लगातार खिसक रही कांग्रेस की जमीन
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस अपने सबसे बड़े संकट से दो-चार है। देश को कांग्रेस मुक्त करने के नारे के साथ देश भर में चुनावी अभियान चला रही भाजपा और इसके नायक नरेंद्र मोदी के चलते कांग्रेस देश की राजनीतिक जमीन में महज बीस प्रतिशत की ही भागीदारी है।
नई दिल्ली [सीतेश द्विवेदी़]। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस अपने सबसे बड़े संकट से दो-चार है। देश को कांग्रेस मुक्त करने के नारे के साथ देश भर में चुनावी अभियान चला रही भाजपा और इसके नायक नरेंद्र मोदी के चलते कांग्रेस देश की राजनीतिक जमीन में महज बीस प्रतिशत की ही भागीदारी है।
देश में 29 राज्य व सात केंद्र शासित प्रदेशों में कांग्रेस महज सात राज्यों में सिमट चुकी है। इसमें भी असम, कर्नाटक और केरल को छोड़ दिया जाए तो उत्तराखंड एवं हिमाचल जैसे छोटे पहाड़ी राज्यों के अलावा मणिपुर, मेघालय, मिजोरम व अरुणाचल जैसे उत्तर पूर्वी राज्यों में ही कांग्रेस सरकारें हैं।
देश के राजनीतिक इतिहास को देखें तो जिन राज्यों में कांग्रेस तीसरे स्थान पर गई वह वापसी करने में नाकाम रही है। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल जैसे राज्य इसके उदाहरण रहे हैं। इसी तरह कांग्रेस बीस फीसद से नीचे मत प्रतिशत के जाने के बाद कांग्रेस सत्ता में वापसी करने में नाकाम रही है।
देश में 29 राज्यों व 7 केंद्र शासित प्रदेशों में से 12 राज्यों में कांग्रेस का मत प्रतिशत बीस फीसद या उससे कम है। इन सारे राज्यों में कांग्रेस न सिर्फ सत्ता से बाहर है बल्कि वह तीसरे नंबर की पार्टी बन चुकी है। राज्यों के इस फार्मूले को आधार माने तो वर्तमान में लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को मिले 19.3 फीसद मत पार्टी के भविष्य को लेकर भी निराशाजनक तस्वीर सामने रखते हैं।
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को महाराष्ट्र में 18 फीसद व हरियाणा में 22 फीसद के करीब मत मिले थे। हरियाणा में कांग्रेस से दो फीसदी ज्यादा मत इनेलो को मिले थे। लोकसभा में चुनावों के ठीक बाद हुए इन दोनों राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को न सिर्फ सत्ता से बाहर जाना पड़ा बल्कि दोनों राज्यों में वह तीसरे स्थान पर पहुंच गई।
इस आधार पर देखे तो झारखंड व जम्मू-कश्मीर में भी कांग्रेस की हालत पतली नजर आ रही है। लोकसभा चुनावों में इन राज्यों में क्रमश 13 व 22 फीसद मत प्रतिशत पाने वाली कांग्रेस के सामने कठिन चुनौती सामने खड़ी है।
यही नहीं अगले साल होने वाले दिल्ली में भी कांग्रेस को इस चक्रव्यूह से पार पाना मुश्किल होगा। दिल्ली में लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को महज 15 फीसद मत मिले थे। यह राज्य में एक साल पहले हुए हुए विधानसभा चुनावों के मुकाबले भी नौ प्रतिशत के करीब कम थे।