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जातिवादी फॉर्मूले पर लौटेगी कांग्रेस!

लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकी कांग्रेस अब संगठन को पुराने फॉर्मूले पर चलने की तैयारी में है। बिहार चुनाव के बाद फ्रंटल संगठनों के ढांचे में भी परिवर्तन संभावित है। संगठन में अगड़ा, पिछड़ा, ठाकुर या ब्राह्मण को प्रमुखता से प्रतिनिधित्व दे कर वोटबैंक की सियासत से

By Abhishek Pratap SinghEdited By: Published: Tue, 13 Oct 2015 08:25 AM (IST)Updated: Tue, 13 Oct 2015 10:33 AM (IST)
जातिवादी फॉर्मूले पर लौटेगी कांग्रेस!

लखनऊ। लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकी कांग्रेस अब संगठन को पुराने फॉर्मूले पर चलने की तैयारी में है। बिहार चुनाव के बाद फ्रंटल संगठनों के ढांचे में भी परिवर्तन संभावित है। संगठन में अगड़ा, पिछड़ा, ठाकुर या ब्राह्मण को प्रमुखता से प्रतिनिधित्व दे कर वोटबैंक की सियासत से इतर गत लोकसभा चुनाव से पूर्व प्रदेश कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष, विधानमंडल दलनेता व प्रभारी पदों पर नियुक्ति के प्रयोग का लाभ नहीं मिल सका।

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एक पूर्व केंद्रीय मंत्री के अनुसार, प्रयोग का नुकसान यह रहा कि कांग्रेस का परम्परागत वोट बैंक रही जातियों ने भी दूरी बना ली। बिहार की तरह से उत्तर प्रदेश का मिजाज भी जातिवादी राजनीति का रहा है, इसलिए सपा और बसपा जैसे जाति आधारित दल यहां अहम भूमिका में बने है। सियासी माहौल से अलहदा फामरूले का सफल आसान नहीं क्योंकि प्रदेश पर जनाधार वाले नेतृत्व का कांग्रेस में टोटा है।

पिछड़ा या ब्राह्मण प्रदेशाध्यक्ष हो :

मंडल स्तर पर तैनात पर्यवेक्षकों की रिपोटरे में किसी पिछड़े या ब्राह्मण को प्रदेश में कमान सौंपने की संस्तुति की गई है। पश्चिमी उप्र में पर्यवेक्षक रहे उत्तराखंड के वरिष्ठ नेता का कहना है कि राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी को रिपोर्ट सौंपी जा चुकी है और संगठन में जान डालने के लिए जातिगत गणित को तव्वजो देना जरूरी है।

समाजवादी पार्टी की ओर मुस्लिमों का रुझान होने और दलितों में बसपा प्रेम बने रहने के कारण किसी ब्राह्मण या पिछड़े पर दांव लगाना कारगर होगा। बिहार चुनाव के बाद प्रदेश संगठन में बदलाव तय माना जा रहा है। अध्यक्ष या प्रभारी में किसी एक की छुट्टी तय है।

फ्रंटल संगठनों को मजबूती देंगे :

फ्रंटल संगठन खासकर युवक कांग्रेस की भूमिका से नेतृत्व संतुष्ट नहीं है। क्षेत्रीय स्तर पर संगठन की रचना कर स्थानीय युवाओं को जोड़ने का कोई काम न हो सका, उल्टे युकां में एकजुटता खत्म हो गयी। कई वर्षों से युवक या महिला कांग्रेस जैसे फ्रंटल संगठन मजबूती से मौजूदगी का अहसास नहीं करा सके । सूत्र बताते हैं कि फ्रंटल संगठन भी पुराने फामरूले से तैयार कराने की योजना है ताकि प्रदेश में एकजुटता का संदेश रहे।


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