कश्मीर हिंसाः सामान्य स्थिति की बहाली को अटल फार्मूले पर अमल चाहती है कांग्रेस
विपक्षी पार्टी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के 16 साल पहले दिखाए रास्ते पर लौटने को आज की जरूरत मान रही है।
संजय मिश्र, नई दिल्ली। उपद्रवी हिंसा से बेहाल कश्मीर घाटी में सामान्य स्थिति की बहाली के लिए केंद्र सरकार की अब तक की पहल को कांग्रेस आधी-अधूरी मान रही है। डेढ़ महीने से अधिक समय से जारी हिंसा की प्रवृत्ति और प्रकृति दोनों को देखते हुए पार्टी का मानना है कि सरकार को कश्मीर मसले पर संवाद का दायरा बढ़ाना होगा।
इसके लिए चाहे बैक चैनल के रास्ते ही सही, मगर हुर्रियत नेताओं औरपाकिस्तान के साथ भी संवाद का रास्ता खोलने की जरूरत है। विपक्षी पार्टी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के 16 साल पहले दिखाए रास्ते पर लौटने को आज की जरूरत मान रही है।
कश्मीर घाटी में हालात सुधारने के लिए महीने भर के भीतर गृह मंत्री राजनाथ सिंह की दूसरी बार श्रीनगर यात्रा को कांग्रेस सकारात्मक पहल मान रही है। मगर इसका कहना है कि गृह मंत्री का संवाद केवल घाटी की मुख्यधारा से जुड़ी पार्टियों और संगठनों के साथ ही हो पाया है। अभी तक सरकार परोक्ष रूप से भी उनलोगों से संवाद नहीं कर पाई है, जो घाटी में अशांति के पीछे जिम्मेदार हैं।
आधिकारिक रूप से कश्मीर में सामान्य स्थिति बहाली के लिए केंद्र के कदमों का समर्थन कर रही कांग्रेस संवाद का दायरा बढ़ाने की जरूरत पर बल दे रही है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद का साफ कहना है कि अपने लोगों से तो बात होती ही रहती है। इस वक्त जरूरत उनसे चर्चा की भी है, जो मुख्यधारा से बाहर हैं। आजाद के इस बयान से साफ है कि उनका इशारा हुर्रियत और अलगाववादी नेताओं से संवाद शुरू करने की ओर है।
कांग्रेस ने हुर्रियत सरीखे अलगाववादियों और पाकिस्तान से संवाद की आधिकारिक तौर पर मांग करने से परहेज किया है। इस पर पार्टी के एक वरिष्ठ रणनीतिकार ने कहा कि कांग्रेस के मुखर होने की जरूरत नहीं है, बल्कि केंद्र सरकार को संजीदा होना पड़ेगा। घाटी की हिंसा में किशोरों को भड़काने के पीछे साफ तौर पर पाकिस्तान और अलगाववादियों का हाथ है। हिंसा के इस लंबे दौर से साफ है कि ये दोनों कश्मीर घाटी में सुरक्षा बलों की रणनीति को गंभीर चुनौती दे रहे हैं।
कांग्रेस का मानना है कि मोदी सरकार के लिए वाजपेयी के चौतरफा संवाद का चैनल शुरू करना और भरोसा बहाली के लिए उठाए गए कदमों पर चलना श्रेयस्कर होगा। तब वाजपेयी ने कश्मीर घाटी में मुख्यधारा से बाहर हुर्रियत और अलगाववादियों के अलावा पाकिस्तान से भी वार्ता शुरू की थी। कारगिल की कड़वाहट के बावजूद मुशर्रफ के समय सीमा पर संघर्ष विराम सरीखे विश्वास बहाली के कदम उठाए।
भारत के खिलाफ आतंकवाद के लिए पाकिस्तान की सरजमीं का इस्तेमाल नहीं होने देने का संयुक्त बयान जारी कराने में कामयाबी हासिल की। मनमोहन सिंह ने भी श्रीनगर-मुजफ्फराबाद के लिए अमन सेवा की शुरुआत कर इसे आगे बढ़ाया। मुंबई आतंकी हमलों के बाद जरूर इसमें ठहराव आया।
कांग्रेस के इस वरिष्ठ नेता के अनुसार पिछले 25 वर्षों में जम्मू-कश्मीर को लेकर अपनाई गई नीतियों में वाजपेयी की पहल ही सबसे ज्यादा कारगर साबित हुई है। कश्मीरी जनता भी इस बात को मानती है। इसलिए सरकार को आक्रामकता और सीमित संवाद के दायरे से बाहर निकल कर समाधान का रास्ता निकालना होगा।
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