति मामले में दखल देते हुए सरकार से तत्काल सत्र बुलाने के लिए कहें।
राष्ट्रपति को कांग्रेस का यह पत्र पार्टी संसदीय दल की ओर से भेजा गया है। राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद, लोकसभा में पार्टी के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, राज्यसभा में उपनेता आनंद शर्मा, लोकसभा में चीफ व्हिप ज्योतिरादित्य सिंधिया और व्हिप दीपेंद्र हुड्डा के संयुक्त हस्ताक्षर से यह पत्र 21 नवंबर को राष्ट्रपति को भेजा गया है। इसमें कहा गया है कि संसद ही एक ऐसा मंच है, जहां लोकतंत्र में जनता से जुड़े अहम मुद्दों को उठाते हुए बहस की जाती है। इसमें ही सरकार की जवाबदेही और उसके कामों की समीक्षा भी होती है।
कांग्रेस ने कहा है कि अनौपचारिक तौर पर सरकार शीत सत्र बुलाने में देरी के लिए गुजरात चुनाव की दलील दे रही है। जबकि चुनाव कराना सरकार नहीं निर्वाचन आयोग का काम है और संसद का सत्र मान्य परंपरा के हिसाब से ही बुलाया जाता है। साथ ही ऐसा भी नहीं है कि चुनाव के दौरान सत्र नहीं होते। कांग्रेस ने इसके लिए राष्ट्रपति को गुजरात के 2012 के विधानसभा चुनाव के दौरान शीत सत्र बुलाए जाने का भी हवाला दिया है। इसमें कहा गया है कि तब गुजरात के चुनाव 12 और 17 दिसंबर को हुए थे जबकि संसद का शीत सत्र 22 नवंबर से शुरू होकर 20 दिसंबर तक चला था।
तत्काल सत्र बुलाने की जरूरत को रेखांकित करते हुए पार्टी ने कहा है कि मानसून सत्र के बाद संसद का सबसे लंबा ब्रेक शीत सत्र तक होता है। ऐसे में सत्र में देरी स्वस्थ परंपरा नहीं होगी। इससे साफ है कि सरकार अपनी अलोकप्रिय नीतियों व योजनाओं पर उठे रहे सवालों से भाग रही है। साथ ही सांसदों को उनके दायित्व निर्वहन के अधिकार से भी वंचित कर रही है। इसलिए राष्ट्रपति को दखल देते हुए सरकार को सत्र बुलाने का निर्देश देना चाहिए, क्योंकि सत्र बुलाने और सत्रावसान दोनों का संवैधानिक अधिकार केवल राष्ट्रपति के पास ही है।
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